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बृहत्संहिता के अनुसार सूर्य और चंद्र के दश ग्राम

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सुत्र:- (राहुचाराध्याय: श्लोक ४३) सव्यापसव्यलेहग्रसननिरोधावमर्दनारोहा: ।

आघ्रातं मध्यतमस्तमो∙न्त्य इति ते दश ग्रासा:॥

इस सुत्र के‍ अनुसार सूर्य एवं चंद्रमा के ग्रहण के समय उत्पन्न स्थिति से सव्य, अपसव्य, लेह, ग्रसन, निरोध, अवमर्दन, आरोह, आघ्रात, मध्यतम, तमोन्त्‍य ये सूर्य एवं चंद्र के दश ग्रास होते है ।

   सूर्य ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन होता है। सूर्य एवं पृथ्वी के बिच में चंद्र आने पर सूर्य ग्रहण की स्थिती बनती है, तथा चंद्र ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन होता है। सूर्य तथा चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आने पर चंद्र ग्रहण की स्थिती बनती है।

   सभी देशों में प्राय: चंद्र ग्रहण एक रूप का तथा सूर्य ग्रहण अलग अलग आकृती का दिखता है । उसका कारण यह है कि बादलो की तरह अध:स्थित चंद्रमा पश्चिम की ओर से आकर रविबिंब को ढकता है । इसलिए प्रत्येक देश में सूर्य ग्रहण अलग अलग रूपो में दिखाई देता है।

सव्यग्रास : ग्रहण के समय में सूर्य या चंद्र से सव्य (दक्षिण भाग) में होकर राहु गमन करे तो संसार हर्षित, भय रहित और जल से पूर्ण होता है । संसार में सूख, शांती होती है ।

अपसव्य : यदि राहु वाम भाग से होकर भ्रमण करें तो अपसव्य ग्रास होता है, जिसके कारण राजा और चोरों को पीडा होती है तथा प्रजा का नाश होता है ।

लेह ग्रास : यदि राहु, सूर्य तथा चंद्रबिंब को जिभ से चाटता हुआ प्रतित हो तो लेह नामक ग्रास होता है जिसके कारण पृथ्वी हर्षित होकर सम्पूर्ण प्राणियों से युत तथा जल पूर्ण होती है ।

ग्रसन ग्रास : यदि सूर्य या चंद्र का बिंब राहु द्वारा तृतीयांश, चतुर्थांश या आधा ग्रसित होता हो तो ग्रसन नामक ग्रास होता है। जिसके कारण स्फीत देश के राजा का धन नाश होता है तथा वंहा के रहिवासियों को अत्यंत पीडा होती है।

निरोध ग्रास : यदि सूर्य या चंद्रमंडल को राहु चारो ओर से ग्रसित करके मध्य भाग में पिंडाकार होकर बैठा हो तो निरोध नामक ग्रास होता है। यह ग्रास संसार के सभी प्राणियों को आनंद देने वाला होता है।

अवमर्दन ग्रास : यदि सूर्य या चंद्रमंडल के संपूर्ण भाग को ढककर राहु बहुत समय तक स्थिर रहे तो अवमर्दन ग्रास होता है। जिसके कारण प्रधान राजा और उस देश का नाश करता है।

आरोहण ग्रास : यदि सूर्य या चंद्रमा के ग्रहण के बाद उसी समय फिर से राहु दिखाई दे तो आरोहण नामक ग्रास होता है। विषेशत: यह ग्रास गणित सिद्ध न होने के कारण ऐसी स्थिती नहीं बनती, लेकिन आचार्य ने पूर्व शास्त्र के अनुसार इसे लिखा है।

आघ्रात ग्रास : यदि सूर्य या चंद्र का मंडल ग्रहण के समय भाप निकलती हुई नि:श्वास वायु से मलिन हुए दर्पण की तरह दिखाई दे तो आघ्रात नामक ग्रास होता है । जिसके कारण अच्छी बारिश होती है तथा प्राणियों की वृद्धी होती   है ।

मध्यतम ग्रास : यदि सुर्य या चंद्रमा का मध्य भाग राहु से ढका हो और चारो ओर निर्मल बिंब हो तो मध्यतम नामक ग्रास होता है । जिसके कारण पेट की बीमारिया और मध्य भाग में स्थित देशो का नाश होता है।

१० तमोन्त्‍य ग्रास : यदि सूर्य या चंद्र मंडल के बाहरी भाग में अधिक और मध्य भाग में कम राहु देखने में आवे तो तमोन्त्‍य नामक ग्रास होता है । जिसके कारण धान्यो की समाप्ति और प्राणियो को चोर का भय होता है ।


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