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सूर्य जन्मोत्सव

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सूर्य महोत्सव
सूर्य जन्मोत्सव
चित्र:Shri Surya Bhagvan bazaar art, c.1940's.jpg
हिन्दू धर्म के मान्यता अनुसार वसंत सप्तमी के दिन सूर्य भगवान का जन्म हुआ था जिसके कारन सूर्य जन्मोत्सव काफी प्रसिद्ध है
अन्य नाम सूर्य जन्मोत्सव
अनुयायी हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध [१]
उद्देश्य धार्मिक निष्ठा, उत्सव
उत्सव इस दिन नमक त्याग कर सूर्य देव आवाहन कर हवन और पूजन किया जाता है। सूर्य देव की विध वत व्रत और पूजन का महत्व है।
अनुष्ठान पूजा, व्रत, उपवास, कथा, हवन, दान, नमक त्याग
आरम्भ वसंत सप्तमी से या सरस्वती पूजा के दूसरे दिन
समापन वसंत अष्टमी
तिथि हिन्दू पंचांग अनुसार, 12 फरवरी 2019, (दक्षिण भारत एवं दक्षिणपूर्व एशिया)
समान पर्व महाशिवरात्रि, वसन्त पञ्चमी, सोमवती अमावस्या

सूर्य महोत्सव, रथसप्तमी या सूर्य जन्मोत्सव के नाम से विश्व प्रख्यात सूर्य जन्मोत्सव, सूर्य महोत्सव सूर्य देव के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के मान्यता अनुसार वसंत सप्तमी के दिन सूर्य भगवान का जन्म हुआ था। यह त्यौहार हिन्दू धर्म के सूर्य देव को नमक तथा अन्न जल त्याग कर सूर्य व्रत किया जाता है।[२] [३][४][५]एक बार देवता और दानवो के युद्ध में देवता पराजित हो गये थे | देव माता अदिति बहुत उदास हुई और उन्होंने तब देवताओ के स्वर्ग वापसी के लिए घोर तपस्या की , उन्हें वरदान मिला की भगवान् सूर्य उन्हें विजय दिलवाएंगे और वे अदिति के पुत्र रूप में जल्द ही अवतार लेंगे | समय आने पर सूर्य देवता का जन्म हुआ और उन्होंने देवताओ को असुरो पर विजय दिलवाई।

सूर्य देव जन्म[सम्पादन]

सूर्य देव के जन्म की यह कथा भी काफी प्रचलित है। इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र मरिचि और मरिचि के पुत्र महर्षि कश्यप थे। इनका विवाह हुआ प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ। दीति से दैत्य पैदा हुए और अदिति ने देवताओं को जन्म दिया, जो हमेशा आपस में लड़ते रहते थे। इसे देखकर देवमाता अदिति बहुत दुखी हुई। वह सूर्य देव की उपासना करने लगीं। उनकी तपस्या से सूर्यदेव प्रसन्न हुए और पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय पश्चात उन्हें गर्भधारण हुआ। गर्भ धारण करने के पश्चात भी अदिति कठोर उपवास रखती, जिस कारण उनका स्वास्थ्य काफी दुर्बल रहने लगा। महर्षि कश्यप इससे बहुत चिंतित हुए और उन्हें समझाने का प्रयास किया कि संतान के लिए उनका ऐसा करना ठीक नहीं है। मगर, अदिति ने उन्हें समझाया कि हमारी संतान को कुछ नहीं होगा ये स्वयं सूर्य स्वरूप हैं। समय आने पर उनके गर्भ से तेजस्वी बालक ने जन्म लिया, जो देवताओं के नायक बने और बाद में असुरों का संहार किया। अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें आदित्य कहा गया। वहीं कुछ कथाओं में यह भी आता है कि अदिति ने सूर्यदेव के वरदान से हिरण्यमय अंड को जन्म दिया, जो कि तेज के कारण मार्तंड कहलाया। सूर्य देव की विस्तृत कथा भविष्य, मत्स्य, पद्म, ब्रह्म, मार्केंडेय, साम्ब आदि पुराणों में मिलती है। प्रात:काल सूर्योदय के समय सूर्यदेव की उपासना करने से सूर्यदेव प्रसन्न रहते हैं और जातक पर कृपा करते हैं।[६]

मंत्र[सम्पादन]

  • बीज मंत्र- 'ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः' है।
  • सामान्य मंत्र- 'ऊँ घृणि सूर्याय नमः' है।[७]


देव सूर्य महोत्सव[सम्पादन]

देव सूर्य महोत्सव या देव महोत्सव जिसमें प्रत्येक वर्ष सूर्य देव की जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह माघ शुक्ल पक्ष के अंचला सप्तमी को सूर्य देव के जन्म के अवशर पर पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़े ही धूम धाम से मानते हैं। इस दिन के अवसर पर बिहार राज्य सरकार के तरफ से कई तरह की कार्यक्रम भी कराया जाता है। बसंत सप्तमी के दिन में देव के सूर्य कुंड तालाब या ब्रह्मकुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है जिसे देखने देश के कोने कोने से आते है इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मनाती है। और रात्रि में भोजीवुड, बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक के प्रमुख कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है और पूरा देव झूम उठता है। देव सूर्य महोत्सव को दिन में विभिन्न तरह के कार्यक्रम होती है जिसमे बच्चे, बूढ़े तथा नये कलाकारों को अपना हुनर दिखाने का मोका दिया जाता है और सभी को बिहार राज्य मंत्री अथवा जिला प्रसासन द्वारा उसे सम्मानित किया जाता है। [८] [९] [१०][११] [१२]


यह भी देखें[सम्पादन]

देव सूर्य मंदिर


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