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जनेऊ संस्कार का महत्व

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जनेऊ संस्कार(यज्ञोपवीत) का महत्व

   यह अति आवश्यक है कि हर परिवार धार्मिक संस्कारों को महत्व देवें, घर में बड़े बुजर्गों का आदर व आज्ञा का पालन हो, अभिभावक  बच्चों  के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह समय पर करते रहे । धर्मानुसार आचरण करने से सदाचार, सद्‌बुद्धि, नीति-मर्यादा, सही – गलत का ज्ञान प्राप्त होता है और घर में सुख शांति कायम रहती है । 


1. जनेऊ यानि दूसरा जन्म (पहले माता के गर्भ से दूसरा धर्म में प्रवेश से ) माना गया है ।

2. उपनयन यानी ज्ञान के नेत्रों का प्राप्त होना, यज्ञोपवीत याने यज्ञ – हवन करने का अधिकार प्राप्त होना ।

3. जनेऊ धारण करने से पूर्व जन्मों के बुरे कर्म नष्ट हो जाते है ।

4. जनेऊ धारण करने से आयु, बल, और बुद्धि मे वृद्धि होती है ।

5. जनेऊ धारण करने से शुद्ध चरित्र और जप, तप, व्रत की प्रेरणा मिलती है ।

6. जनेऊ से नैतिकता एवं मानवता के पुण्य कर्तव्यों को पूर्ण करने का आत्म बल मिलता है।

7. जनेऊ के तीन धागे माता- पिता की सेवा और गुरु भक्ति का कर्तव्य बोध कराते है ।

8. यज्ञोपवीत संस्कार बिना – विद्या प्राप्ति, पाठ, पूजा, अथवा व्यापार करना सभी निर्थरक है ।

9. जनेऊ के तीन धागों मे 09 लड़ होती है, फलस्वरूप जनेऊ पहनने से 9 ग्रह प्रसन्न रहेते है।

10. शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक 07 वर्ष, क्षत्रिय 11 वर्ष और वैश्य के बालक का 13 वर्ष के पूर्व संस्कार होना चाहिये और किसी भी परिस्थिति में विवाह योग्य आयु के पूर्व अवश्य हो जाना चाहिये ।


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