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सुर्यसिध्दांत के अनुसार लग्न साधन विचार (उदाहरणसहित)

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सुर्यसिध्दांत के अनुसार लग्न साधन विचार (उदाहरणसहित)

सुर्यसिध्दांत यह वेदांग का एक भाग है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र के त्रिस्क्ंद में से एक प्राचीन सिध्दांत ग्रंथ के रूपमें इसे विशेष मान्यता प्राप्त है। इ. स. पुर्व ६ वी शताब्दी से इ. स. १२०० तक इसमें विभिन्न्‍ आचार्यों ने संशोधन करके टिका लिखी है।

    ग्रहों की गणना, अयन चलन, लग्न साधन इ. को १४ अध्यायों में समाविष्ट किया गया है। अध्याय ३ त्रिप्रश्नाधिकार में सुक्ष्म लग्न साधन विधि दी गई है।

    सुक्ष्म लग्न साधन के लिए हमें कुछ संस्कार करने पडते हैं जिनकी परिभाषा निम्नानुसार है।

लग्न:- इष्ट समय पर सुर्य के क्रांतीवृत्त्‍ मार्ग पर जो बिंदू पूर्व क्षितिज पर उदय होता है उसे लग्न कहते हैं। ज्योतिषशास्त्र में सभी भावों में लग्न भाव को विशेष महत्व प्राप्त्‍ है।

सायन स्पष्ट रवि:- इष्ट समय के रविस्पष्ट में उस दिन के अयनांश मिलाने पर सायन स्पष्ट रवि प्राप्त्‍ होता है।

जन्मेष्ट घटिपल:- जन्म समय को स्थानिक सुर्योदय में से घटाकर ढाई से गुना करने पर इष्ट घटि पल प्राप्त्‍ होते हैं।

पलभा साधन:- बारा अंगुल की शंकुकी छाया, समतल धरातल पर विषुवव़त्त्‍ पर स्पष्ट मध्यान्ह काल के समय (२१ मार्च के दिन) जितनी पडती है उससे उस स्थान की पलभा ज्ञात होती है। पुर्वकाल की पलभा याने आधुनिक काल का अक्षांश। इसे अंगुल, प्रतिव्यंगुल में मापा जाता है। पलभा ज्ञात करने का आधुनिक सुत्र

पलभा = २५ – ६२५-(अक्षांश x १०)

वेदोपलब्ध् लंकोदय पल:- क्रांतीवृत्त्‍ यह विषुववृत्त्‍ से थोडा तिरछा होने के कारण प्रत्येक राशि का उदय काल भिन्न्‍ भिन्न्‍ होता है। प्राचीन समय की मान्यता अनुसार लंका यह विषुववृत्त्‍ पर है ऐसा मानकर महर्षियोंने पलभा द्वारा प्राप्त्‍ राशियों के उदयमान पलों को लंकोदय पल कहा है। निम्न्‍ सारीणी में मेषादि राशियों के पल विषुववृत्त्‍ पर निश्चित है, क्योंकि विषुववृत्त्‍ पर विषुव दिन को पलभा ०० होती है।

वेदोपलब्ध्‍ लंकोदय पल सारीणी

राशि

(पलभा ००)

मेष

मीन

षभ

कुंभ

मिथुन

मकर

कर्क

धनु

सिंह

वृश्चिक

कन्या

तुला

लंकोदयपल २७८ २९९ ३२३ ३२३ २९९ २७८

स्वोदय पल संस्कार:- पलभा एवं स्पष्ट सायन सुर्य इनकी सहायता से इष्ट स्थल का चरपल ज्ञात करने के लिए, उस विशिष्ट स्थान की पलभा को क्रमश: तिन जगह १०, ८ एवं १०/३ से गुना करने पर जो गुणनफल आएगा उसे चरखंड कहेंगे और उन्हें उपरोक्त तालिका में क्रमश: घटाने और जोडनेपर राशियों के स्थानिक स्वोदय मान प्राप्त्‍ होंगे। सुक्ष्म लग्न साधन के लिए त्रिप्रश्नाधिकार में निम्न सुत्र दिया है।

“षडगुणितो नतकालो रवेर्नतांशा भवन्ति, प्राक्परयो:।

तैयुक्तोना दिनक़द्विषुवांशा: स्यु: खलग्नविषुवांशा:॥

तत: खलग्नं ज्ञात्वा, तस्मादयमं दिनज्यकाभागम॥

याम्योत्तरापमाभ्यामुत्पन्नं यष्टिकोणाख्यम॥

गोलक्रमात खलग्नधुज्याचापं युतोनितं स्वाक्षै:।

तामिह कोटिं, मत्वा विषुवांशं, वै परापमं यष्टिम॥

साध्यास्ततो भुजांशास्तैर्युक्तं मध्यकं, स्फुटं लग्नम।

सूक्ष्मं गोलज्ञानां समक्षमेवं बुधैश्चिन्त्यम॥

सुत्र के अनुसार तात्कालिक सायन सुर्य जिस राशी पर हो, उस राशी के भुग्तांश्‍ और भोग्यांशों को तात्कालिक सुर्य की राशी के उदयमान से गुणाकार ३० का भाग देने पर क्रमश: भुक्त और भोग्यफल होते हैं। इष्टाघटिकाओं के पलों में भोग्यफल को घटकार आगे की राशियों के उदयमान जहॉ तक घट सके घटायें। जो घटे उसको शुध्द राशि और जिस राशि का उदयमान नहीं घटे उसको अशुध्दराशि कहते हैं। घटाने पर जो लब्धि ‘अंशादि’ आवे उसको शुध्दराशि संख्या में मेषादि में जोडने पर लग्न होता है। ऐसे ही भुक्तांशुओं को और भुक्तराशियों के उदयमानों को इष्टघटिका के पलों में घटाकर पूर्वोक्त्‍ रीति से गुणन भजन द्वारा जो अंशादि फल आवे उसको पूर्वोक्त अशुध्द “मेषादि” राशिसंख्या में घटाने से लग्न होता हैा यह सायन लग्न होता है इसमें अयनांश घटाने पर निरयनलग्न प्राप्त्‍ होता है। इसे हम उदाहरण लेकर स्पष्ट करेंगे।

किसी जातक का जन्म १७/११/२०१७, जन्मसमय दिन में ११ बजे, स्थान नागपूर है।

अक्षांश २१-०९ उत्त्र, रेखांश ७९-०६ पुर्व

जन्मकालीन स्पष्‍ट रवि ०७-००-५७-१०

अयनांश-२४-०६-१२, पलभा (नागपूर)४-४०.

रवि उदय ६.२७

१) स्थानिक चरपल साधन:-

  अ) ४-४०x१०=४६-४०=     ४७ (पुर्णांक)

  ब) ४-४०x८=३७-२०=      ३७ (पुर्णांक)

 क) ४-४०x१०/३=१५-३३=   १६ (पुर्णांक)

उपरोक्त पलभा को लंकोदय मान में से +/- करने पर नागपूर के मेषादि स्वोदय पल मिलेंगे।

राशि मेष

मीन

वृषभ

कुंभ

मिथुन

मकर

कर्क

धनु

सिंह

वृश्चिक

कन्या

तुला

(-) (-) (-) (+) (+) (+)
लंकोदयपल २७८ २९९ ३२३ ३२३ २९९ २७८
चरपल -४७ -३७ -१६ +१६ +३७ +४७
नागपूर

स्वोदय पल

२३१ २६२ ३०७ ३३९ ३३६ ३२५

२) जन्मेष्ट घटिपल साधन

= (जन्मसमय – रविउदय) x २.५

= (११.००-६.२७) x २.५ = ११ घटी-२२पल

                     = ६८२ पल

३) इष्टकालीन सायन सुर्य साधन

जन्मकालीन स्पष्ट रवि           ०७-००-५७-१०

(१७/११/१७ दिन में ११ बजे)

+ अयनांश                    ००-२४-०६-१२

सायन स्पष्ट रवि                    ०७-२४-०३-२२

                              - ०७-००-००-००

सायन वृश्चिक में रवि के भुगतान    ००-२५-०३-२२

इसको ३० अंश में से घटाने पर भोग्यांश मिलेंगे

                                 ३०-००-००

                                 -२५-०३-२२

                                 ०४-५६-३८

इसके पल बनाने पर (०४X६०) + ५६ = २९६ पल ३८ विपल

४) भोग्यफल साधन

= भोग्यांश x वृश्चिक राशी स्वोदय मान

                ३०

= २९६-३८ X ३३६     = ५५-१९ पल        

     ३०

इष्टपल में से इसे घटाने        ६८२-००

                         - ५५-१९

                          ६२६-४१

- धनु राशी के स्वोदय पल     ३३९-००

                          २८७.४१

२८७.४१ पल में से मकर राशि के स्वोदय पल नही घटते इसलिए ये अशुध्दराशि हैा

शेष्पल x ३०              = अंशादि भोग्‍

अशुध्दराशि के उदयमान

= २८७.४१x३० = २८-१६-३२ (अशुध्दराशि के भोग्यांश)

    ३०७

अब शुध्दराशि + भागाकार   =   सायन लग्न

०९-००-००-०० + ००-२८–१६-३२ =  ०९-२८–१६-३२ 

- अयनांश घटाने पर           ००-२४-०६-१२

स्पष्ट निरयन लग्न            ०९-०४-१०-२०

इस प्रकार सुर्यसिध्दांत की सुक्ष्म लग्न साधन वि‍धि द्वारा स्पष्ट लग्न प्राप्त्‍ किया जा सकता है।


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