सोने की चिडिया (8वीं सदी का भारत)
मिहिर भोज के शासनकाल मे भारत देश को सोने की चिडिया की संज्ञा मिली। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने भारत को लगभग चार सौ सालो तक बाहरी आक्रमणो से बचाए रखा तथा केवल तत्कालीन भारत की अर्थव्यव्स्था को इस मुकाम पर पहुचायाँ की भारत को सोने की चिडिया कहा जाने लगा।[१] [२][३]
8वीं शताब्दी मे भारत की धन व्यवस्था तथा रक्षाबल का इतिहास (सोने की चिडिया)[सम्पादन]
गुर्जर सम्राट मिहिर भोज गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य के प्रतापी सम्राट तथा 50 वर्ष (836 ईसवीं से 885) शासन किया तथा इनके साम्राज्य ने लगभग 300 सालो तक भारत पर शासन किया। मिहिरभोज के शासनकाल मे भारत सोने की चिडिया कहलाया था। इनके साम्राज्य को तब गुर्जर देश अथवा गुर्जरत्रा के नाम से जाना जाता था।[४] इनके पूर्वज गुर्जर सम्राट नागभट्ट प्रथम ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस समय में और भी पक्की हो गई और गुर्जर साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई।[५] यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है, जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।[६][७]
मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की दूनिया कि सर्वश्रेष्ठ सेना थी । इनके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यइनके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी भोज ने सर्वप्रथम कन्नौज राज्य की व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त किया, प्रजा पर अत्याचार करने वाले सामंतों और रिश्वत खाने वाले कामचोर कर्मचारियों को कठोर रूप से दण्डित किया। व्यापार और कृषि कार्य को इतनी सुविधाएं प्रदान की गई कि सारा साम्राज्य धनधान्य से लहलहा उठा।[८] मिहिरभोज ने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को धन, वैभव से चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया। अपने उत्कर्ष काल में इन्हे गुर्जर सम्राट मिहिर भोज की उपाधि मिली थी। अनेक काव्यों एवं इतिहास में उसे गुर्जर सम्राट भोज, भोजराज, वाराहवतार, परम भट्टारक, महाराजाधिराज आदि विशेषणों से वर्णित किया गया है।[९][१०]
विश्व की सुगठित और विशालतम सेना भोज की थी-इसमें 8,00,000 से ज्यादा पैदल करीब 90,000 घुडसवार,, हजारों हाथी और हजारों रथ थे। मिहिरभोज के राज्य में सोना और चांदी सड़कों पर विखरा था-किन्तु चोरी-डकैती का भय किसी को नहीं था। इनके राज्य में लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,इनके शासनकाल में खुली जगहों में भी चोरी की आशंका नहीं रहती थी।
प्रसिद्द अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिर भोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है , साथ ही मिहिर भोज की महान सेना की तारीफ भी की है।जो इनकी हिन्दू धर्म की रक्षा में इनकी भूमिका बताने के लिए काफी है।[८][११]
915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल- मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल महान मेें भी मिहिर भोज की 8 लाख पैदल सैनिक और हज़ारों हाथी और हज़ारों घोड़ों से सज्जी इनके पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है।इनकी राजशाही का निशान दांत निकाले चिंघाड़ता हुआ “वराह”(जंगली सूअर) था और ऐसा कहा जाता है की अरबी आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि जंगली सूअर से नफरत करने लगे थें। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो थे।[१२]
मिहिर भोज के उस समय स्थानीय शत्रुओं में बंगाल के पालवंशी और दक्षिण का राष्ट्रकूट थें।[१३]इसके अलावे बाहरी शत्रुओं में अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे । अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। मिहिर भोज ने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायणलाल को युद्ध में परास्त करके उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। दक्षिण के राष्ट्र कूट राजा अमोधवर्ष को पराजित करके उनके क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिला लिये थे ।[१४][१५]सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध को गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने गुर्जर सम्राट के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे।सम्राट मिहिर भोज नहीं चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने इसलिए उन्होंने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर गुर्जर साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पंहुचा दी और इस प्रकार भारत देश को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था।[१६][१७][१८]
गुर्जर प्रतिहारो ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है भारत आज सुरक्षित है। यहां अनेको गुर्जर राजवंशो ने समयानुसार शासन किया और अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्य चकित किया। [१९] भारत देश हमेशा ही गुर्जर प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के लिए न्यौछावर किया है। [२०] खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896[२१]जिसे सभी विद्वानों ने भी माना है कि गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य ने दस्युओं, डकैतों, इराकी, मंगोलो , अरबों से भारत को बचाए रखा और भारत की स्वतंत्रता पर आँच नहीं आई।[२२][२३]
बाहरी कडियाँ[सम्पादन]
- ये थे असली बाहुबली हिन्दू सम्राट मिहिर भोज, जिसके नाम से थर थर कापते थे अरबी और तुर्क
- भारत को सोने की चिडिया की संज्ञा गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज के शासनकाल मे मिली थी
- मिहिर भोज की जीवनी
- कैसे बना भारत सोने की चिडिया
संदर्भ[सम्पादन]
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- ↑ .बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986.
- ↑ आर. सी मजुमदार, प्राचीन भारत.
- ↑ Al-Hind: Early Medieval India and the Expansion of Islam, 7th–11th Centuries, पृ॰ 284.
- ↑ भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991.
- ↑ डी. आर. भण्डारकर, गुर्जर (लेख), जे.बी.बी.आर.एस. खंड 21, 1903.
- ↑ Origin and Rise of the Imperial Pratihāras of Rajasthan: Transitions, Trajectories and Historical Change (First ed.). Jaipur: University of Rajasthan, Shanta Rani p. 77-78.
- ↑ Who were the Gurjara-Pratiharas, Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, volume 35, p 42–53.
- ↑ ८.० ८.१ रमाशंकर त्रिपाठी, हिस्ट्री ऑफ ऐन्शीएन्ट इंडिया, दिल्ली, 1987.
- ↑ रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006.
- ↑ Comprehensive history of India, the Gurjar Pratihars, vol 1, part 3.
- ↑ जनइतिहास, डाँ सुशील भाटी.
- ↑ ग्वालियर प्रशस्ति, श्लो० ४.
- ↑ एपिक इण्डिया खण्ड ६, पेज २४८, १२१, १२६.
- ↑ प्राचीन भारत का व्यापक इतिहास, पेज 194-195.
- ↑ भारत का एक इतिहास, पेज 114.
- ↑ Avari 2007, पृ॰ 303.
- ↑ Sircar 1971, पृ॰ 146.
- ↑ History of Kanauj ,To the Moslem Conquest, Rama Shankar.
- ↑ Meister, M.W (1991). Encyclopaedia of Indian Temple Architecture, Vol. 2, pt.2, North India: Period of Early Maturity, c. AD 700-900 (first ed.) Delhi: American Institute of Indian Studies. p. 153.
- ↑ ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर.
- ↑ https://bhaskar.com/amp/news/GUJ-AHM-OMC-this-style-of-architecture-is-not-available-anywhere-except-the-ambaji-temple-5684022-PH.html मारू गुर्जर शैली
- ↑ Partha Mitter, Indian art, Oxford University Press, 2001 pp.66
- ↑ "ASI to resume restoration of Bateshwar temple complex in Chambal". 21 May 2018. https://www.hindustantimes.com/india-news/asi-to-resume-restoration-of-bateshwar-temple-complex-in-chambal/story-kBaxGfcRWVsrNbw3Vw8dLN.html.