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आलमजी

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आलमजी मालाणी के लोकदेवता है,ये जैतमालोत राठौड़ थे।आलमजी को रामदेवजी या निकलंक का अवतार माना जाता है,इसलिए आलमजी का मेला बाबे की दूज को लगता है तथा आलमजी का नेजा भी पचरंगी होता है।इन्होंने गुड़ामालानी से 3 km दूर आलमपुरा[१] गांव जिसका नाम आलमजी के नाम पर पड़ा है ,में स्तिथ धोरे पर भक्ति साधना की थी।इस धोरे पर लूनी नदी के किनारे आलमजी का मंदिरमठ स्थित है।

घर ढांगी आलम धणी, परगल लूणी पास।

लिखियौ ज्यां नै लाभसी, राड़धरा रौ वास।।

यहाँ रतन भारती व जगा भारती की समाधि बनी हुई है।


यहाँ मारवाड़ के प्रसिद्ध कवि इसरदास[२] जी ने कई दिनों तक भक्ति की थी।

इतिहास[सम्पादन]

राव मल्लीनाथ के छोटे भाई जैतमाल थे ,वे सिवाणा के सामंत बने,उनके बाद उनका बड़ा पुत्र हापा सिवाणा का सामंत बना तथा दूसरा पुत्र खींवकरण जी ने राड़धरा(नगर व गुड़ामालानी )के परमार शासक आखा को हराकर राड़धरा पर अधिकार कर लिया।जैतमाल के वंशज जैतमालोत राठौड़ कहलाये।[३]

आलमजी का धोरा[सम्पादन]

आलमजी का धोरा आलमपुरा गुड़ामालानी में स्तिथ है ।मालानी के घोड़े प्रसिद्ध है। इस धोरे की मिट्टी को घुड़साल में बिछाया जाता है ।आलमजी के मंदिर में हजारों घोड़े की छोटी बड़ी मूर्तियां सुशोभित है।जिसके कारण आलमजी के धोरे को घोड़ो का पवित्र स्थान या घोड़ो का तीर्थस्थल कहा जाता है।

मेला[सम्पादन]

1.भादवा सुदी दूज

2.माघ वदी दूज.

अन्य मंदिर-[सम्पादन]

1.आलमजी का मंदिर धोरीमन्ना


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