अजपा जाप
अजपा जाप का शाब्दिक अर्थ है ऐसा जाप या जप जिसमें जीभ का प्रयोग न करना पड़े या जिसका बाह्य रूप प्रकट ना हो। [१] [२]डॉ राधा कृष्णा श्रीमाली के अनुसार, "बिना किसी प्रयत्न के मंत्र का जप जब सहज रूप से होता है तब उसे अजपा जप कहते हैं ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह जप सीधा हृदय से होता है जबकि अन्य जप मुख्यद्वार होते हैं, जिससे धीरे धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से उत्पन्न होने वाले कारण नष्ट हो जाते हैं।"[३] जप का अर्थ है मंत्र को दोहराना या याद करना , और अंजपा-जाप का अर्थ है मंत्र की निरंतर जागरूकता।[४] अजपा जाप नाथपंथी योगियों द्वारा प्रयुक्त होने वाला ऐसा शब्द है जिसका प्रभाव हिंदी के संत कवियों पर पड़ा। कबीर ने इस शब्द का अनेकशः का इस्तेमाल किया है। इसलिए कभी राजी संत कवियों के साहित्य को समझने के लिए अजपा जाप के गूढ़ार्थ को समझना आवश्यक है। सामान्यतः संत साधक अपने आराध्य का नाम जीह्वा से उच्चारित करते हैं यह नाम जप की आरंभिक अवस्था है। साधना की उच्चतर स्थिति में पहुंचने पर नाम जप संत साधक का संस्कार बन जाता है। नाम जप का कार्य श्वास प्रश्वास क्रिया के साथ निरंतर चलता रहता है। योगी इसे अजपा गायत्री भी कहते हैं। कहा गया हे-
"हंकारेण बहिर्याति सकारेण विशेत्पून:।हंस हंसेत्ययं मन्त्रं जीवो जपति सर्वदा।।"
अर्थात 'हंकार' की ध्वनि के साथ श्वास बाहर जाता है और 'संकार' की ध्वनि के साथ श्वास भीतर प्रवेश करता है। इस प्रकार 'हंस', 'हंस' का मंत्र जीव निरंतर जपता रहता है। इसी को 'सोऽहं वृत्ति' कहते हैं यही 'अजपा गायत्री' है।
अजपा नाम गायत्री योगिनां मोक्षदायिनी।तस्या:संकल्प मात्रेण नर: पापैर्विमुच्यते।।
इस प्रकार 'माला' या 'सुमिरनी' की सहायता से जीह्वा के द्वारा उच्चारित नाम स्मरण या जाप एक प्रकार की सायास क्रिया है। जब यह क्रिया समाप्त हो जाती और बिना किसी आयास के स्वत: श्वास क्रिया के साथ 'हंस', या 'हंस' का जाप निरंतर चलने लगता है तो 'अजपा जाप' की स्थिति मान्य होती है।[५] कबीरदास ने कहां है:-
सुरति सामानी निरति में, अजपा माहे जाप।लेख समाना आलेख में, यों आपा माहे आप।।[६]
इन्हें भी देखें[सम्पादन]
सन्दर्भ[सम्पादन]
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