बोथरा राजा बोहित्थ - पुनरासर धाम
राजा बोहित्थ बोथरा - पुनरासर बालाजी
देलवाड़ा के राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा चौहान वंशी राजा सागर के पुत्र थे और बचपन से ही इनकी जैन धर्म मे आस्था थी । फलस्वरूप आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी से प्रभावित होकर वि.स. 1197 में पूर्णतया जैन धर्म और बोथरा गौत्र को अपना लिया था । जैन आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी ने राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा को आशीर्वाद स्वरूप प्रतिबोध दिया तथा भविष्यवाणी की कि, “ हे राजा बोहित्थ जहां तक तेरा वंश मेरी आज्ञा के मुताबिक चलेगा, खरतरगछ की भक्ति रखेगा, वहां तक राज कार्य में तेरी सन्तान का ओर आने वाले तेरे वंश का मान प्रतिष्ठावंत सदा-सदा के लिये रहेगा ठाठ (ऐश्वर्य), पाट (राजपाट) का मालिक तेरा वंश रहेगा जब तक कि वह धर्म और दया से विमुख नही होगा । लेकिन ‘हे राजन बोहित्थ तुम परभव की नींव लगाओ, तुम्हारी आयु थोड़ी है, सारी दुनिया तुम्हारी पूजा करेगी और तुम जन जन के संकट हरोगे और तुम्हारे वंश के तुम रक्षक बनोगे ।
आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी की भविष्यवाणी को ध्यान में रखते हुए राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा ने अपने बड़े पुत्र श्री कर्ण बोथरा को युवराज बना दिया ।
इस समय चित्तौड़ पर राणा रतनसिंह का शासन था । 1303 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब चित्तौड़ के राणा रतनसिंह ने राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा को अपनी सहायतार्थ बुलावा भेजा । राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा को अपने गुरुदेव आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी की भविष्यवाणी याद आ गई कि तुम्हारी आयु छोटी है, तुम परभव की नींव लगाओ । यह सोचकर कि शायद अब गुरुवाणी सिद्द होने का समय आ गया है, उन्होने राजपाट त्याग कर अपने बड़े पुत्र श्री कर्ण बोथरा को देलवाड़ा का भावी राजा घोषित कर दिया और बाकी सात पुत्रों को द्रव्य (धन) देकर अलग अलग दिशाओं में व्यापार,धनोपार्जन तथा जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिये भेज दिया । स्वयं राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा ने चारों आहार (चौविहार) का त्याग कर सुल्तान से युद्द के लिये चल पड़े । युद्द मे आप अरिहंत देव और आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी का ध्यान करते हुए वीरगति को प्राप्त करते हुए व्यंतरनिकाय में बावन वीरों मे हनुमंत वीर हुए जिनकी शक्ति आज भी पुनरासर गाँव मे प्रकट है । स्मरण रहे कि आचार्य श्री जिनदत्त सुरिश्वर जी में ईश्वरीय शक्ति थी और उनको तीनों लोको का भरपूर ज्ञान था |
संवत 1774 में बीकानेर में भयंकर अकाल पड़ा । अकाल के समय लोग अनाज और मजदूरी की तलाश में दूरस्थ निकल पड़े । उस समय पूनरासर के जयराम दास बोथरा भी अनाज लाने के लिए पंजाब ऊंटो पर निकल पड़े । वापसी में जब वे एक ऊंटनी पर अनाज के बोरे लादकर पूनरासर को लौट रहे थे कि अचानक ऊंटनी का पैर टूट गया जिससे वह
चलने लायक नहीं रही तो जयराम दास जी को घने जंगल में ही रहना पड़ा । अपने साथियों को उन्होने समझा बुझा कर पूनरासर भेज दिया । ऊंटनी का पैर टूटने से जयराम दास चिंता मगन थे । चिंता करते करते ही उन्हें एक घने पेड़ के नीचे नींद आ गयी । यह घटना वर्तमान सूरतगढ़ के आस पास के क्षेत्र की है । नींद में उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई उन्हें आवाज देकर जगा रहा हे। हड़बड़ाकर वे जगे तो वंहा पर उन्हें आवाज देने वाला कही दिखाई नहीं दिया । अपना भ्रम समझकर जब वे दोबारा सो गए तो पुनः उन्हें जगाने की वैसे ही आवाज आई । उन्हें आश्चर्य हुआ कि कोई उन्हें आवाज दे रहा हे, पर सामने कोई दिखाई नहीं देता । घबराकर उन्होंने आपने ईष्ट हनुमानजी को याद किया और हाथ जोड़ कर कहा की आप कोन है । तब राजा श्री बोहित्थ जी बोथरा साधू रूप में प्रकट हुए और कहा कि हे जयराम दास, मैं तुम्हारा पुर्वज राजा बोहित्थ हूँ ।
तुम संकट में हो, पर अब तुम्हारे संकट का समाधान हो जाएगा । यह कह कर उन्होंने खेजड़ी के पेड़ के नीचे दबी मूर्ति के बारे मे बताया और कहा कि मुझे इस हनुमान मूर्ति के रूप में अपने गाँव में स्थापित कर देना, और तुम व तुम्हारा वंश मेरी पूजा अर्चना नियमित रूप से करना । मेरी हनुमान रूप मे पूजा अर्चना करने वालो के सब कष्ट दूर हो जायेंगे । तब जयराम दास जी ने ऊंटनी के पैर टूटने की लाचारी जताई । साधू वेश धारी बोहित्थ जी बोथरा ने कहा कि जयराम दास तुम निसंकोच होकर अपने घर लौटो तुम्हारी ऊंटनी ठीक है । इस मूर्ति को साथ ले जाओ और इसकी नियमित पूजा अर्चना करो । जब हनुमान जी की कृपा हो जाये तो कोई भी संकट आदमी के समक्ष टिक नहीं सकता । हनुमान जी की मूर्ति को लेकर जयराम दास पूनरासर आ गए । साथियों ने जयराम दास जी को गाँव में देखा तो आश्चर्य में पड़ गए पर उन्हें क्या पता की जयराम दास बोथरा जी को अपने पूर्वजों की कृपा का प्रसाद प्राप्त हो गया है । पर जयराम दास जी ने दुविधावश मूर्ति कि स्थापना साधु बाबा के कहे अनुसार नहीं की तथा न ही नियमित पुजा अर्चना की तब उनके साथ दूसरा चमत्कार घटित हुआ । वे घर में सोते किन्तु रात्रि में जब उन्हें जब चेतना होती तो स्वयं को वो वर्तमान मंदिर के खुले मैदान में पाते । जब इस घटना की पुनरावर्ती कई बार हुई तो जयरामदास जी ने बाबा को याद किया तो आकाशवाणी हुई कि उनकी मूर्ति की विधिवत स्थापना कर नियमित पूजा अर्चना की जाये ।
बोथरा जयराम दास ने कहा प्रभु हम वनिक लोग है, मंदिर बना कर पूजा अर्चना कैसे करेंगे यह तो ब्राह्म्ण वर्ग का काम
है । उक्त घटना की पुष्टी पुनरासर बालाजी धाम के वर्तमान मुख्य पुजारी श्री रतनलाल जी बोथरा ने भी की है ।
तब से ही बोथरा परिवार के लोग एक छोटा मंदिर बनवा कर बोहित्थ जी बोथरा की हनुमानजी के रूप में पूजा करतें आ रहे हैं । यह एकमात्र मंदिर हैं जंहा यात्रियों को प्रसाद स्वरुप आटा शक्कर घी प्रदान किया जाता है, तथा उसे पकाने के लिए इंधन एवं बर्तन प्रदान किये जातें है ।
इस मंदिर की स्थापना 1718 की ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा को हुई थी ।
स्थापना के बाद से यंहा दूर दूर से भक्त लोग आने लगे और बाबा के दरबार में भांति भांति के कष्ट दुर करने की प्रार्थना करने लगे । तत्कालीन बीकानेर राजपरिवार भी बाबा की पुजा अर्चना के लिये यहां आने लगा ।
आज पुनरासर बालाजी धाम विश्व में एक चमत्कारिक सिद्दपीठ के रूप मे जाना जाता है ।
इस मंदिर प्रांगण मे यात्रियों के ठहरने के लिये काफी कमरे बनवाये गये है तथा इसी भवन के साथ लगती भूमि मे एक बड़ी धर्मशाला का भी निर्माण करवाया गया है जिसमे यात्रियो के विश्राम की व्यवस्था है । इस भवन मे वातानुकूलित तथा साधारण कमरे भी उपलब्ध है । श्री रतन लाल जी बोथरा मुख्य पुजारी ने बताया इस धर्मशाला मे मंदिर कमेटी की और से यात्रियो के खानपान हेतु रसोई घर चलता है जिसमे सुबह शाम स्वादिष्ट खाना बनवाया जाता है । श्री बोथरा के अनुसार इस प्राचीन मंदिर को विशाल भवन बनाकर बड़ा रूप दिया जाना अभी बाकी है ।
मंदिर के पुजारी परिवारों का कारोबार भारत के विभिन्न प्रदेशों मे होने के बावजूद भी अपनी बारी के अनुसार बाबा की सेवा मे हाजिर रह्ते है । मंदिर के मुख्य पुजारी श्री रतनलाल जी बोथरा विदेशों मे बसे भारतीयों के आग्रह पर बाबा के प्रचार प्रसार हेतु विदेशो मे जाते रहते है।
जयराम दास बोथरा | तेजमाल बोथरा | लालचंद बोथरा | प्रतापमल बोथरा | ||||
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अमरचंद बोथरा | रामलाल बोथरा | हरखचंद बोथरा | रूपचंद बोथरा | ||||
चेतनदास बोथरा | खिवराज बोथरा | बछराज बोथरा | चंदनमल बोथरा | ||||
उदयचंद बोथरा | मंगतमल बोथरा | हुनतमल बोथरा | रेखचंद बोथरा | ||||
दीपचंद बोथरा | मोहन लाल बोथरा | बलवंतमल बोथरा | बन्नेचंद बोथरा | ||||
जीवनमल बोथरा | रावतमल बोथरा | जीयालाल बोथरा | मेघराज बोथरा | ||||
पांचीलाल बोथरा | तनसुख दास बोथरा | कुशलचंद बोथरा | विजयराज बोथरा |
पुनरासर धाम कि दुरिया विभिन्न स्थानो से
- श्री गंगानगर से बीकानेर कि और यह लगभग 210 किमी है ।
- जयपुर से यह लक्ष्मणगढ, रतनगढ कि और लगभग 300 किमी है ।
- बीकानेर से यह दुरी 77 किमी है ।
- लुणकरनसर से यह दुरी 41 किमी है ।
जुगराज बोथरा | मोतीलाल बोथरा | अमरचंद बोथरा | मनोज कुमार बोथरा | ||||
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रणजीत बोथरा | घमण्डीराम बोथरा | हड़मानमल बोथरा | अशोक कुमार बोथरा | ||||
सम्पतमल बोथरा | छत्रसिंह बोथरा | सुरेंद्र कुमार बोथरा | राजकुमार बोथरा | ||||
महावीर प्रसाद बोथरा | निर्मल कुमार बोथरा | विमल कुमार बोथरा | प्रदीप कुमार बोथरा | ||||
रतनलाल बोथरा | विमल कुमार बोथरा | चंदनमल बोथरा | |||||
राजेंद्र कुमार बोथरा | बछराज बोथरा | महावीर बोथरा | |||||
विमल कुमार बोथरा | सम्पतमल बोथरा | विजयराज बोथरा |
ये सब अपनी अपनी बारी के अनुसार पुजा अर्चना का कार्य करते है । [१] [२] [३]
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