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श्री आदोरजी महाराज ( आदरशी महाराज)

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भाटुन्द के श्री आदोरजी महाराज ( आदरशी महाराज ) गोमतीवाल ब्राहमण जाती के जागीरदार थे। उनके पास 3600 बीघा जमीन थी। सिरोही दरबार द्वारा ऊनको यह गाँव दान में मिला था। भाटुन्द गाँव का नामकरण भी उन्होंने ही करवाया था। उस समय इनकी जमिन जायदाद पर किसी भी प्रकार का कोई भी टैक्स नहीं लगता था। ऊनकी शादी गोगुन्दा रियासत में पालीवाल ब्राहमणो के 42 परगना ( गाँव ) के वढेर (पाटवी) दियाण गाँव में हुई थी। भाटुन्द गाँव के धणी ( मुखिया ) थे। जब चितौड़गढ़ में राजा रतनसिहंजी रावल व अलाउद्दीन खिलजी का घमासान युद्ध हुआ जिसमें राजा रतनसिहंजी रावल की वीरगति हुई थी। उनकी रानी पद्मिनी ने हजारों राजपुत वीरांगनाओ के साथ अपना सतित्व बचाने केलिए जौहर किया था। चित्तौड़गढ़ पर अलाउद्दीन खिलजी ने फतह करने के 6 माह बाद जालौर रियासत पर आक्रमण करने के लिए सेना रवाना हुई, बिच में ब्राहमणो की भाटुन्द नगरी पड़ती थी। यहाँ के ब्राहमणो व सेना के बीच लड़ाई हो गई , यहाँ के ब्राहमण अपना ब्राहमणपन( हिन्दुत्व) बचाने केलिए श्री आदोरजी महाराज अपने 18 परिवारों सहित लाखाजौहर में समर्पित हुए थे। इस लाखा जौहर में लगभग 150 जन जिसमें बच्चे, औरतें, जवान, बुढे सब लोग समर्पित हुए थे। भारत के इतिहास का दुसरा सबसे बड़ा लाखाजौहर था, ऊनकी बहु मुहर्रते गई हुई थी। जिसने दो पुत्रो को जन्म दिया था। सिरोही दरबार द्वारा काफी प्रयासो व आश्वासनो के बाद 40 - 50 साल बाद बड़े पुत्र को भाटुन्द नगरी में भेजने के लिए मामाजी सहमत हुए थे। बड़े बेटे को भाटुन्द भेजा गया था। उनका छोटा भाई वही दियाण में मामा के यहाँ ही रहा था। मामा के साथ में रहने के कारण उन्होंने मामाजी की अटक पालीवाल लगा दी थी। यहाँ भाटुन्द में सिरोही दरबार ने पुरी जमीन का वारिसदार बड़े बेटे को बनाया था। श्री आदोरजी महाराज ने बाहर के सभी ब्राहमणों को आमंत्रित किया था। यहाँ पर रहने पर जमीन दी जाएगी। बाहर से यहाँ रहने केलिए आए हुए ब्राहमणों को जमीन श्री आदोरजी महाराज ने दी थी। जहाँ पर लाखाजौहर हुया था वहाँ पर श्री आदोरजी महाराज की भव्य छतरी है। श्री आदोरजी महाराज भाारद्वाज गोत्र के थे। उनकी श्री चामुंडा माता कुलदेवी हैं। इनके श्री भद्रेश्वर महादेव इस्ट देव (कुलदेवता ) हैं।


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