अमृता देवी(बेनीवाल)
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गुरु जम्बेश्वर भगवान ने 29 नियम बताये थे। उन नियमो का पालन करने वाले जन बिश्नोई जन कहलाये, गुरु महाराज द्वारा बताये गए 29 नियमो से से एक नियम है “पेड़ पोधो की रक्षा करना।” इसी नियम के अनुसार सन 1730 में खेजड़ली गाँव में 363 बिश्नोई समाज के लोगो ने खेजड़ी वृक्षों को बचने के लिए अपनी जान की आहुति दे दी थी।
खेजड़ली बलिदान: अमृतादेवी बिश्नोई का बलिदान या बिश्नोई आंदोलन सन 1730 के राजस्थान के मारवाड़ (आज का जेसलमेर और जोधपुर) में राणा अभयसिंह का राज था, वो अपने महरान गढ़ किले में फुल महल नाम से एक महल बनवा रहे थे तो उनको लकडियो की जरुरत पड़ी उन्होंने अपने मंत्री गिरधारी दास भंडारी से कहा।
मंत्री गिरधारी दास की नजर किले से 24 किलोमीटर दूर खेजड़ली गाँव पर पड़ी और वो अपने सिपाहियों के साथ खेजडली गाँव पहुँच गया। उनके सिपाहियों ने रामो जी खोड के घर के पास का वृक्ष काटने को कुल्हाड़ी चलाई तो कुल्हाड़ी की आवाज सुनकर रामो जी खोड की पत्नी अमृता बिश्नोई ने उन्हें अपने समाज के नियमो का हवाला देकर रोका तो वे नही रुके।
फिर अमृता देवी उस खेजड़ी वृक्ष से लिपट गई और बोली “सर सटे रुख रहे तो भी सस्तो जान”।
इस तरह अमृता देवी की 3 पुत्रियों ने भी माँ का बलिदान देख कर खुद भी बलिदान दे दिया।
इसी प्रकार खेजरली गाँव सहित आस पास के कई गाँवो के 363 लोगो ने अपना बलिदान खेजड़ी से लिपट के दे दिया उन सभी 363 लोगो की सूची निचे दी गई है।
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