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राजस्थान का साहित्यिक आंदोलन

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राजस्थान का साहित्यिक आंदोलन

श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं। श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' राजस्थान के साहित्यिक आंदोलन के जनक हैं। राजस्थान में साहित्यिक आंदोलन की शुरआत वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' ने 16 मई 2010 से की। इसी दिन श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' ने राजस्थान मीडिया एक्शन फॉरम की स्थापना की। श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' ने भारतीय साहित्य और पत्रकारिता के उच्च मानदण्ड स्थापित करने और सांस्कृतिक उन्नयन के लिए प्रदेश के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में जाकर पत्रकारिता-साहित्यिक-सांस्कृतिक परिचर्चा, कार्यशाला, सेमिनार, व्याख्यान, लेखक की बात, साहित्य उत्सव जैसे कार्यक्रम शुरू किए। इनके द्वारा हिंदुस्तान में पहली बार क्षेत्रीय दिवंगत पत्रकार और साहित्यकारों की स्मृति में परिचर्चा का आयोजन भी प्रदेश भर में किए जा रहे हैं।

राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है। यानि इसे आठवीं अनुसूची में स्थान नहीं दिया गया है। ग़ौरतलब है कि 1936 में राजस्थानी को पहली बार संवैधानिक दर्जा देने की मांग उठी थी। लेकिन 2003 में राज्य विधानसभा में इस पर सहमति बनी और प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। केंद्र ने ओडिशा के वरिष्ठ साहित्यकार एस.एस. महापात्र के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया। उन्होंने दो साल बाद रिपोर्ट सौंपी। इसमें राजस्थानी और भोजपुरी भाषा को संवैधानिक दर्जा देने के योग्य घोषित किया गया। 2006 में तत्कालीन गृह मंत्री ने चौदहवीं लोकसभा के कार्यकाल में राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा देने का आश्वासन दिया। लिहाजा बिल भी तैयार कर लिया गया। लेकिन आज तक पेश नहीं किया गया।

वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' अपने राजस्थान साहित्यिक आंदोलन में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की मांग भी कर रहे हैं।

संविधान के अनुच्छेद 343 और 351 के तहत बने कानून में कहा गया कि हिंदी भारत की राजभाषा के तौर पर रहेगी लेकिन इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नही दिया गया।

वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के हिमायती हैं । श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' राजस्थान के साहित्यिक आंदोलन में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने की मांग भी उठाते हैं।

राजस्थान में साहित्यिक अलख जगाने के लिए किसी व्यक्ति के द्वारा इतिहास में पहली बार प्रदेश के प्रत्येक विधानसभा और पंचायत में जाने के कारण वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' को राजस्थान साहित्यिक आंदोलन का जनक कहा जाने लगा है। वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना 'ललकार' का राजस्थान साहित्यिक आंदोलन अनवरत जारी है।

राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के जनक वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार श्री अनिल सक्सेना की कलम से :-

मुख्यमंत्री चाहते थे जयपुर के पहले कार्यक्रम में आना

मैं, दिल्ली में पत्रकारिता करते हुए साल 2010 तक मेरी जन्मस्थली चित्तौड़गढ़ में चार बड़े पत्रकारिता विषय पर कार्यक्रम कर चुका था। इसमें जिले के पत्रकार, साहित्यकार और कलाकारों सहित तत्कालीन जिला कलक्टर श्री आशुतोष गुप्त, आईएएस श्री रवि जैन, श्री राजेन्द्र सिंह शेखावत, तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक श्री टी.सी.डामोर, श्री राघवेन्द्र सुहास, वर्तमान राज्यसभा सांसद राष्ट्रीय संत बालयोगी श्री उमेशनाथ जी महाराज, श्रमजीवी पत्रकार संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री के. विक्रम राव, वरिष्ठ पत्रकार श्री इशमधु तलवार, दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार श्री अतुल अग्रवाल, श्री यशवंत सिंह, वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष श्री सी.पी.जोशी, तत्कालीन सांसद श्री श्रीचंद कृपलानी सहित कई जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों ने भाग लिया।

पत्रकारिता करने के साथ ही कहानी और संस्मरण लिखने का शौक शुरू से था, घर के संस्कारों के चलते आध्यात्म के प्रति रूचि बचपन से रही। मतलब यह कि पत्रकारिता, साहित्य और संस्कृति से मेरा जुड़ाव शुरू से रहा ।

मन में था, साहित्य,संस्कृति और मीडिया के क्षेत्र में कुछ नया करने का। पत्रकारिता के गुरू श्री वीर सक्सेना से चर्चा कर 16 मई 2010 को जयपुर में कार्य करते हुए राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम की स्थापना की। सबसे पहले प्रदेश के पत्रकार, साहित्यकार और कलाकारों को फोरम से जोड़ने में लग गया।

पत्रकारिता-साहित्यिक-सांस्कृतिक विषय पर छोटे-छोटे कार्यक्रम करने के बाद जयपुर पिंक सिटी प्रेस क्लब में बड़े कार्यक्रम की तैयारियों में जुट गया। 10 दिसम्बर 2011 को जयपुर में कार्यक्रम होना तय कर दिया गया। सबसे पहले राजस्थान के सभी संभाग मुख्यालयों पर गया और वहां के अपने पत्रकार साथियों को जयपुर कार्यक्रम में आने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद जिला और विधानसभा क्षेत्रों में जाकर संपर्क किया।

सच तो यह है कि प्रदेश के कुछ शहरों में निराशाजनक बातें सुनने को भी मिली। कुछ ने कहा प्रदेश में कई पत्रकार संगठन चल रहे हैं, इससे क्या होगा ? तो कुछ बोले, पत्रकार संगठन बनते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद कागजों में रह जाते हैं। मैंने फोरम से पत्रकारों सहित साहित्यकारों और कलाकारों को भी जोड़ने की बात कही और समझाया कि यह फोरम पत्रकार संगठन के रूप में नही वरन् प्रदेश के पत्रकार, साहित्यकार और कलाकारों के वैचारिक क्रांति के मंच के रूप में कार्य करेगा। सदस्य संख्या बढ़ने लगी थी।

मैंने पहले ही तय किया हुआ था कि फोरम के सदस्य बनने के लिए सदस्यता शुल्क नही लिया जाएगा। शुरूआत के दिनों में एक-दो जिलों में फोरम के पदाधिकारियों ने शुल्क लेने का प्रयास किया। मैंने, जानकारी मिलने पर सख्ती से बिना सदस्यता शुल्क लिये पत्रकार,साहित्यकार और कलाकारों को जोड़ने का कार्य शुरू करवा दिया।


जयपुर में होने वाले कार्यक्रम का समय नजदीक आ रहा था। वीर भाईसाहब (प्रदेश के वरिष्ठतम पत्रकार) बार-बार जयपुर बुला रहे थे और मैं प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भ्रमण कर अपने साथियों को जयपुर कार्यक्रम का आमंत्रण दे रहा था। मुझे प्रदेश के दूरस्थ गांव और कस्बों के कलमकार साथियों पर विश्वास था।

आखिरकार वीर भाईसाहब ने जयपुर के पत्रकारों को आमंत्रण देने का जिम्मा पूर्व पिंक सिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री राधारमण शर्मा को सौंपा। उन दिनों पिंक सिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री एल.एल.शर्मा जी हुआ करते थे। मैं एक दिन के लिए जयपुर आया। एल.एल.शर्मा जी से मिला। प्रेस क्लब का शुल्क देकर रसीद प्राप्त कर ली और फिर निकल गया दूसरे बाकी बचे शहरों की ओर।

कुछ दिन बाद फिर जयपुर आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी, पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे जी, विधानसभा अध्यक्ष श्री दीपेन्द्र सिंह जी, सूचना जनसंपर्क मंत्री श्री जितेन्द्र सिंह जी, आयुक्त जनसंपर्क निदेशालय आईएएस श्री कुंजीलाल मीणा जी और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री वेदव्यास जी को आमंत्रण देकर अपने बाकी बचे कार्यो को पूरा करने में लग गया।

सबसे पहले वीर भाईसाहब के जरिये विधानसभा अध्यक्ष, जनसंपर्क मंत्री और राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष की सहमति की जानकारी मिली।

मैं बहुत खुश था, जो सोचा, वो हो रहा था। प्रिंटर से लेकर सभी तैयारियों का अंतिम रूप चित्तौड़गढ़ से दिया जा रहा था। यहां तक की मंच पर लगने वाला पोस्टर भी चित्तौड़गढ़ में ही बन रहा था। सैकड़ों की संख्या में आमंत्रण पत्र बन रहे थे। मुख्यमंत्री की सहमति नही मिलने के कारण आमंत्रण पत्र में विधानसभा अध्यक्ष और जनसंपर्क मंत्री का नाम लिखवा दिया गया था।

कोटा में आमंत्रण पत्र देकर मैं जयपुर की ओर जा रहा था, तभी मुख्यमंत्री कार्यालय से विशेषाधिकारी श्री देवाराम जी का काॅल आया और उन्होंने मुख्यमंत्री जी के कार्यक्रम में आने की जानकारी देकर फोरम का परिचय मेल के जरिये भेजने को कहा । मुख्यमंत्री का नाम बिना छपे आमंत्रण पत्र वितरित हो चुके थे । मैंने उन्हें इस बात की जानकारी दी तो उन्होंने कहा साहब ने इस कार्यक्रम में आने की बात कही है, आप तुरंत फोरम का परिचय मेल कीजिए।

मैं समझ नही पा रहा था, अब क्या करूं । लेकिन जल्दी ही अपने लैपटाॅप से फोरम का परिचय मुख्यमंत्री कार्यालय को मेल किया। इसके बाद अपने प्रिंटर को मुख्यमंत्री का नाम लिखा नया आमंत्रण पत्र बनाने का आदेश दिया। वो बोला, साहब वापस से इतने कार्ड कैसे वितरित होंगे । मैंने कहा, तुम तो प्रिंट करो।

एक बार फिर आमंत्रण पत्र बनाये गये। जितने बंटे वो बांटे गये। व्हाटसएप्प के जरिये मुख्यमंत्री के नाम वाले कार्ड को भेजा गया। मैं जयपुर पहुंच कर दूसरी तैयारियों में लग गया। भोजन बनाने वाले हलवाई को अग्रिम पेशगी दी और फिर लग गया अपने आने वाले साथियों के रहने की व्यवस्था करने में ।

आखिर वो दिन भी आ गया। 10 दिसम्बर 2011 की सुबह । मेरे आध्यात्मिक गुरू वर्तमान राज्यसभा सांसद राष्ट्रीय संत बालयोगी श्री उमेशनाथ जी महाराज, मेरे पत्रकारिता के गुरू श्री वीर सक्सेना और मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी (जनसंपर्क) श्री यासीन कार्यक्रम स्थल पहुंच चुके थे। विधानसभा अध्यक्ष, जनसंपर्क मंत्री, सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय के आयुक्त, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष, वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रवीण चंद्र छाबड़ा , श्री के.एस.तोमर सहित प्रदेश के कोने-कोने से सैकड़ों पत्रकार और कलमकार भी पिंक सिटी प्रेस क्लब आ गये। जयपुर के दूसरे वरिष्ठ और अन्य पत्रकार भी आ गये। पिंक सिटी प्रेस क्लब के सभागार में सीटें कम होने के कारण बाहर से आए कई ग्रामीण और कस्बाई कलमकार बाहर ही रह गये।

मेरी आदत के मुताबिक समय पर कार्यक्रम शुरू करवा दिया गया। तीन घंटे के बाद कार्यक्रम समाप्ति की ओर था । जयपुर में पहला सफल कार्यक्रम और यही थी मेरे द्वारा शुरू किये गये राजस्थान साहित्यिक आंदोलन की राजधानी से शुरूआत । प्रदेशभर से पत्रकार, साहित्यकार और कलाकार आए लेकिन सूबे के मुखिया नही आ पाए, जबकी वो इस कार्यक्रम में आना चाहते थे।

(अनिल सक्सेना 'ललकार')



30 जून 2024 को राजस्थान साहित्यिक आंदोलन चूरू पहुँचा

एक रिपोर्ट

राजस्थान  साहित्यिक आंदोलन एक अभिनव पहलः जिला कलेक्टर सत्यानी

राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के संस्थापक अनिल सक्सेना बोले- साहित्य और संस्कृति को परे रखकर पत्रकारिता की कल्पना बेमानी, राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता पर दिया बल

‘भारतीय साहित्य, संस्कृति और मीडिया’ विषय पर परिचर्चा संपन्न*

चूरू, 30 जून। भारतीय साहित्य और पत्रकारिता के उच्च मानदंड स्थापित करने और संास्कृतिक उन्नयन के लिए प्रदेश की प्रत्येक पंचायत स्तर तक चलाया जा रहा राजस्थान साहित्यिक आंदोलन एक अभिनव पहल है। वर्तमान आपाधापी के समय में साहित्य और संस्कृति का संरक्षण बेहद जरूरी है।

जिला कलेक्टर पुष्पा सत्यानी ने प्रदेशभर में चल रहे राजस्थान साहित्यिक आंदोलन की श्रृंखला में रविवार को होटल शक्ति पैलेस में आयोजित साहित्यिक परिचर्चा में यह विचार व्यक्त किए। राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के बैनर तले भारतीय साहित्य, संस्कृति और मीडिया विषय पर आयोजित परिचर्चा की मुख्य अतिथि कलेक्टर पुष्पा सत्यानी ने कहा कि इस तरह की परिचर्चाएं होती रहनी चाहिए। उन्होेंने कहा कि साहित्य और संस्कृति की दृष्टि से चूरू की धरती बड़ी उर्वरा रही है और यहां की धरती से बड़े-बड़े लेखक-साहित्यकार निकले हैं, जिन्होंने हिंदी व राजस्थानी साहित्य को समृद्ध किया है।

राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के संस्थापक एवं राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के जनक वरिष्ठ लेखक-पत्रकार अनिल सक्सेना ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज पत्रकारिता पर साहित्य का उतना प्रभाव नहीं माना जाता है जो शुरुआत में था लेकिन साहित्य और संस्कृति को परे रखकर पत्रकारिता की कल्पना ही बेमानी है। उन्होंने राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की पैरवी करते हुए जोरदार तरीके से मांग रखने की जरूरत बताई। सक्सेना ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की बात करते हुए कहा कि हिंदी देश के सबसे अधिक राज्यों में बोले जाने वाली भाषा है। जिस तरह से दूसरे देशों की अपनी राष्ट्रभाषा है, उसी तरह हिंदी भी हमारी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए।

विशिष्ट अतिथि साहित्यकार कुमार अजय ने चूरू की साहित्यिक परम्परा पर चर्चा करते हुए कहा कि क्षेत्र में हिंदी व राजस्थानी के क्षेत्र में बेहतर काम हो रहा है तथा नए रचनाकारों का उदय आश्वस्त करता है। उन्होंने पद्मश्री कन्हैयालाल सेठिया, गीतकार भरत व्यास, मणि मधुकर, रावत सारस्वत और किशोर कल्पनाकांत जैसे लेखकों का स्मरण करते हुए कहा कि हमारे पास एक गौरवशाली अतीत है और बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाने वाले सशक्त युवा हैं, इससे बेहतर और क्या हो सकता है।

अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार बनवारी लाल खामोश ने कहा कि संस्कृति में भारत के त्यौहार, पहनावे, भाषाएं, धर्म, संगीत, नृत्य और कला शामिल हैं। भारतीय संस्कृति में आध्यामिकता के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी समाया हुआ है। प्रो. कमल कोठारी ने कहा कि साहित्य और पत्राकारिता एक-दूसरे के पूरक हैं और इनके उन्नयन के लिए सतत् प्रयास जरूरी हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार इदरीस राज खत्री ने कहा कि कलमकारों को ऐसी छवि बनानी चाहिए जिससे उनकी रचनाओं की चर्चा हर जगह हो। उर्दू अकादमी के पूर्व सदस्य असद अली असद ने कहा कि वर्तमान परिस्थितियों से हमें निराश नहीं होना चाहिए। लगातार इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को प्रेरित करना चाहिए।   वरिष्ठ पत्रकार बनवारी लाल दीक्षित ने कहा कि आजादी से पहले और वर्तमान की  पत्रकारिता  में बहुत अंतर है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक आशीष गौतम ने कहा कि आजादी से पहले की पत्रकारिता उसी पृष्ठभूमि की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य देश की जनता को राष्ट्र की भावना से जोड़ना और देश को आजाद कराना था। प्रमुख शायर अब्दुल मन्नान ‘मजहर‘ ने कहा कि कलमकार को अपने कलम की कीमत समझनी चाहिए।

सहायक जनसंपर्क अधिकारी मनीष कुमार, किशन उपाध्याय, राधेश्याम चोटिया, विजय चौहान, साहित्यकार राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफिर, भगवती पारीक, राजेन्द्र सिंह शेखावत, शौकत अली खान, बुधमल सैनी,  ओम डायनामाइट, गीता रावत, रचना कोठारी, सुशीला प्रजापत, ओमप्रकाश तंवर, शैलेन्द्र माथुर, मनोज शर्मा, कौशल शर्मा, जगदीश सोनी, महेंद्र सोनी, मनीष सैनी, शिवकुमार तिवारी, हरिसिंह, आर्यनद चौहान, नियाज मोहम्मद, देशदीपक किरोड़ीवाल, नवरत्न प्रजापत, जयप्रकाश स्वर्णकार, रामचंद्र गोयल, शिवकुमार तिवारी, जयप्रकाश बैंगानी, शिव भगवान सोनी, पवन माटोलिया, नरेश उपाध्याय तारानगर, नरेंद्र दीक्षित, आदित्य शर्मा, पंकज शर्मा आदि ने भी विचार व्यक्त किये।

परिचर्चा का शुभारंभ मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर पुष्पा सत्यानी, राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के जनक अनिल सक्सेना और अन्य अतिथियों ने सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया। संचालन वरिष्ठ साहित्यकार इदरीश राज  खत्री   ने किया। लोक संस्कृति शोध संस्थान नगरश्री ट्रस्ट के सचिव श्यामसुन्दर शर्मा ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर राजस्थान साहित्यिक आंदोलन के जनक वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार अनिल सक्सेना ‘ललकार‘ के कहानी संग्रह ‘आख्यायिका‘ का विमोचन जिला कलक्टर और अतिथियों ने किया। परिचर्चा में चूरू जिले के पत्रकार, साहित्यकार, कलाकार और प्रबुद्धजन भी मौजूद रहे।

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लेखक श्री अनिल सक्सेना ‘ललकार‘ का कहानी संग्रह ‘आख्यायिका‘ की विशेषताएं, जो उसे दूसरी पुस्तकों से अलग कर विशेष बनाती है: -

1 राजस्थान साहित्य अकादमी के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘आख्यायिका‘ की कहानियों की बुनावट बेहद सरल है। वह कहीं भी चमत्कार पैदा करने की कोशिश नही करते हैं।

2 इन कहानियों में भाषा और कथ्य की सरलता जो अनिल सक्सेना ‘ललकार‘ ने रखी है, उसे पढ़कर पाठक को लगता है कि वो स्वयं कहानी का नायक है या उसके आस-पास यह घटना हो रही है।

3 अनिल सक्सेना ‘ललकार‘ अपने इस कहानी संग्रह की रचनात्मकता को बहु अंलकारिक बनाने से बचे हैं।

4 आख्यायिका की कहानियों में मनुष्य के राग-विराग, प्रेम, दुख-सुख, करूणा, हास-उल्लास और पीड़ा के लगभग सभी रंग दिखलाई देते हैं।

5 जीवन और प्रकृति की बारीक से बारीक रेखाओं से निर्मित इन कहानियों में पाठक के मन को छूने की क्षमता है।

6 लेखक ने वैसे ही सहज होकर कलम चलाई है, जो उसने आस-पास घटित होते देखा है।

7 आख्यायिका की कहानियों की बुनावट में किसी तरह का बनावटीपन नही है और ना ही यह कहानियां पहले से तय नरेटिव को लेकर लिखी है। इसकी कहानियां सीधे और सच्चे तरीके से जीवन में उतरती है।

8 इसकी प्रत्येक कहानी में सकारात्मक संदेश है। सच्ची घटनाओं को कहानी के रूप में प्रेरणादायी बनाने का कार्य लेखक ने अपने कहानी संग्रह ‘आख्यियिका‘ के द्धारा किया है।

9 ‘आख्यायिका‘ पुस्तक की कोई भी कहानी पढ़ना शुरू करने पर जब तक की वो कहानी खत्म नही हो जाए, तब तक पाठक उसको छोड़ता नही है।


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