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कर्मचन्द बोथरा

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कर्मचन्द बोथरा[सम्पादन]

चित्र:Karamchand ji Bothra Bhomiya ji devali.jpg

दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा एक साहसी वीर और बुद्दिमान योधा थे्। जोधपुर नरेश राव श्री जोधा्जी ने उन्हे अपना दीवान (प्रधानमन्त्री ) नियुक्त किया था ।दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा बीकानेर की स्थापना मेॱ भी बीकाजी के साथ थे।्दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा के बाद इनके तेजस्वी पुत्र श्री कर्मचन्द जी बोथरा ने दीवान के रूप मेॱबीकानेर रियासत की भरपुर सेवा की। पिता-पुत्र की सेवा भावना, कर्तव्य निष्ठा और इनके ऊंचे मनोबल एवं प्रभाव को देखते हुए बीकानेर नरेश राव श्री बीका जी ने इन्हें दो गाँव की जागीर प्रदान की, जिनका नाम बछासर व कर्मीसर था । ये दोनो जागीर बीकानेर से तकरीबन ८ से १० किलोमिटर की दुरी पर स्थित है । बछासर गांव की स्थापना दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा के नाम से और कर्मीसर गांव की स्थापना श्री कर्मचन्द जी बोथरा के नाम से हुई थी । दोनों गांव बछासर व कर्मीसर बीकानेर से जैसलमेर रोड़ पर नाऴ के समीप और कोडमदेसर जो की भैंरू जी का पुजनीय स्थल है, से १० किमी पहले ही स्थित है ।

गांव कर्मीसर वर्तमान में नगर विकास न्यास बीकानेर के क्षेत्राधिकार में आता है, जबकी बछासर गांव को हाल ही में राज्य सरकार नें ग्राम पंचायत घोषित किया है । ग्राम बछासर की आबादी तकरीबन ५००० से अधिक है। उक्त गांव तहसील कोलायत जिला बीकानेर के अंर्तगत स्थित है । यहां जनसुविधा के अंर्तगत उच्च माध्यमिक विद्यालय, राजकीय औषधालय, ग्राम पंचायत भवन आते है। यहां के लोगो का मुख्य रोजगार के साधन पशु-पालन व कृषि है। पशु-पालन में मुख्यतः गाय पाली जाती है, छोटी-छोटी्राशन किरयाना की दुकानें भी है। यहां के लोग बीकानेर और इसके आसपास नौकरी, काम धंधे इत्यादि करते है। गिरी,जाट,कुम्हार,ब्राह्म्ण और राजपुत आदि समुदाय के लोग यहां निवास करते है। यहां स्त्री और पुरुषों का पहनावा लगभग पुराने समय के समान ही है ।

यहां पूजा स्थलों में चमत्कारी देव भोमिया जी की देवली है जो की लगभग ३०० वर्ष से भी प्राचीन बताई जाती है। दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा ही यहां भोमिया दादा के नाम से प्रसिध्द है। दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा बड़े ही महान और वीर योध्दा थे, जिन्होनें बीकानेर के राव श्री लुणकरण जी का साथ देते हुए नारनोल ( वर्तमान हरियाणा राज्य में ) के युध्द मे अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था । स्मरण रहे दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा जो की दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा के पुत्र और जैसाल जी बोथरा के पोत्र थे, बडे़ ही झुंझार योध्दा थे, जो कि नारनोल के युध्द मे अपना शीश धड़ से अलग होने के बाद भी शत्रुओं से लोहा लेते रहे। इस कारण दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा को एक झुंझार शहीद का दर्जा दिया गया था ।

कालान्तर में इनके पिता दीवान श्री बच्छराज जी बोथरा को जागीर में मिले गांव बछासर में इनको भोमिया जी के रूप में स्थापित किया गया जहां इनकी पुजा उस समय से अब तक गांव का एक ही पुजारी परिवार करता आ रहा है । गांव के एक वरिष्ठ नागरिक श्री झंवर गिरि जिनकी आयु लगभग ९० वर्ष है, ने भोमिया जी के बारे में काफी जानकारी प्रदान की । उन्होनें कहा कि आज लोग इन्हे भोमिया दादा के नाम से जानते है। इन्होने बताया की भोमिया दादा का गांव मे बड़ा ही चमत्कारी प्रभाव है । बिना इनसे अनुमति लिये गांव मे कोई भी नया कार्य आरम्भ नही किया जाता ,जैसे विवाह,नया वाहन, नया कारोबार, खेती एंव टयुबवैल आदि की खुदाई का कार्य बिना भोमिया दादा की अनुमति व आर्शीवाद के नही किया जाता, इन सब कामों में पहले भोमिया दादा का आर्शीवाद लेकर ही कार्य सम्पन्न किये अथवा करवाये जाते है ।

यहां भोमिया जी को एक शिला प्रतिमा के रूप मे स्थापित किया गया है। शिला पर अंकित खुदाई में श्री कर्मचन्द जी बोथरा घोडे़ पर सवार है और सामने उनकी धर्मपत्नी को नारियल व पगड़ी हाथ मे लिये दर्शाया गया है, इसका अर्थ होता है कि इनके पति अन्यत्र वीरगति को प्राप्त हुए है। यदि वे उसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हुए होते तो उनकी धर्मपत्नी हाथ जोडे़ खडी़ दिखाई जाती। शिला पर सुर्य और चन्द्र की छवि भी अंकित है । देवली से लगा हुआ एक खेजडी का हरा-भरा वृक्ष भी है जो लगभग ४०० वर्ष प्राचीन है्। इस खेजडी के वृक्ष के कोटर मे एक उल्लु का जोड़ा भी निरन्तर रहता है जो कभी-कभी आगन्तुकों को दिखाई देता है। भोमिया जी की देवली के नजदीक सड़क पार दाहिनी तरफ एक शिव मन्दिर स्थित है, जिसकी पुजा यहीं गिरि परिवार करता आ रहा है ।

चित्र:Bhomiya jI main gate.jpg

हाल ही में दीवान श्री कर्मचन्द जी बोथरा के इस पुजनीय स्थल जो कि भोमिया जी की देवली के नाम से प्रसिध्द है, का उनके ही वंशजों द्वारा निर्मित श्री नेमीचन्द बोथरा चेरिटेबल ट्र्स्ट श्री गंगानगर द्वारा इस पावन जगह का जीर्णोधार करवाया गया है । इसके अंर्तगत देवस्थान के चारों तरफ लोहे की ग्रिल के साथ चार दिवारी का काम, रंग-रोगन, मुख्य द्वार पर लोहे का गेट तथा आगन्तुक श्रद्धालुओ के लिये पेयजल हेतु एक जलकुण्ड का निर्माण भी करवाया गया है । जीर्णोधार कार्य के उपरान्त देवस्थल का उद्दघाटन पुलिस महानिरिक्षक श्री अरूण बोथरा ( आई. पी. एस. ) ओडीशा के हाथों दिनांक ०५ जुलाई २०२० को सम्पन्न हुआ है ।


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