िवधासागर नौटियाल
( परिचय )
जाने माने साहित्यकार व पूर्व विधायक विद्यासागर नौटियाल 20 सितंबर 1933 को टिहरी के मालीदेवल गांव में स्व. नारायण दत्त नौटियाल व रत्ना नौटियाल के घर जन्मे नौटियाल 13 साल की उम्र में शहीद नागेन्द्र सकलानी से प्रभावित होकर सामंतवाद विरोधी ‘प्रजामंडल’ से जुड़ गए।
रियासत ने उन्हें टिहरी के आजाद होने तक जेल में रखा। वन आंदोलन, चिपको आंदोलन के साथ वे टिहरी बांध विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। हाईस्कूल की परीक्षा प्रताप इंटर कॉलेज टिहरी से उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने इंटरमीडिएट, बीए व एलएलबी की शिक्षा डीएवी कॉलेज देहरादून से ली। 1952 में वे अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन के लिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। वहां उन्होंने अंग्रेजी साहित्य से एमए किया।
नौटियाल बनारस में 1959 तक लगातार सक्रिय रहे। वे 1953 व 1957 में बीएचयू छात्र संसद के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। उन्हें 1958 में सीपीआई के छात्र संगठन एआईएसएफ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। इसी वर्ष उन्होंने वियना में हुए अंतर्राष्ट्रीय युवा सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। नौटियाल ने अमेरिका, यूरोप व सोवियत संघ की कई यात्राएं कीं। उनकी पहली कहानी ‘भैंस का कट्या’ 1954 में इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली साहित्यक पत्रिका ‘कल्पना’ में प्रकाशित हुई। फिर वे अरसे तक लेखन से दूर रहे। सन् 1990 में उन्होंने दुबारा लेखन की दुनिया में दस्तक दी और इसके बाद उन्होंने उपन्यासों, कहानियों के साथ ‘मोहन गाता जाएगा’ जैसा आत्मकथ्य भी लिखा। उनके अब तक छह उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं।
‘यमुना के बागी बेटे’ शीर्षक से आया उनका उपन्यास एक नये विषय के साथ गम्भीर प्रयोग है। राजनीति और लेखन दोनों को अपने सिद्धान्तों और मूल्यों की कसौटी पर परखने वाले नौटियाल सामाजिक विषमताओं से लड़ना मुख्य चुनौती मानते हैं। इससे पूर्व वे ‘मूक बलिदान’ नामक कहानी लिख चुके थे। उनका पहला उपन्यास ‘उलङो रिश्ते’ था। नौटियाल के ‘उत्तर बायां है’, ‘यमुना के बागी बेटे’, ‘मोहन गाता जाएगा’, ‘सूरज सबका है’, ‘भीम अकेला’, ‘झुंड से बिछड़ा हुआ’ आदि उपन्यास चर्चित हुए।
आजीवन सीपीआई से जुड़े रहे नौटियाल 1980 में देवप्रयाग से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। नौटियाल को हाल ही में पहले इफ्को साहित्य सम्मान से भी नवाजा गया था। इससे पूर्व उन्हें साहित्य के क्षेत्र में पहल सम्मान, मप्र सरकार का वीर सिंह देव सम्मान, पहाड़ सम्मान समेत दजर्न भर से अधिक सम्मान मिले। राजनीति और लेखन दोनों को अपने सिद्धान्तों और मूल्यों की कसौटी पर परखने वाले नौटियाल सामाजिक विषमताओं से लड़ना मुख्य चुनौती मानते हैं।
18 फरवरी 2012 शनिवार रात्रि बंगलुरू के एक अस्पताल में विद्यासागर नौटियाल का निधन हो गया।
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