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चंदन का तिलक

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 चन्दन के तिलक  हमारे धर्मं चन्दन के तिलक का बहुत महत्व बताया गया है आइये जानते इसके बैज्ञानिक कारण और इसे कैसे लगाया जाता है !!  भगवान को चंदन अर्पण :  भगवान को चंदन अर्पण करने का भाव यह है कि हमारा जीवन आपकी कृपा से सुगंध से भर जाए तथा हमारा व्यवहार शीतल रहे यानी हम ठंडे दिमाग से काम करे। अक्सर उत्तेजना में काम बिगड़ता है। चंदन लगाने से उत्तेजना काबू में आती है। चंदन का तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है।  

वैज्ञानिक कारण[सम्पादन]

★ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंदन का तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। ★ मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। ★ मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता। ★ मस्तिष्क के भ्रु-मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है यह भाग आज्ञाचक्र है। शरीर शास्त्र के अनुसार पीनियल ग्रन्थि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रन्थि को उद्दीप्त किया जाता हैं, तो मस्तष्क के अन्दर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है। इसे प्रयोगों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है हमारे ऋषिगण इस बात को भलीभाँति जानते थे पीनियल ग्रन्थि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा। इसी वजह से धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शूभकार्यो में टीका लगाने का प्रचलन से बार-बार उस के उद्दीपन से हमारे शरीर में स्थूल-सूक्ष्म अवयन जागृत हो सकें।

तिलक का महत्व[सम्पादन]

:  ★ हिन्दु परम्परा में मस्तक पर तिलक लगाना शूभ माना जाता है ★ इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है ★ विजयश्री प्राप्त करने के उद्देश्य रोली, हल्दी, चन्दन या फिर कुम्कुम का तिलक महत्ता को ध्यान में रखकर, इसी प्रकार शुभकामनाओं के रूप में हमारे तीर्थस्थानों पर, विभिन्न पर्वो-त्यौहारों, विशेष अतिथि आगमन पर आवाजाही के उद्देश्य से भी लगाया जाता है।  ★ चंदन का तीलक महापुण्यदायी है | आपदा हर देता है |  चंदनस्य महतपुण्यं पवित्रं पाप नाशनम | आपदं हरति नित्यं लक्ष्मी तिष्ठति सर्वदा ||  तिलक लगाने का मन्त्र :   कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम्।  ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम्। ।  चन्दन तिलक लगाने के प्रकार :    स्नान एवं धौत वस्त्र धारण करने के उपरान्त वैष्णव ललाट पर ऊर्ध्वपुण्ड्र, शैव त्रिपुण्ड, गाणपत्य रोली या सिन्दूर का तिलक शाक्त एवं जैन क्रमशः लाल और केसरिया बिन्दु लगाते हैं। धार्मिक तिलक स्वयं के द्वारा लगाया जाता है, जबकि सांस्कृतिक तिलक दूसरा लगाता है।  नारद पुराण में उल्लेख आया है- १. ब्राह्मण को ऊर्ध्वपुण्ड्र, २. क्षत्रिय को त्रिपुण्ड, ३. वैश्य को अर्धचन्द्र, ४. शुद्र को वर्तुलाकार चन्दन से ललाट को अंकित करना चाहिये।  योगी संन्यासी ऋषि साधकों तथा इस विषय से सम्बन्धित ग्रन्थों के अनुसार भृकुटि के मध्य भाग देदीप्यमान है।  इसे भी पढ़े : मस्तक पर तिलक प्रति दिन | 

प्रकार[सम्पादन]

१.ऊर्ध्वपुण्ड्र चन्दन : ★ वैष्णव सम्प्रदायों का कलात्मक भाल तिलक ऊर्ध्वपुण्ड्र कहलाता है। चन्दन, गोपीचन्दन, हरिचन्दन या रोली से भृकुटि के मध्य में नासाग्र या नासामूल से ललाट पर केश पर्यन्त अंकित खड़ी दो रेखाएं ऊर्ध्वपुण्ड्र कही जाती हैं। | ★ वैष्णव ऊर्ध्वपुण्ड्र के विषय में पुराणों में दो प्रकार की मान्यताएं मिलती हैं। नारद पुराण में – इसे विष्णु की गदा का द्योतक माना गया है. ऊर्ध्वपुण्ड्रोपनिषद में – ऊर्ध्वपुण्ड्र को विष्णु के चरण पाद का प्रतीक बताकर विस्तार से इसकी व्याख्या की है। | ★ पुराणों में – ऊर्ध्वपुण्ड्र की दक्षिण रेखा को विष्णु अवतार राम या कृष्ण के “दक्षिण चरण तल” का प्रतिबिम्ब माना गया है, जिसमें वज्र, अंकुश, अंबर, कमल, यव, अष्टकोण, ध्वजा, चक्र, स्वास्तिक तथा ऊर्ध्वरेख है. ★ तथा ऊर्ध्वपुण्ड्र की बायीं केश पर्यन्त रेखा विष्णु का “बायाँ चरण तल” है जो गोपद, शंख, जम्बूफल, कलश, सुधाकुण्ड, अर्धचन्द्र, षटकोण, मीन, बिन्दु, त्रिकोण तथा इन्द्रधनुष के मंगलकारी चिन्हों से युक्त है। ★ इन मंगलकारी चिन्हों के धारण करने से वज्र से – बल तथा पाप संहार, अंकुश से – मनानिग्रह, अम्बर से – भय व अमंगलकारी दुखों का नाश करता है।


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