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अमर शहीद ठाकुर दरियाव सिंह - Thakur Dariyav Singh

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अमर शहीद क्रांतिकारी ठाकुर दरियाव सिंह सन् 1857 की प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रसिद्ध स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे।

ठाकुर दरियाव सिंह का जन्म जनपद फतेहपुर (उ०प्र) के खागा के प्रतिष्ठित ‌‌‌सिंगरौर (सेंगर) क्षत्रिय वंश में सन् 1795 में हुआ था।

ताल्लुकेदार ठाकुर दरियाव सिंह (खागा, फतेहपुर)


इनके पिताश्री ठाकुर मर्दन सिंह खागा के ताल्लुकेदार थे और माताश्री गौतम वंश की इसी जनपद के बुदवन ग्राम से थीं। ठाकुर दरियाव सिंह जी वत्सगोत्रीय (गोत्र-वत्स) थे। इनकी पत्नी का नाम सुगंधा था, जो रायबरेली (उ०प्र) जनपद के सरेनी ग्राम के गौतम वंश से थीं। इनको दो पुत्रियां व दो पुत्र ठाकुर सुजान सिंह और ठाकुर देव सिंह हुए जिनका विवाह भी रायबरेली (उ०प्र) जिले के गौतम वंश में ही हुआ।

ठाकुर दरियाव सिंह सिंगरौर खागा के ताल्लुकेदार थे। अत्यंत आकर्षक और बहुमूल्य प्रतिभा के धनी ठाकुर दरियाव सिंह जी के बड़े-बड़े लाल डोरों से युक्त चमचमाते नेत्र, ओजपूर्ण मुख मण्डल, विशाल वक्षस्थल, ऊँची कद-काठी, सिर में बंधी हुई लटें, गले में रुद्राक्ष की माला और दाहिने ओर लटकती हुई भारी भरकम तलवार उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाती थी। ये अत्यंत पराक्रमी, शक्तिशाली वीर पुरुष होने के साथ साथ बड़े ही स्वाभिमानी थे। इनमें राजनैतिक सूझ-बूझ, विद्वता और चातुर्य के साथ संगठन क्षमता अद्वितीय थी। ये देवी के बहुत बड़े उपासक भी थे। इन्होंने कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया। ये नित्य माँ दुर्गा और महावीर हनुमान जी की पूजा करते थे। स्थानीय बड़े-बुज़ुर्ग बताते हैं कि पूजा करते समय उनकी तलवार स्वत: ज़मीन से एक हाँथ ऊपर उठ जाती थी। ये बड़े ही न्यायप्रिय शासक थे और अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे।

स्थानीय मान्यता के अनुसार,“ ठाकुर दरियाव सिंह पूर्वज ठाकुर खड़ग सिंह जी द्वारा खागा बसाया गया था ” इनके पूर्वज इलाहाबाद से 37 कि०मी० उत्तर-पश्चिम में गंगा किनारे बसे सिंगरौर (त्रेतायुग का श्रृंगवेर्वेरपुरे जिला फतेहपुर के सरसई ग्राम आये थे। इनका मूल स्थान राजस्थान था अर्थात् इनके पूर्वज पहले राजस्थान से सिंगरौर आए फिर वहां से जिला फतेहपुर के सरसई ग्राम चले आए थे।

ठाकुर दरियाव सिंह सिंगरौर के पास एक छोटा किला था जिसे गढ़ी कहते थे, जो बहुत ही मजबूत और सुरक्षित थी। गढ़ी की मोटी मोटी दीवारें बालू और विशेष प्रकार के गारे से भरी हुई थी जिसके चारों तरफ़ पानी की गहरी खाई थी। उस गढ़ी में सात पक्के कुएं और एक बहुत बड़ा कुआं था जिसे इंदारा कहते थे। गढ़ी के अन्दर ही एक बड़ा गोल पक्का चबूतरा भी पहलवानों की पहलवानी के लिए बनवाया गया था। बाद में इस अमूल्य धरोहर को अंग्रेजों द्वारा नष्ट कर दिया गया परन्तु इसके खण्डहर व अवशेष आज भी विद्यमान हैं। वर्तमान में वहीं पर ठाकुर दरियाव सिंह जी की मूर्ति लगाकर उनका भव्य स्मारक बनाया गया है।

  सन् 1857 में जब अवध में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा तब ठाकुर दरियाव सिंह ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनाई। ठाकुर दरियाव सिंह जी के द्वारा की गई क्रांति ही फतेहपुर की क्रांति कही जाती है। इनके परिवार में बहुत पहले से ही अंग्रेजी सत्ता के विरोध में खुलकर चर्चा होती रहती थी।

     

जब इलाहाबाद और कानपुर में क्रांति भड़की तब वे खागा में मौजूद नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति में 8 जून 1857 दिन सोमवार को उनके ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर सुजान सिंह सिंगरौर की अगुवाई में उनकी सेना ने तहसील खागा के भवन और खज़ाने पर हमला करके उस पर अधिकार कर लिया और अपनी स्वतंत्रता का झण्डा गाड़ दिया। उधर आमंत्रण पाकर जमरावा के ठाकुर शिवदयाल सिंह और अटैया रसूलपुर के गौतम क्षत्रिय ठाकुर जोधा सिंह भी अपने सैनिकों और साथियों के साथ आ गए। सब एकजुट होकर खज़ाने की तरफ कूंच किया। ठाकुर दरियाव सिंह जी अपने पुत्र एवं स्वजनों के साथ मिलकर अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। ये बात पूरे जनपद में फैल गई और लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला विद्रोह कर दिया।

अंग्रेज उनसे पूरे नौ महीने जूझते रहे लेकिन उनको ना रोक पाए और ना ही झुका पाए, बल्कि उन्होंने अंग्रेजों को पूरे जिले भर में टक्कर देकर नाकों चने चबुआ दिये। अंग्रेजी सेना यमुना पार करके बांदा भाग गई और जो बचे थे वो सारे डरकर छिप गए। सम्पूर्ण जनपद फतेहपुर दासता से मुक्त होकर स्वतंत्र हो गया और ठाकुर दरियाव सिंह ने पूरे 32 दिन तक फतेहपुर में स्वतंत्र सरकार चलाई थी।

       प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक विलियम क्रुक्स ने ठाकुर दरियाव सिंह को “सिंगरौर क्षत्रिय” बताते हुए लिखा है कि “ क्रांति के समय दरियाव सिंह के नेतृत्व में सिंगरौर क्षत्रियों ने फतेहपुर जिले में (अंग्रेजों को) बहुत कष्ट पहुँचाया” ठाकुर दरियाव सिंह जी की सेना में सिंगरौर क्षत्रियों के साथ बैस क्षत्रियों एवं बहरेलियों की संख्या अधिक थी। सिंगरौर क्षत्रियों के अलावा उनकी सेना में मुस्लिमों ने भी सहयोग दिया था।

4 फरवरी सन् 1858 को रात्रि में एक गद्दार मुखबिर की सूचना देने पर अंग्रेजों ने ठाकुर दरियाव सिंह के साथ उनके 40 वर्षीय ज्येष्ठ पुत्र ठाकुर सुजान सिंह सिंगरौर, 56 वर्षीय अनुज निर्मल सिंह सिंगरौर, रघुनाथ सिंह, तुरंग सिंह और बख्तावर सिंह को छल से गिरफ्तार कर लिया। इन सभी क्रांतिकारियों को कारावास में कठोर यातनाएं दी गईं।


अन्त में उन्हें और उपरोक्त सभी क्रांतिकारियों को खागा और फतेहपुर के सरकारी खजाने को 8 और 9 जून सन् 1857 को लूटने और फूंकने के अभियोग में मात्र 32 दिन में मुकदमे की कार्यवाही पूर्ण करके क्रूर ब्रिटिश शासन ने 6 मार्च सन् 1858 को जिला जेल में फाँसी की सजा दे दी। परन्तु महान अमर बलिदानी ठाकुर दरियाव सिंह जी ने जिले की माटी को क्रांति की धरा में तब्दील कर अपने परिवार के साथ शहीद होकर स्वतंत्रता-संग्राम के दहकते अंगारे बन गए और अपना नाम अपनी मातृभूमि पर स्वर्णाक्षरों में अंकित करा लिया।

   खागा के कवि श्री बृजमोहन पाण्डेय 'विनीत' ने उनके सम्बन्ध में सही ही लिखा कि👇

“खागा के दरियाव लिख गए जो बलिदानी गाथा। उनकी याद जब भी आती बरबस झुक जाता माथा॥”



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