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चाटसू

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चाकसू का पूर्व नाम काव्यों में चम्पावती लिखा है. शिलालेख में इसे चाटसू नाम से अभिहित किया गया है. जनश्रुति में इसके ताम्बावती और पहपावती नाम मिलते हैं. इसके पूर्व में ढूंढ नदी और पश्चिम में बांड नदी बहती है. इसकी प्राचीनता ईसा की छठी शताब्दी मानी गयी है.[1]

सन् 1871-72 में जनरल कनिंघम के सहयोगी कार्लाइल द्वारा यहाँ के सर्वेक्षण के दौरान पुरा-वैभव पर प्रकाश डालने वाली दुर्लभ सामग्री प्राप्त हुई थी. इनमें यहाँ के प्रसिद्ध गोलीराव या गुहिल राव तालाब की सीढ़ियों पर शिलालेख उल्लेखनीय था जिसे डॉ. भंडारकर ने एपिग्राफिक इंडिका में प्रकाशित करवाया है. यह तिथि रहित शिलालेख गुहिल शासक बालादित्य के शासन काल का है जिसमे उसके द्वारा चौहान राजकुमारी का पाणिग्रहण किये जाने के अवसर पर मुरारी-विष्णु का मंदिर बनाये जाने का उल्लेख है. इस वंश के शासक शंकरगण ने शक्तिशाली गौडों को परास्त कर अपना राज्य मध्यदेश (अजमेर एवं आसपास) तक विस्तृत कर लिया था. अपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि 9वीं- 10वीं शताब्दी में चाकसू यानि चम्पावती का राजनितिक वर्चस्व अपने पूर्ण उत्कर्ष पर था.[2]

विक्रम संवत 1496 के रणकपुर शिलालेख से पता चलता है कि मेवाड़ के महाराणा कुम्भ ने चाकसू पर अधिकार कर इसे अपने राज्य में था. [3]

चाकसू में उपलब्ध विक्रम संवत 1640 के एक महत्वपूर्ण शिलालेख के अनुसार आमेर के राजा मानसिंह प्रथम के शासन काल में यहाँ चतुर्भुजजी के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया. यह मंदिर 10 वीं - 1 वीं शती में निर्मित एक प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार कर बनवाया गया जिसे आक्रांताओं ने खंडित कर दिया था.[4]

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