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रावत रतन सिंह चुंडावत

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रावत रतन सिंह चुंडावत को हाड़ा रतन सिंह चुंडावत के नाम से जाना जाता है, जो उचित नहीं हैं। ये कुंवर चूड़ा के ही वंशज थे, अत उन्हे चुंडावत कहा गया। येे हाड़ी रानी के पति थेे। इनकी नया-नया ही विवाह हुआ था, पर राणा राज सिंह ने इन्हे युद्ध हेतु दूत के हाथो पत्र भेजा। जिसमे लिखा था की तुम्हे युद्ध में औरंगज़ेब को उदयपुर और अरावली पर्वतमालाओं में रोककर रखना है। युद्ध हेतु वे तत्पर नहीं हुए, क्योंकि इनका अभी ही तो विवाह हुआ था। परंतु हाड़ी रानी ने युद्ध हेतु उद्धभोदित किया और कहा की "चुंडावत तो हरावल दस्ते में युद्ध करके विजयी हुए है"। वे युद्ध हेतु चले गए परंतु इनका मन नहीं लग रहा था। क्योंकि वे अपनी पत्नी की चिंता में डूबे थे इन्होंने सेनापति को हाड़ी रानी के हाल- चाल पूछने को कहा, वह सेनापति पूछकर आ गया, पर इनको संतुष्टि न होने से फिर से भेजा। जब तीसरी बार इन्होंने सेनापति को पत्नी की निशानी लाने को कहा तो पत्नी हाड़ी रानी को लगा की मेरे स्वामी युद्ध में जाकर भी मेरी चिंता कर रहे है, अतः हाड़ी रानी ने खंजर से अपना मस्तक काटकर थाल में सजाकर चुनरी से ढक दिया। युद्ध में सेनापति कांपते हाथो से थाल रावत रतन सिंह चुंडावत को दिया तो, उनके आंखों में आसू आ गए। उन्होंने क्रोधित होकर पत्नी के मस्तक को गले में टांगकर, ऐसा भयंकर युद्ध किया जिससे औरंगज़ेब को भागना पड़ा। अंत में इन्होंने स्वयं का मस्तक काटकर युद्ध भूमि मे फेंक दिया।


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