समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६
समान पारिश्रमिक अधिनियम, १९७६ भारत की संसद द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है जो लिंग के आधार पर पारिश्रमिक के मामले में भेदभाव को रोकता है। इस कानून के अनुसार, कोई भी मालिक किसी भी मजदूर को लिंग के आधार पर एक ही काम या समान प्रकृति के काम के लिए एक समान मजदूरी या वेतन भुगतान करेगा।
इस अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं[सम्पादन]
1. पारिश्रमिक:- पारिश्रमिक से अर्थ है कि किसी व्यक्ति को उसके काम के बदले में दी जाने वाली मजदूरी या वेतन और अतिरिक्त उपलब्धियां चाहे वे नगद या वस्तु के रूप में दी गयी हो।
2. एक ही काम या समान प्रकृति का काम :- एक ही काम या समान प्रकृति के काम से तात्पर्य ऐसे कार्य से है जिसके करने में समान मेहनत, कुशलता या जिम्मेदारी की जरूरत हो, ज बवह समान परिस्थिति में किसी महिला या पुरूष द्वारा किया जाता है।
भर्ती में लिंग के आधार पर भेदभाव :- किसी भी व्यक्ति समान प्रकृति के कार्य की भर्ती के दौरान पुरूष व महिला में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। पदोन्नति (प्रमोशन) अभ्यास (प्रशिक्षण) या स्थानांतरण में भी भेदभाव नहीं किया जा सकता है। परंतु अगर कोई कानून किसी कार्य में महिला की भर्ती पर रोक लगाता है, तो यह अधिनियम उस पर लोगू नहीं होगा।
सलाहकार समितियां :- महिलाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए सरकार एक या एक से ज्यादा सलाहकर समितियों का गठन करेगी , जो ऐसे प्रतिष्ठानों या केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित रोजगारों में महिलाओं को नियोजित करने की सीमा के संबंध में सलाह देगी। सलाहकार समिति अपनी सलाह सरकार को सौंपते समय प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिलाओं की संख्या, काम की प्रकृति, काम के घंटे और वह सभी आवश्यक बातें महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के अवसरों को बढ़ावा देती हो उनका ध्यान रखेगी।
शिकायतें एवं दावे :- सरकार अधिसूचना द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति करेगी, जो इस अधिनियम के उल्लंघन की शिकायतें और समान मजदूरी न प्राप्त होने से संबंधित दावों की सुनवाई और उस पर फैसला देंगे। यह अधिकारी श्रम अधिकारी के पद से नीचे का काम नहीं होगा। यह अधिकारी पूरी जांच के बाद शिकायत करने वाले को समान मजदूरी के संबंध में वह रकम जिसका वह हकदार है, देने का आदेश देगा तथा यह अधिकारी मालिक को आदेश दे सकता है कि वह ऐसे कदम उठायें जिससे इस अधिनियम का पालन हो सके। अगर शिकायतकर्ता या मालिक आदेश से खुश नहीं है तो वह 30 दिन के भीतर सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी के सामने अपील कर सकते हैं।
रजिस्टर:- प्रत्येक मालिक उसके द्वारा कार्य करने वालों की सूची का रजिस्टर बनायेगा।
निरीक्षक (इंसपेक्टर) :- सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत एक निरीक्षक नियुक्त करेगी, जो यह देखेगा कि अधिनियम के अंतर्गत दिये गये नियमों का सही ढंग से पालन हो रहा है या नहीं। निरीक्षक किसी कार्य स्थान में जा सकता है। किसी भी व्यक्ति से पूछताछ कर सकता है और कोई भी कागजी रिकार्ड देख या मंगवा सकता है या उसकी फोटोकापी करवा सकता है। निरीक्षक जब किसी व्यक्ति को पूछताछ या कागजी रिकार्ड के संबंध में बुलाता है तो ऐसे व्यक्ति का आना जरूरी है।
दण्ड[सम्पादन]
यदि कोई भी मालिक -
1. अपने मजदूरी का रजिस्टर सुरक्षित नहीं रखता है,
2. किसी भी तरह का कागजी रिकार्ड जो मजदूरों से संबंध रखता है, पेश नहीं करता।
3. किसी मजदूर को पेश होने से रोकता है,
4. कोई सूचना देने से इंकार करता है, तो उसे एक महीने की जेल एवं 10 हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
इसी तरह अगर कोई मालिक किसी मजदूर को:-
1. समान मजदूरी नियम का उल्लंधन करके भर्ती करता है।
2. वेतन में लिंग के आधार पर भेदभाव करता है,
3. किसी भी प्रकार का लिंग भेदभाव करता है,
4. सरकार के आदेशों का पालन नहीं करता है,
तो इस अधिनियम के अन्तर्गत उसे कम से कम 10 हजार रूपये और अधिक से अधिक 20 हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है या कम से कम तीन महीने, और अधिक से अधिक एक साल तक की जेल या दोनों भी हो सकती है। अगर वह व्यक्ति दुबारा ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसे दो साल तक की जेल हो सकती है। अगर कोई भी व्यक्ति मालिक के कहने पर कोई भी कागजी रिकार्ड छिपाता है या उपलब्ध कराने से इंकार करता है तो उसे पांच सौ रूपये का जुर्माना हो सकता है।
कम्पनी द्वारा कृत अपराध : अगर यह अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया हो तो वह व्यक्ति जो उस समय कंपनी के कार्य को देख रहा हो और जिसका कंपनी के कार्य पर पूर्ण रूप से नियंत्रण हो, वह व्यक्ति और कंपनी जिम्मेदार माने जाएंगे।
कार्यान्वयन[सम्पादन]
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 का कार्यान्वयन दो स्तरों पर किया जाता है-[१]
केन्द्रीय क्षेत्र : इस अधिनियम का कार्यान्वयन केन्द्र सरकार के प्राधिकरण द्वारा अथवा के अंतर्गत चलाए जा रहे किसी रोजगार अथवा रेल प्रशासन के संबंध में अथवा केन्द्र सरकार द्वारा अथवा के अंतर्गत स्थापित किसी बैंकिंग कंपनी, खान, आयल फील्ड अथवा प्रमुख बंदरगाह अथवा किसी निगम के संबंध में केन्द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। केन्द्रीय क्षेत्र में इस अधिनियम को लागू करने का कार्य मुख्य श्रम आयुक्त (केन्द्रीय) को सौंपा गया है जो केन्द्रीय औद्योगिक सम्पर्क मशीनरी (सीआईआरएम) का प्रमुख होता है। केन्द्र सरकार ने निरीक्षक के रूप में श्रम इन्फोर्समेंट अधिकारियों की नियुक्ति की है जो इस बात की जाँच करते हैं कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उन कर्मचारियों जिन्हें फॉर्म डी में कर्मचारियों के रॉल का रखरखाव करना अपेक्षित है, द्वारा संगत पंजिकाओं/अभिलेखों को प्रस्तुत कर पालन किया जा रहा है अथवा नहीं। इस अधिनियम के किसी प्रावधान के उलंघन के संबंध में शिकायतों तथा पुरुष और महिला कामगारों को समान दर पर मजदूरी का भुगतान नहीं करने से उत्पन्न दावों की सुनवाई तथा निवारण करने के उद्देश्य के लिए प्राधिकरणों के रूप में सहायक श्रम आयुक्तों की नियुक्ति की गई है। सहायक श्रम आयुक्त द्वारा किए गए निर्णय के संबंध में शिकायतों की सुनवाई करने के लिए अपीलीय प्राधिकरणके रूप में क्षेत्रीय श्रम आयुक्तों की नियुक्ति की गई है।
राज्य क्षेत्र :केन्द्र सरकार द्वारा सृजित रोजगारों को छोड़कर सभी रोजगारों के संबंध में कार्यान्वयन का कार्य राज्य सरकार के पास है।
महिलाओं के लिए बढ़ते रोजगार के अवसर मुहैया कराने तथा अधिनियम के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा करने करने के लिए सरकार को सलाह देने हेतु अधिनियम के अंतर्गत केन्द्र में एक केन्द्रीय सलाहकार समिति का गठन किया गया है। समिति का पुनर्गठन राजपत्र अधिसूचना दिनांक 12.10.2010 के तहत किया गया है।
सन्दर्भ[सम्पादन]
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