आवंला नवमी
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आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की अक्षय नवमी को आमला नवमी भी कहते हैं। इस खास दिन पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। शास्त्रों के मुताबिक नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु का आवंले के पेड़ पर वास रहता है। अक्षय नवमी का यह दिन इतना विशेष होता है कि किसी भी कार्य की शुरुआत बिना किसी मुहुर्त देखे की जा सकती है। वहीं संतान प्राप्ति के लिए इस दिन आंवले के पेड़ की विधिविधान से पूजा व व्रत करना फलदायी होता है। इसके अलावा इस दिन आंवला व प्रसाद स्वरूप चखने से सभी दुख व रोग दूर होते हैं।
इसे इच्छा नवमी भी कहा जाता
अक्षय नवमी को लेकर मान्यता है कि इस दिन लोग जिस इच्छा के साथ पूजन करते हैं उनकी वह इच्छा जरूर पूर्ण होती है। इसलिए इसको अक्ष्य नवमी के साथ ही इच्छा नवमी भी कहते हैं। शास्त्रों के मुएताबिक इसी दिन महर्षि च्यवन ने आंवला का सेवन किया था, जिसके बाद उन्हें पुन: नव यौवन की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए इस दिन आंवला का सेवन जरूर किया जाता है। वहीं यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने बाल लीलाओं के साथ वृदांवन की गलिया छोड़ कर्तव्यों को पूरा करने के लिए मथुरा प्रस्थान किया था।
ज्यादा प्रचलित है यह व्रत कथा
इस व्रत को लेकर क्षेत्रीय भाषाओं में कई कथाएं प्रचलित हैं। जिसमें एक कथा यह भी है। कहते हैं कि एक व्यापारी और उसकी पत्नी संतान होने से बहुत दुखी थे। इस दौरान लोग उन्हें विभिन्न प्रकार की सलाह देते थे। ऐसे में एक दिन किसी ने उन्हें भैरव बाबा के सामने किसी बच्चे की बलि देने की सलाह दी। इसके लिए व्यापारी नहीं तैयार हुआ लेकिन उसकी पत्नी तैयार हो गई। व्यापारी के लाख मना करने के बावजूद उसकी पत्नी ने उससे छुपकर संतान प्राप्ति की लालसा एक बच्चे की बलि दे दी। इसके बाद व्यापारी की पत्नी को कई बीमारियां हो गई। बीमारियों से पीड़ित पत्नी ने उसे जब यह बात बताई तो वह क्रोधित हुआ। हालांकि बाद में वह पत्नी को गंगा जी में स्नान कराने ले गया जिससे कि उसके पाप धुल सकें। यहां पर व्यापारी की पत्नी ने गंगा जी की अराधना की तो गंगा जी उसके सामने अचानक से एक बूढ़ी स्त्री के रूप में आकर खड़ी हो गई। व्यापारी की पत्नी ने उसे प्रणाम किया और उसके कष्टों के बारे में पूछा। गंगा जी ने उसे इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को व्रत रखने का सरल उपाया बताया। इसके साथ ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने की सलाह दी। कुछ समय बाद व्यापारी व उसकी पत्नी को पुत्र की प्राप्ति हुई और उसके सारे कष्ट दूर हो गए। इसलिए इस दिन आंवला की पेड़ की पूजा करने, उसका प्रसाद चखने और वहीं पर भोजन करने का रिवाज है।
पूजन का है ये वैज्ञानिक कारण
वहीं इस पूजा का एक वैज्ञानिक पहलू भी है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जब आंवला के पेड़ की पूजा होती है तो मौसम तेजी से बदल रहा होता है। ऐसे में इस दौरान आवंला के वृक्ष के करीब जाना और उसका सेवन करना लाभकारी होता है। आंवले के पेड़ में बड़ी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। पेड़ जलने व सूखने के बाद भी इसमें विटामिन सी मौजूद रहता है। स्वस्थ्य रहने के लिए विटामिन सी बहुत जरूरी होती हैं क्योंकि यह शरीर की मूलभूत रासायनिक क्रियाओं में यौगिकों का निर्माण और उनके कार्य में एक विशेष भूमिका निभाती है।
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