अनन्त मिश्र
अनन्त मिश्र | |
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जन्म | 18 अगस्त 1946 ग्राम बेलौही जिला महाराजगंज उत्तर प्रदेश |
नृजातियता | हिन्दू |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | एम॰ए॰ (हिन्दी साहित्य), पीएच॰डी॰ |
विषय | आलोचना , काव्य , निबंध |
जीवनसाथी | चन्द्रकान्ति देवी |
परिचय[सम्पादन]
18 अगस्त 1946 को महाराजगंज के फरेंदा तहसील के ग्राम बेलौही (कोलुही लालपुर सोनौली रोड) में आदरणीय मिश्र जी का जन्म हुआ I आचार्य अनन्त जी एक प्रसिद्ध शिक्षक भी रहें हैं I प्रोफेसर मिश्र 1970-2010 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विभाग के आध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए I
परिचय अनंत जी की प्रकाशित पहला काव्य संग्रह "एक शब्द उठता हूँ" की भूमिका में बताया है कि बचपन में उन्हें कवितएं लिखने की आदत थी , घर के सामने कुँए की जगत पर बैठकर सूरदास के किसी पद के सहारे एक पद की रचना किया और उम्मीद लिए हुए वे अपने पिता के पास गये जो व्याकरण के महान पंडित थे , जिसे पढ़ कर वे प्रेम से उन्हें झिड़क दिया , वे अनंत जी को बौरहवा (भोजपुरी शब्द यानी पगला) कहते थे और इनका यह कार्य उनकी नज़र में नई बौराही थी I रेल के टिकेट या किसी भी कागज़ के टुकड़े पर वे कहीं भी बैठ कर अपनी अभिव्यक्ति , कविता के रूप में किया करते थे और चूँकि वे अलग स्वाभाव के हैं तो उन्हें अपनी लिखित सामाग्री को एकत्रित करने की आदत नहीं रही है , लिहाज़ा अधिकतर कविताएँ कहा खो गयीं कुछ पता नहीं !
इसके अलावा वे कक्षा 6 से ही घर दुआर छोड़ दिए और हाई स्कूल इन्टर तक आते-आते वे गोरखपुर में रहने लगे गोरखपुर विश्वविद्यालय से अपनी आगे की शिक्षा ग्रहण कर परास्नातक करते ही इनकी नियुक्ति सेंट एंड्र्यूज कॉलेज में हो गयी , बाद में वे गोरखपुर विश्वविद्यालय में नियुक्त कर लिए गये I
रचनाएँ[सम्पादन]
निरंतर चिंतन में सक्रिय प्रो० मिश्र की कुछ प्रमुख रचनाएँ उनके शिष्यों द्वारा प्रकाशित की गयीं हैं जो इस प्रकार हैं ,
- एक शब्द उठाता हूँ (काव्य संग्रह , विश्वविद्यालय प्रकाशन , वाराणसी)
- स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कविता (आलोचनात्मक संग्रह , प्रकाशन संसथान दरियागंज , दिल्ली )
- ये शब्द इसी जनपद के हैं (निबंध संग्रह , नीलकमल प्रकाशन , गोरखपुर)
- हमारे समय में (काव्य संग्रह , विजया बुक्स , दिल्ली)
- सभ्यता साधू के ठेंगे पर (काव्य संग्रह ,शिवालिक प्रकाशन , दिल्ली )
- निरुत्तर है कविता (काव्य संग्रह , यश पब्लिकेशन्स , नई दिल्ली )
इसके अलावा विद्यार्थी जीवन से ही लगातार देश के विविध पत्र-पत्रिकाओं जैसे कादम्बिनी , दस्तावेज़ , साहित्य अमृत , पहल , सरस्वती , समकालीन हिंदी पत्रिका (साहित्य अकादेमी) इत्यादि में बहुसंख्यक कविताएँ छप चुकी है , तथा कई कविताओं का विविध भाषाओँ में अनुवाद भी हो चुका है , अभी हाल में ही साहित्य अकादेमी द्वारा इनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद भी किया गया I आचर्य मिश्र लगातार आकाशवाणी दूरदर्शन एवं भारत वर्ष के अपने विशिष्ट व्याख्यानों के द्वारा अत्यंत लोकप्रीय हैं I कुछ वेबसाइट द्वारा उनकी कविताओं को ऑनलाइन भी पढ़ा और देखा जा सकता है जो कि निम्नलिखित हैं
प्रसिद्ध कविताएँ[सम्पादन]
"दोस्तों ये दुनिया इससे बेहतर कभी नहीं थी जो बताते हैं अतीत का ऐश्वर्य, स्वर्ग और अमृत की बातें दरअसल वे हमारे पुरखों के सपने हैं" - अनंत मिश्र
प्रो० मिश्र की कुछ ज्यादातर पढ़ी जाने वाली कविताएँ जो लोग पढना पसंद करते है और विभिन्न सभाओं में इसपर चर्चाएँ भी होती रहती हैं |
मकान
आदमी के ऊपर छत होनी ही चाहिए
वह घरेलू महिला
हमेशा मिलने पर कहती है
उसका बंगला नया है
उसके नौकर उसके लान की सोहबत ठीक करते हैं
और वह अपने ड्राइंगरूम को
हमेशा सजाती रहती है।
मैंने नीले आसमान के नीचे
खड़े हो कर अनुभव किया
कि छत मेरे सिर से शुरू होगी
या मेरे सिर के कुछ ऊपर से
जब मैं मकान बनाऊँगा,
अब मैं मकान हो गया था
और मेरी इंद्रियाँ जँगलों की तरह
प्रतीक्षा करने लगी थीं
मैंने सोचा
यह रहे मेरे नौकर-चाकर
मेरे हाथ और पाँव
यह रहा मेरा दरवाजा मेरा चेहरा
यह रहा मेरा डायनिंग रूम
मेरा पेट
यह रहा मेरा खुला हुआ बरामदा
मेरी छाती
यह रहे कैक्टस कँटीले
मेरी दाढ़ी-मूँछ
और यह रहा मेरा दिल
मेरा ड्राइंगरूम
मैंने पूरा मकान मिनटों में
खड़ा कर लिया था,
और अब मैं आराम से
सैर पर जा सकता था
जेब में मूँगफली भरे हुए
और चिड़ियों से मुलाकात करते हुए।
कृपया धीरे चलिए
मुझे किसी महाकवि ने नहीं लिखा
सड़कों के किनारे
मटमैले बोर्ड पर
लाल-लाल अक्षरों में
बल्कि किसी मामूली
पेंटर कर्मचारी ने
मजदूरी के बदले यहाँ वहाँ
लिख दिया
जहाँ-जहाँ पुल कमजोर थे
जहाँ-जहाँ जिंदगी की
भागती सड़कों पर
अंधा मोड़ था
त्वरित घुमाव था
घनी आबादी को चीर कर
सनसनाती आगे निकल जाने की कोशिश थी
बस्ता लिए छोटे बच्चों का मदरसा था
वहाँ-वहाँ लोकतांत्रिक बैरियर की तरह
मुझे लिखा गया
'कृपया धीरे चलिए'
आप अपनी इंपाला में
रुपहले बालोंवाली
कंचनलता के साथ सैर पर निकले हों
या ट्रक पर तरबूजों की तरह
एक-दुसरे से टकराते बँधुआ मजदूर हों
आसाम, पंजाब, बंगाल
भेजे जा रहे हों
मैं अक्सर दिखना चाहता हूँ आप को
'कृपया धीरे चलिए'
मेरा नाम ही यही है साहब
मैं रोकता नहीं आपको
मैं महज मामूली हस्तक्षेप करता हूँ,
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर
अविलंब पहुँचना चाहते हैं तो भी
प्रेमिका आप की प्रतीक्षा कर रही है तो भी
आई.ए.एस. होना चाहते हों तो भी
रुपयों से गोदाम भरना चाहते हों तो भी
अपने नेता को सबसे पहले माला
पहनाना चाहते हों तो भी
जिंदगी में हवा से बातें करना चाहते हों तो भी
आत्महत्या की जल्दी है तो भी
लपककर सबकुछ ले लेना चाहते हों तो भी
हर जगह मैं लिखा रहता हूँ
'कृपया धीरे चलिए'
मैं हूँ तो मामूली इबारत
आम आदमी की तरह पर
मैं तीन शब्दों का महाकाव्य हूँ
मुझे आसानी से पढ़िए
कृपया धीरे चलिए।
साइकिल
धूप में खड़ी है साइकिल
धूप में खड़ी रहेगी साइकिल
धूप से बच नहीं सकती साइकिल I
साइकिल खुद से चल कर
छाँव में नहीं आ सकती
गो, वह ज्यादा चलती है
चलकर ही आ खड़ी है
पर धूप में पड़ी है साइकिल I
सड़क पर देखो
कितनी तेजी से भाग रही है
साइकिल
और वह एक बेचारी
धूप में मुतवारित खड़ी है
धूप उसे बेहद परेशान कर रही है
उसकी पीठ रही हैं
पर जब खुद से नहीं चल सकती
साइकिल
तो अपनी रफ्तार के बावजूद वह पड़ी रहेगी
दुनिया का कितना बड़ा आश्चर्य है
कि
धूप से भाग नहीं सकती साइकिल
किसी पेड़ के निचे सुस्ता नहीं सकती साइकिल
खुद से वह पहिया घुमा नहीं सकती
घंटी बजाकर
अपने मालिक तक को बुला नहीं सकती
साइकिल,
गो वह सैर करा सकती है
वक्त पर काम आने में उसका कोई जबाब नहीं
फिर भी धूप में
कितनी असहाय खड़ी है
साइकिल I
सन्दर्भ एवं कड़ियाँ[सम्पादन]
1 हिंदी समय महात्मा गाँधी अंतरास्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
2 किताबें नहीं पढ़ना चाहते लोग : प्रो. अनंत मिश्र
3 https://www.patrika.com/gorakhpur-news/development-without-humanities-is-very-dangerous-1522652/
5 अनंत मिश्र की शिष्या प्रेमशिला शुक्ल
6 जीवन का यथार्थ ही कविता की ताकत
7 शरहनामा गोरखपुर "डॉ.वेड प्रकाश पाण्डेय " में अनंत मिश्र के बारे में
8 जागरण newspaper में एक सभा के बारे में
10 अखिल भारतीय साहित्य गोष्ठी का शानदार आयोजन
11 भक्ति साहित्य- लोक व शास्त्र विषय पर द्वितीय सत्र में बोलते हुए
14 समकालीन कविता और सौंदर्य बोध
15 Samkaleen Hindi Kavita: Agyay aur Muktibodh ke Sandhrbh Mein
17 कविता का अर्थ किताब प्रेमशिला शुक्ल द्वारा
18 ये आत्मा की अभिव्यक्ति हैं: साहित्य अकादमी की 'ललित निबंध: स्वरूप एवं परंपरा' विषयक संगोष्ठी
19 अपूर्णनीय क्षति है राजेंद्र यादव का निधन
20 ‘‘अब्दुल विस्मिल्लाह और उनका साहित्य’’ "P hd Prema "
21 आकाशवाणी के कार्यक्रम में अनंत जी का व्याख्यान
22 तहरीर और तकरीर दोनों में माहिर थे वीरेन; अनंत मिश्र
23 Prasar Bharati “India’s Public Service Broadcaster”
24 हम जिस विकास का शंखनाद कर रहे हैं, उसने अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरा किया है।; अनन्त मिश्र
25 कवि विनय मितवा के काव्य संग्रह 'अजनबी होते शहर में' का लोकार्पण समारोह
26 गोरखपुर में पुस्तक मेला में मौजूद थे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं अनंत मिश्र
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