अर्धमत्स्येन्द्रासन
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अर्धमत्स्येन्द्रासन[सम्पादन]
अर्ध- आधा, मत्स्येन्द्र- मछलियों का राजा: मत्स्य - मछली, इंद्र- राजा।
'अर्धमत्स्येन्द्र' का अर्थ है शरीर को आधा मोड़ना या घुमाना। अर्धमत्स्येन्द्र आसन आपके मेरुदंड (रीढ़ की हड्डी) के लिए अत्यंत लाभकारक है। यह आसन सही मात्रा में फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है अथवा जननांगों के लिए अत्यंत ही लाभकारी है। यह आसन रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित है इसीलिए इसे ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए।
अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की प्रक्रिया[सम्पादन]
- पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें,रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)|
- दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
- बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
- कमर, कन्धों व् गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
- रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
- इसी अवस्था को बनाए रखें ,लंबी , गहरी साधारण साँस लेते रहें।
- साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़े,फिर कमर,फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
- दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
- साँस छोड़ते हुए सामने की ओर वापस आ जाएँ|
अर्धमत्स्येन्द्रासन के लाभ[सम्पादन]
- मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
- मेरुदंड का लचीलापन बढ़ता है।
- छाती को फ़ैलाने से फेफड़ो को ऑक्सीजन ठीक मात्रा में मिलती है|
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