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वीहलजी चौहान

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वीहलजी चौहान
पूर्वाधिकारी राव बाहिल चौहान
उत्तराधिकारी राव कल्हण चौहान
संताने
राव कल्हण, धड़ंगराव, सत्या, माना, लखा, बावल, बजरंग, करणा, हंसा
पूरा नाम
राव वीहलदेव चौहान राजपूत
राजघराना राजपूताना
धर्म सनातन धर्म

पृष्ठभूमि[सम्पादन]

नाडोल के शासक राव लक्ष्मण चौहान के द्वितीय पुत्र राव अनूपजी की नवीं पीढ़ी में वीहलजी चौहान हुए जो कि तत्कालीन ठिकाना चेता ( वर्तमान कामलीघाट, देवगढ़, राजसमन्द) के ठिकानेदार थे और आस-पास के विस्तृत भू-भाग के स्वामी थे। यह स्थान वर्तमान में राजसमन्द जिले में भीम- देवगढ़ क्षेत्र में नेशनल हाइवे कामलीघाट चौराहे से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है।

इतिहास[सम्पादन]

राजपूत काल में ग्यारवीं सदी के समापन के साथ ही हिन्दुस्तान के अन्तिम सम्राट पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली पर कुछ समय बाद तुर्को का शासन स्थापित हो गया था। बादशाह शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने दूसरे दशक से तीसरे दशक के मध्य मेवाड़ (मेदपाट) राज्य पर अधिकार करने के लिए कई बार बड़ी सेनाओं के साथ आक्रमण किये। उन दिनों मेवाड़ की राजधानी नागदा हुआ करती थी । रावल जैत्रसिंह "जैतसी" नागदा के शासक थे। एक बार की बात है जब वीहलजी ने सुना कि दिल्ली का बादशाह इल्तुतमिश मेवाड़ की राजधानी नागदा पर अधिकार करने के लिए एक बड़ी सेना के साथ आया है तो वे भी अपने साथियों के साथ तत्कालीन मेवाड़ के शासक रावल जैत्रसिंह की सहायता हेतु पहुंचे। मुगल सेना ने अपना पड़ाव दिवेर-छापली के समीप बनाया। रात्रि पड़ाव के दौरान जब बादशाह की सेना छावनी में विश्राम कर रही थी तब कड़े पहरे को भेदते हुए, प्रहरियों की आंखों से बचकर वीहलजी ने उस पड़ाव में प्रवेश कर लिया। जिसमें बादशाह इल्तुतमिश और उनकी बेगम सो रहे थे। वीहलजी ने कुलदेवी माँ आशापुरा के आशीर्वाद से सोई हुई बेगम एक चोटी और बादशाह की एक मूँछ काटकर प्रहरियों से बचते हुये बाहर आ गए। अगली सुबह जब बादशाह और बेगम की आंखें खुली तो बादशाह की एक मूँछ तथा बेगम की एक चोटी कटने सूचना से पड़ाव में हड़कम्प मच गया। इस पर बादशाह और बेगम घबरा गए। जिस व्यक्ति ने उनकी चोटी और मूँछ काटी है, वह उनका सिर भी कलम कर सकता था परन्तु उसने ऐसा न कर बादशाह को एक संकेत दिया है। बादशाह ने निर्णय किया कि जिस व्यक्ति ने इतना साहसिक कार्य किया है वह निःसंदेह मेवाड़ की सेना का कोई बहादुर सैनिक ही होगा और जिस सेना में ऐसे देशभक्त और निर्भीक सैनिक हो, उन पर सफलतापाना मुश्किल है। यह सोचकर बादशाह भयभीत और निराश होकर अपनी सेना के साथ वापस दिल्ली की ओर प्रस्थान कर लिया। उधर प्रातः होने पर रावल जैत्रसिंह और उनकी सेना बादशाह की सेना द्वारा आक्रमण की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि उनके गुप्तचरों ने उन्हें सूचना दी कि बादशाह की सेना तो दिल्ली की ओर कूच कर चुकी है। इस सूचना से रावल जैत्रसिंह बड़े आश्चर्यचकित हो गये कि बादशाह के वापस लौटने का क्या रहस्य है। उन्होंने तत्काल अपने सभासदों और सलाहकारों की एक आवश्यक आपात बैठक बुलाई, जिसमें बादशाह के वापस लौटने पर विचार-विमर्श और चर्चा चल रही थी। उस समय वीहलजी चौहान, रावल जैत्रसिंह की स्वीकृति से बैठक में बेगम की कटी हुई चोटी और बादशाह की मूँछ को लेकर उपस्थित हुए और विस्तार से सारा वृत्तांत बताया। रावल जैतसी वीहलजी की पराक्रमता, अदम्य साहस एवं शौर्य और देशभक्ति की इस मिशाल को देखकर अत्यन्त प्रसन्न एवं अभिभूत हूए और उसी समय विहलजी को "'रावत"' की पदवी से विभूषित कर कुंभलगढ़ के समीप गढ़बोर (चारभुजा) की जागीर प्रदान की। वीहलजी का निधन अल्पायु मे ही हो गया था। इनके पुत्र कल्हण चौहान थे जो इतिहास में काला चौहान के नाम से जाने जाते हैं, उन्होंने भी अपने पिताश्री के समान कई साहसिक कार्यकर शूरवीरता का परिचय दिया, जिसमें पिपलाज माता को स्थापित करना प्रमुख था। कल्हण चौहान के नाम से कई नगरों और गांवों की स्थापना की जिसमें केलवा, केलवाड़ा, कालागुमान, कालेटरा, कालागुन, कालादेह प्रमुख हैं। अनूपवंशीय एवं अन्हलवंशीय चौहान राजपूत आज भी अपने पूर्वज को मिली "'रावत"' पदवी को बड़े गर्व एवं शान से अपने नाम के आगे अंकित करते हैं।

सन्दर्भ[सम्पादन]

https://www.bhaskar.com/news/RAJ-PALI-MAT-latest-pali-news-062012-2524640-NOR.html


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