अग्निवंश
यज्ञ कराकर क्षत्रियों ने धर्म रक्षा का संकल्प लिया, ऋषियों ने जिन राजपुतों को यह अग्नि (यज्ञ) का संस्कार कराया उन्हें अग्निवंशीय राजपुत कहते हैं। यह चारों इस प्रकार है -
- प्रतिहार
- परमार(पोवार)
- चौहान
- चालुक्य
प्रतिहार, परमार, चौहान एवं चालुक्य राजपूत आपके राज में, धक-धक धरती होय। जित-जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फत्ते होय।
कहा जाता है की यज्ञ की अग्नि से चार योद्धाओं- प्रतिहार, परमार, चौहान एवं चालुक्य की उत्पत्ति हुई जबकि हकीकत ये है की महर्षि और ब्राह्मणों ने उन्हें यज्ञ करवाया था ताकि वो आम जन की रक्षा मलेछो मुस्लिमो से कर सके साथ।
- प्रतिहार वंश 👑
ये वंश अब परिहार नाम से जाना जाता है जिसमे इंदा जैसे प्रमुख गोत्र आते है प्रतिहार मतलब पहरी इसका राज्य मंडोर तक रहा 12 वी शतब्दी में जब कन्नौज से राव सिन्हा राठौड जब मारवाड़ आये तब परिहारों ने बहुत मदद की और मंडोर में आज भी इनकी 1000 साल पुराणी छत्रिया मौजूद है
- कुछ प्रशिद्ध शाशक
नागभट्ट प्रथम (730 – 756 ई.) वत्सराज (783 – 795 ई.) नागभट्ट द्वितीय (795 – 833 ई.) मिहिरभोज (भोज प्रथम) (836 – 889 ई.) महेन्द्र पाल (890 – 910 ई.) महिपाल (914 – 944 ई.) भोज द्वितीयविनायकपालमहेन्द्रपाल (940 – 955 ई.)
प्रतिहारों के अभिलेखों में उन्हें श्रीराम के अनुज लक्ष्मण का वंशज बताया गया है, जो श्रीराम के लिए प्रतिहार (द्वारपाल) का कार्य करता था हूणों के साथ गुर्जर बहुत ज्यादा आये थे और गुजरात राजस्थान के एक हिस्से में फ़ैल गए थे इन पर राज करने से प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा गया
- चौहान वंश 👑
‘चौहान’ नाडोल जालोर ,सांभर झील,पुष्कर, आमेर और वर्तमान जयपुर (राजस्थान) में होते हुए उत्तर भारत में फैले चुके हैं।
- प्रसिद्ध शासक
चौहान वंश की अनेक शाखाओं में ‘शाकंभरी चौहान’ (सांभर-अजमेर के आस-पास का क्षेत्र) की स्थापना लगभग 7वीं शताब्दी में वासुदेव ने की। वासुदेव के बाद पूर्णतल्ल, जयराज, विग्रहराज प्रथम, चन्द्रराज, गोपराज जैसे अनेक सामंतों ने शासन किया। शासक अजयदेव ने ‘अजमेर’ नगर की स्थापना की और साथ ही यहाँ पर सुन्दर महल एवं मन्दिर का निर्माण करवाया। ‘चौहान वंश’ के मुख्य शासक इस प्रकार थे-
अजयदेव चौहानअर्णोराज (लगभग 1133 से 1153 ई.)विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव (लगभग 1153 से 1163 ई.)पृथ्वीराज तृतीय (1168-1198)
- परमार वंश👑
परमार वंश का आरम्भ नवीं शताब्दी के प्रारम्भ मेंनर्मदा नदी के उत्तर मालवा (प्राचीन अवन्ती) क्षेत्र में उपेन्द्र अथवा कृष्णराज द्वारा हुआ था। आज ये पाकिस्तान से लेकर हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्र तक है इन्ही में सोढा राजपूत आते है वही भायल सांखला ये पंवार नाम से भी जाने जाते है
- वंश शासक
उपेन्द् वैरसिंह प्रथम, सीयक प्रथम, वाक्पति प्रथम एवं वैरसिंह द्वितीय थे।चक्रवर्ती सम्राट शालिवाहन परमार,चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य तथा महाविद्वान महापराक्रमी सम्राट राजा भोज, प्रसिद्ध नीतिकार राजा भर्तृहरि परमार वंश के प्रसिद्ध शासक थे।
परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन में थी पर कालान्तर में राजधानी ‘धार’, मध्य प्रदेश में स्थानान्तरित कर ली गई परमार वंश में आठ राजा हुए, जिनमें सातवाँवाक्पति मुंज (973 से 995 ई.) और आठवाँ मुंज का भतीजा भोज (1018 से 1060 ई.) सबसे प्रतापी थी।मुंज अनेक वर्षों तक कल्याणी के चालुक्यराजाओं से युद्ध करता रहा और 995 ई. में युद्ध में ही मारा गया। उसका उत्तराधिकारी भोज (1018-1060 ई.) गुजरात तथा चेदि के राजाओं की संयुक्त सेनाओं के साथ युद्ध में मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही परमार वंश का प्रताप नष्ट हो गया। यद्यपि स्थानीय राजाओं के रूप में परमार राजा तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ तक राज्य करते रहे, अंत में तोमरों ने उनका उच्छेद कर दिया।परमार राजा विशेष रूप से वाक्पति मुंज और भोज, बड़े विद्वान थे और विद्वानों एवं कवियों के आश्रयदाता थे।
- चालुक्य वंश / सोलंकी 👑
‘विक्रमांकदेवचरित’ में इस वंश की उत्पत्ति भगवान ब्रह्म के चुलुक से बताई गई है। इतिहासविद् ‘एफ. फ्लीट’ तथा ‘के.ए. नीलकण्ठ शास्त्री’ ने इस वंश का नाम ‘चलक्य’ बताया है। ‘आर.जी. भण्डारकरे’ ने इस वंश का प्रारम्भिक नाम ‘चालुक्य’ का उल्लेख किया है। ह्वेनसांग ने चालुक्य नरेश पुलकेशी द्वितीय को क्षत्रिय कहा है।
लगभग आधे भारत पर राज किया सोलंकी चालुक्य राजाओ ने केरल से लेकर नेपाल तक विजय यात्रा की दक्षिण और गुजरात के अधिकतर क्षेत्रो पर हुकूमत की वर्त्तमान ये सोलंकी नाम से जाने जाते है
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