बघेली लोकसाहित्य
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बघेली लोकसाहित्य की विस्तृत व्याख्या...[सम्पादन]
बघेली लोक साहित्य में लोकगीतों में लोक जीवन की एक विस्तृत परंपरा मिलती है, जिसमें सुख-दुख, हास-परिहास, विजय-पराजय के दर्शन होते हैं।
बघेली लोक साहित्य में बघेलखंड के निवासी जो आदिकाल से वनीय क्षेत्र में निवास करते रहे हैंर, उनका लोक साहित्य भी वनजीवन की परंपराओं से प्रेरित रहा है। बघेल क्षेत्र में रहने वालों ने सामाजिक दृष्टिकोण को प्रकट करने के लिए अपने भावों, विचारों को लोक साहित्य के माध्यम से प्रकट किया है।
बघेली लोक जीवन की वास्तविक तस्वीर बघेली साहित्य में प्रचलित लोक गीतों और लोक कथाओं के माध्यम से देखने को मिलती है। लोक जीवन और नगरीय जीवन में जो मूलभूत अंतर होता है, वह लोकगीतों और लोक मान्यताओं के माध्यम से स्पष्ट हो जाता है। बघेलखंड वन प्रांतीय क्षेत्र होने के कारण यहाँ के निवासियों में नगरीय संस्कृति का अभाव देखने को मिला है और यहां के निवासी प्रकृति के उन्नत वातावरण में अपना जीवन जीते रहे हैं।
बघेलखंड के निवासियों की आजीविका केंद्र वन, पशु-पक्षी, नदी-नाले और वृक्ष आदि रहे हैं। इनके लोक साहित्य में इन्हीं तत्वों की प्रमुखता रही है। नदी इनकी माता है, तो वृक्ष इनके सखा हैं, वहीं पशु-पक्षी इनके सहचर रहे हैं।
बघेल क्षेत्र के लोगों का प्रकृति से संबंध बेहद गहरा संबंध रहा है और बघेली लोक-साहित्य में यहाँ की सांस्कृतिक विरासत का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
बघेली लोक साहित्य
- बघेली या बघेलखंडी मध्य भारत के बघेलखंड क्षेत्र में बोली जाने वाली एक केंद्रीय इंडो-आर्यन भाषा है।
- बघेली 2001 की भारतीय जनगणना रिपोर्ट द्वारा 'हिंदी की बोली' के रूप में नामित भाषाओं में से एक है। बघेली एक क्षेत्रीय भाषा है जिसका उपयोग इंट्रा-ग्रुप और अंतर-समूह संचार के लिए किया जाता है।
- बघेली मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर और जबलपुर जिलों और उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में बोली जाती है।
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