जयदेवी तोमर
सन 1857 की क्रान्ति के समय वीरों और वीरांगनाओं ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था। अंग्रेजों ने अनेक स्त्री बच्चे और पुरुषों की नृशंस हत्या की। वीर शाहमल तोमर के शहीद होने के बाद तो और भी बुरा हाल हो गया था तब एक 16 वर्षीय वीरांगना शिवदेवी तोमर ने अंग्रेजो से मुकाबला किया।उनके शहीद होने के बाद शिवदेवी की 14 वर्षीय छोटी बहन वीर बालिका जाट क्षत्राणी जयदेवी तोमर ने यह दृश्य अपने तिमंज़िले मकान से देखा। उसने बड़ौत वासियों को कहा कि मेरे बहन के प्रति सच्ची श्रद्धाजलि यह है कि हम आजादी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते रहें। जयदेवी ने प्रण किया कि जिस अंग्रेज़ ने उसकी बहन तथा वीरों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था उसका बदला अवश्य लूँगी।
उसने गंगोल गाँव में अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटकाए, लिसाड़ी गाँव के 22 क्रांतिकारियों के छलनी किए शरीरों का तथा घोलाना के 14 वीरों के पेड़ों पर लटकाए हुये शवों को भी देखा, फिर भी वह डरी नहीं।
वीर बालिका जयदेवी अंग्रेजों के रिसाले का पीछा करती रहती तथा गावों में घूम-घूम कर युवक-युवतियों में जोश पैदा करती। जयदेवी के साथ लगभग 200 क्रांतिकारियों का जत्था चलता था। इसने अग्रेज़ रिसाले का लखनऊ तक पीछा किया लेकिन अंग्रेजों को जयदेवी की खबर तक नहीं लगी। इस वीर बालिका ने मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी, इटावा आदि जिलों में भी क्रांति की अलख जगाई।
लखनऊ में जयदेवी ने अपने क्रांतिकारी दस्ते द्वारा [Baraut|बड़ौत]] में अत्याचार करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी के बंगले की खोज करवाली। कई दिनों तक अंग्रेज़ अधिकारी को मारने का प्रयास होता रहा। लखनऊ में उन्हें छिपकर रहने और खाने की भारी परेशानी हुई, लेकिन एक दिन बंगले में टहलते हुये अंग्रेज़ अफसर का सिर जयदेवी ने तलवार से उड़ा दिया। उसके अनुयायियों ने अंग्रेज़ सैनिकों को मार गिराया और बंगले को आग लगा दी। क्रांतिकारी अंग्रेजों से झुंझकर जुझार हो गए। कपड़ों पर लगे खून से अंग्रेज़ जयदेवी को पहचान कर पाये और उसकी देह को लखनऊ में पेड़ से लटका दिया गया।
अंग्रेजों के भयंकर आतंक के बावजूद क्रांतिकारियों ने उनकी लाश को दफनाकर उस पर चबूतरा बनवा दिया। यह चबूतरा विधानसभा की दूरदर्शन वाली सड़क पर है। यहाँ देशभक्त आज भी सिर झुका कर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। बूढ़े लोग आज भी जयदेवी की लोक-कथा सुनाकर बलिकाओं में वीरता का संचार करते हैं
ऐसी महान वीरांगनाओं की गाथा आज बच्चों को सुनकर उन्हें देश धर्म के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।[१]
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- ↑ हिंदुस्तान की वीर बालिकाएं