महास्थान अभिलेख
महास्थान अभिलेख बांग्लादेश के महास्थानगढ़ में खुदाई से प्राप्त शिलालेख है जिससे सम्राट अशोक के राज्य की पूर्वी सीमाओं की जानकारी मिलती है। साथ ही इससे पूर्वकाल (चन्द्रगुप्त मौर्य के समय आए) मे आए अकाल का वर्णन मिलता है।[१] सोहगौरा अभिलेख और महास्थान अभिलेख दोनों से आपत्तिकाल अर्थात् अकाल के लिए अन्न भाण्डारण की जानकारी मिलती है। ये दोनों अभिलेख अकाल और धान्य संग्रह के प्राचीनतम् अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। अधिकांश इतिहासकारों ने इसे चंद्रगुप्त मौर्य का अभिलेख माना है तो वही कुछ इतिहासकारों ने इसे सम्राट अशोक का अभिलेख माना है ।[२] महास्थान अभिलेख सम्राट अशोक अथवा चंद्रगुप्त मौर्य के आदेशानुसार उनके महामात्र द्वारा पुण्ड्रनगर (जिसे अब महास्थानगढ़ गाँव कहा जाता है) में एक आदेश भेजा गया था कि संबंगीय (बंगाली) समुदाय के लोगों को जल्दी से अकाल से प्रभावित लोगों को शीघ्र राहत प्रदान की जाए। राहत कार्य के अंतर्गत उन्हें ऋण प्रदान का प्रस्ताव रखा गया था। ऋण को 'गंदक' नामक प्रसिद्ध सिक्कों के रूप में गलादान के नाम से जारी किया जाना था। राहत कार्य के दूसरे चरण में अन्नागार से अनाज उपलब्ध कराने की बात भी की गई थी। प्रशासन अभिलेख के माध्यम से यह सुनिश्चित करता है कि वर्तमान राहत कार्य से समुदाय वर्तमान संकट से निपटने में सक्षम होगा।[३]
1931 ई. में महास्थान अभिलेख की प्राप्ति हुई। यह मौर्यकाल का अभिलेख ब्राह्ममी लिपि में लिखा गया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि बंगाल अशोक के साम्राज्य में शामिल था। ह्वेन त्सांग ने समतट और ताम्रलिप्ति में अशोक के स्तूप देखे थे। लंका से प्राप्त विवरणों के आधार पर ताम्रलिप्ति अशोक काल का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था।[४]
अन्य तथ्य[सम्पादन]
युआन वाई प्रख्यात बौद्ध धर्मविक्रम था, जो यु-चाउ स्थित हवांग-तृंग का निवासी था। उसका गोत्र नाम-ली था। उसने सेंग-मेंग और तान-लांग आदि अपने साथियों सहित ४२०-४५३ ई. में भारत की यात्रा की और अपने साथ महास्थान स्तूप से प्राप्त व्याकरण-सूत्र चीन ले गया।[५]
किंवदंती[सम्पादन]
अधिकतर विद्वान इसको चन्द्रगुप्त मौर्य के समय का मानते हैं। जैसा कि जैन अनुश्रुतियों से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के अंतिम दिनों में १२ वर्षीय अकाल पड़ा था।[६] बहुत प्रयत्नों के बाद भी जब सम्राट नियंत्रण न पा सके तो वे अपने पुत्र बिन्दुसार को गद्दी सौंपकर दक्षिण भारत के वर्तमान मैसूर के पास श्रवणबेलगोला तपस्या हेतु जैन मुनि भद्रबाहु के साथ चले गये। भद्रबाहु ने चंद्रगुप्त द्वारा देखे गए 16 सपनों का अर्थ बताया और सुझाव दिया की यदि सम्राट चन्द्रगुप्त संलेखना विधि से प्राण त्यागते है तो उनके साम्राज्य को अकाल व सूखें से मुक्ति मिल जाएगी इसलिए उन्होने उन्होंने संलेखना विधि से २९८ ई०पू० में प्राण त्याग दिये। वर्तमान में भी श्रवणवेलगोला के पास चन्द्रगिरि नामक पहाड़ी और पास में ही चन्द्रगुप्त बस्ती नामक मन्दिर है।
मूल पाठ[सम्पादन]
मूल अभिलेख इस प्रकार है:[७]
१ – [महामात्रा] [वच]नेन [ । ] [ स ] बगियानं [ तल दन स ] सपदिन। [ सु ]
२ – [ म ] ते। सुलखिते पुडनगलते। ए [ त ]
३ – [ नि ] वहिपयिसति। संवगियानं [ च ] [ द ] ने....
४ – [ धा ] नियं। निवहिसति। दग-तिया [ ि]यके....
५ –....[ यि ] कसि। सुअ-तियायिक [ सि ] पि गंड [ केहि ]।
६ –....[ यि ] केहि एस कोठागाले कोसं
७ –....
संस्कृत छाया[सम्पादन]
महामात्राणामं वचनेन। षडवर्गीयाणां तिलः दत्तः सर्षपञ्च दत्तम्। सुमात्रः सुलक्ष्मीतः पुण्ड्रनगरतः एतत् विवाहयिष्यति षड्वर्गीयेभ्यश्च दत्तं …… धान्यं निवक्ष्यति उदकात्ययिकाय देवात्ययिकाय शुकात्ययिकाय अपि गण्डकैः धान्यैश्च एष कोष्ठागारः कोषश्च ( परिपूरणीयौ )।[७]
हिन्दी अनुवाद[७]
१ – महामात्र के वचन से संबंगियानं(बंगाल के लोगों)[८] के लिये तिल दिया गया और सरसों दी गयी। सु..
२ – केवल भली प्रकार लक्ष्मीयुक्त पुण्ड्रनगर से यहाँ
३ – भिजवायेगा एवं संवर्गीयों के लिए दिये गये
४ – धान्य को बतायेगा। उदकात्ययिक
५ – देवात्ययिक तथा शुकात्ययिक हेतु एवं
६ – धान्य से यह कोष्ठागार तथा कोष परिपूरणीय है।
७ – ………………..
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]
सन्दर्भ[सम्पादन]
- ↑ Dr. Vishuddhanand Patak, Lucknow. Pracheen Bharatiya Arthik Itihas ( Hindi) ( Beginning To 600 AD). Hindi Grantha Academy Series, 305 Uttar Pradesh, Hindi Sansthan, Lucknow. पृ॰ 146. http://archive.org/details/hdDa_pracheen-bharatiya-arthik-itihas-hindi-beginning-to-600-ad-by-dr.-vishuddhanand-.
- ↑ Datta, Bhagavat (1960). Bharat Varsh Ka Brihad Itihas Vol 2. Delhi Itihas Prakashan Mandal. पृ॰ 262. http://archive.org/details/rCvc_bharat-varsh-ka-brihad-itihas-vol-2-by-bhagavat-datta-1960-new-delhi-itihas-prakashan-mandal. "सम्राट् अशोक से पूर्वकाल के तीन स्पष्ट पढ़े गए लेख इस समय तक मिल चुके हैं। वे हैं, महास्थान (बंगदेश) का शिलालेख, सोहगौरा (जिला गोरखपुर) का ताम्रपत्र और काङ्गड़ा अन्तर्गत बनेर नाले के ऊपर कन्हयारा से नौ मील दक्षिण तथा दाध से एक मील दूर स्थान का शिलालेख । पहले दो लेख अशोक से पूर्वकाल के हैं। कई लोग उन्हें चन्द्रगुप्त के शासन कहते हैं।"
- ↑ उपिन्दर सिंह. प्राचीन एवं पूर्व मध्यकालीन भारत का इतिहास. पृ॰ 351. http://archive.org/details/ashu_20240529. "महास्थान अभिलेख सम्राट द्वारा प्रेषित पुण्ड्रनगर (वर्तमान में महास्थानगढ़ गाँव) जिसमें यह आदेश पारित किया गया था कि सम्बंगीय समुदाय के लोगों को जो अकाल पड़ने से पीडित हैं उनको शीघ्र राहत प्रदान को जाए। इस समुदाय के लोग कदाचित उक्त नगर के ही निवासी थे। राहत कार्य के अतर्गत उन्हें ऋण प्रदान का प्रस्ताव रखा गया था। ऋण 'गंदक' नाम के प्रचलित सिक्कों के स्वरूप में गलादान नामक व्यक्ति के नाम से निर्गत करना था, जो संभवतः उक्त समुदाय का प्रतिनिधि था। राहत कार्य के द्वितीय चरण में अन्नागार से धान्य उपलब्ध कराने की बात की गई थी। अभिलेख के माध्यम से यह प्रशासनिक आश्वासन दिया गया था कि वर्तमान राहत कार्य के माध्यम से समुदाय वर्तमान आपदा से परित्राण पाने में सक्षम होगा। धान्य और गन्दक सिक्कों से कोष पुनः परिपूर्ण हो जाएगा।"
- ↑ ज्योत्सना पाण्डेय, प्रो. राम कृष्ण द्विवेदी (2015). The Yatra Tradition In Ancient India. सेण्टर ऑफ एडवन्स स्टडी, इलाहाबाद, विश्वविद्यालय. पृ॰ 261. http://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.480811.
- ↑ Dr.suniti Kumar Chatujarya. Chini Boudhdharm Ka Itihas. पृ॰ 121. http://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.481560.
- ↑ Delhi University, Romila Thapar. Purva Kalina Bharat, Hindi Translation By Aditya. Narayan Singh Delhi University. पृ॰ 236. http://archive.org/details/LjOa_purva-kalina-bharat-of-romila-thapar-with-translation-by-aditya-narayan-singh-delhi-university. "मेगास्थनीज के अनुसार, जमीन इतनी उपजाऊ थी कि साल में दो फसलें पैदा कर लेना मामूली बात थी। लेकिन अन्य स्रोतों में अकाल का भी जिक्र है। जैन परंपरा के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य के शासन-काल के अंतिम दौर में एक अकाल पड़ा। पूर्वी भारत में महास्थान से प्राप्त एक अभिलेख में, जिसकी तिथि मौर्य काल या इसके शीघ्र बाद के काल में पड़ती है, वे उपाय बताए गए हैं जो अकाल के समय में स्थानीय प्रशासन को करने चाहिए। महाकाव्यों तथा वैदिक साहित्य से संबन्धित मे बारह वर्षों के अकाल का जिक्र हुआ है।"
- ↑ ७.० ७.१ ७.२ डॉ० शिवस्वरूप सहाय, मोतीलाल बनारसीदास. Bhartiya Puralekhon ka Adhyayan ,Part-1. संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग श्री मुरली मनोहर टाउन. पृ॰ 146. https://archive.org/details/bhartiya-puralekhon-ka-adhhyayan/page/n90/mode/1up.
- ↑ डी. आर. भण्डारकर, Epigraphica Indica, पृ. 85
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