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किसानो के मसीहा : चौधरी रामदान जी

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  चौधरी रामदान जी एक व्यक्ति न होकर एक संस्था थे, एक महान् व्यक्तित्व के धनी थे। एक महान् आत्मा थे। एक महात्मा ने किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। इनको किशोरावस्था में ही अकाल के समय अपने परिवार के लिये दो जून रोटी का प्रबन्ध करने हेतु मजदूरी करने दर-दर भटकना पड़ा, एक साथ तीन-तीन बोरियां उठाने का काम करना पड़ा। ऐसे अभावों में जिन्दगी की शुरुवात हुई थी, उस पुण्याता की। उन्होने ही आगे चलकर किसानों में शिक्षा की अलख जगायी, किसानो में जनजागृति अभियान चलाया। सरकारी नौकरी में रेल्वे को दक्षतापूर्वक सेवाएं देते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम् ‘ के सिद्धांन्त के अनुरूप यथासंभव छोटे–बड़े सभी वर्ग के लोगों को साथ लेकर शिक्षा के प्रचार प्रसार एवं समाज सुधार के विभिन्न अभियान चलाए, जो उनकी नि;स्वार्थ सेवा से पुष्ट होकर शीघ्र ही मन चाहे फल देने लगे।
         आपने चार-चार आने चन्दे में एकत्रित कर किसानों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए किसान बोर्डिंग हाउस का निर्माण करवाया। शिक्षा के साथ ही 1948 में मारवाड़ लैण्ड रेवेन्यू एक्ट तथा मारवाड़ टिनेन्सी एक्ट बनने के बाद इनको लागू कराने का कार्य शुरू कर दिया था। किसानों को लाग–बाग व बैठ-बैगार देने से मना करने के साथ-साथ भूमि की पैगाइश करवाकर किसानों को खातेदारी हक्क दिलाने की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी थी। जिसके विरोध में जागिरदारों का दमन चक्र शुरू हो गया। वे किसानों की ढाणियां जलाने, कत्ल करने, हाथ-पांव तोड़ने, पीट कर हड्डीयां तोड़ देने, नाक-कान काट देने, आखें फोड़ देने, बन्दूक से फायर कर देने, लड़कियों व औरतों को अगुवा करवा देने, ऊंटों की चोरियां कराने, डकैतियां डलवाने, आत्मसम्मान की रक्षा के लिए खेत छोड़ने को मजबूर करने, पत्थरों से मरवाने, जिन्दा गाड़ देने आदि की दमनात्मक कार्यवाहियां करने लग गये थे। फिर भी चौधरी रामदान जी अपने मिशन में लगे रहे। ऐसे भयावह वातावरण में भी चौधरी साहब इन दमनात्मक कार्यवाहियों के विरुद्ध चट्टान की तरह डटे रहे। 
        आजाद हिंदुस्तान के बदले हुए वातावरण में किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए संघर्ष के साथ-साथ सरकार में किसानों की भागीदारी सुनिश्चित करना जरूरी था। चौधरी साहब ने मालानी में पंचायतों से लेकर राज्य सरकार तक किसानों की भागीदारी को बहुत ही सूझ-बूझ से सुनिश्चित किया। चौधरी साहब स्वयम् भी 1953 में बाड़मेर तहसील  पंचायत के सरपंच तथा 1957 में राजस्थान विधान सभा के सदस्य बने। इसके साथ–साथ किसानों के हितों की साधना के लिए गांवों में कांग्रेस की जड़ें मजबूर की। 
        ऐसे दूरदर्शी , पक्के इरादे , ईमानदार , कर्तव्यनिष्ठ , अनुशासित ,असाधारण सूझ-बूझ तथा हिम्मत वाले व्यक्तित्व को शब्दों की सीमा में बांधना असंभव नहीं तो दुष्कर अवश्य है। चौधरी साहब को उनके समकालीन किसान भाईयों का हर क्षेत्र में पूरा सहयोग मिला था। 
        चौधरी साहब के पास त्याग के लिये धन नहीं था। उन्होने त्याग किया अपने परिवार का। उन्होने अपने ज्येष्ठ पुत्र श्री केसरीमल जी को किसानो के बच्चों की शिक्षा हेतु स्थापित छात्रावास को सुचारू रूप से चलाने के लिए सरकारी नौकरी छुडवा दी। चौधरी साहब ने 1930 से 1934 तक बच्चों को पढ़ाने के लिए घर में छात्रावास चलाया। छोटे-छोटे बच्चों को घट्टी से आता पीसकर खाना बनाकर खिलाने के साथ-साथ उनके कपड़ों आदि की सफाई तथा ममत्व ( छोटे-छोटे बच्चों की मां की तरह परवरिश ) देने का कार्य चौधरी साहब की पत्नी श्रीमती कस्तूरी देवी तथा पुत्र-वधू श्रीमती सजनी देवी (पत्नी श्री केसरीमल जी) ने किया। इन देवियों ने शारीरिक क्षमता से अधिक श्रम किया, जिससे इनको टी.बी. हो जाने से असमय प्राणों को त्यागना पड़ा। उन्होंने अपने दो पुत्रों श्री लालसिंह जी तथा गंगाराम जी को एल.एल.बी. की शिक्षा मात्र इसलिए दिलवायी की गांवों में जागिरदारों के सताये काश्तकारों को वकील करने में दिक्कत न आवे। श्रीमती कस्तुरी देवी तथा श्रीमती सजनी देवी के बाद पुत्र-वधू श्रीमती मंगनी देवी(पत्नी श्री गंगाराम जी) को बाहर से आने आने वाले काश्तकारों को खाना बनाकर खिलाने की सेवा में लगा दिया था।  

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