You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

भारशिव राजवंश

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

भारशिव वंश (१७०-३५० ईसवीं) मथुरा के नागवंशी शासकों का कुल था जिसके शासक गुप्त राजाओं से पहले गंगा घाटी पर राज करते थे। जब योधेय, मल्लाव आदि राज्यों के विद्रोह के कारण कुषाण साम्राज्य का अधिकतर भारत पर से नियंत्रण चला गया तब भारशिव ने अपने को स्वतंत्र राज्य घोषित कर लिया। भारशिव राजाओं ने दस अश्वमेध यज्ञ किये। उन्होंने अपना साम्राज्य मालवा ,ग्वालियर ,बुंदेलखंड और पूर्वी पंजाब तक फैला लिया था।[१]

ये 'नाग राजा' शैव धर्म को मानने वाले थे। इनके किसी प्रमुख राजा ने शिव को प्रसन्न करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हुए शिवलिंग को अपने कन्धो पर धारण किया था, इसलिए ये भारशिव भी कहलाने लगे थे। इसमें संदेह नहीं कि, शिव के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए ये राजा निशान के रूप में शिवलिंग को अपने कन्धो पर रखा करते थे। इस प्रकार की एक मूर्ति भी उपलब्ध हुई है। जो इस अनुश्रृति की पुष्टि भी करती है। नवनाग (दूसरी सदी के मध्य में) से भवनाग (तीसरी सदी के अन्त में) तक इनके कुल सात राजा हुए, जिन्होंने अपनी विजयों के उपलक्ष्य में काशी में दस बार अश्वमेध यज्ञ किया। सम्भवत: इन्हीं दस यज्ञों की स्मृति काशी के 'दशाश्वमेध-घाट' के रूप में अब भी सुरक्षित है। भारशिव राजाओं का साम्राज्य पश्चिम में मथुरा और पूर्व में काशी से भी कुछ परे तक अवश्य विस्तृत था। इस सारे प्रदेश में बहुत से उद्धार करने के कारण गंगा-यमुना को ही उन्होंने अपना राजचिह्न बनाया था। गंगा-यमुना के जल से अपना राज्याभिषेक कर इन राजाओं ने बहुत काल बाद इन पवित्र नदियों के गौरव का पुनरुद्धार किया था। वाकाटक एव भारशिव नाम से नया राजवंश उदय हुआ था। विंध्य क्षेत्र वैदिक काल में राजभर नाम से प्रचलित हुए।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास, पृ ४०१


This article "भारशिव राजवंश" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:भारशिव राजवंश.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]