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ईश्वर का अस्तित्व

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***प्रस्तावना***              [सम्पादन]

दोस्तों !       मैं आपका बहुत आभारी हूँ की आपने इस किताब को पढने का मन बनाया।

जैसा की आप सब जानते है, जीवन में पुरी लगन  के साथ मेहनत करने वाला व्यक्ति

अपने जीवन मे अपना लक्ष्य किसी न किसी रूप में हासिल कर लेता है। किन्तु, आपका 

किया गया कठोर मेहनत  या दुआएं या  किसी भी प्रकार का कार्य आपका खोया हुआ समय

आपको पुनः नहीं दिला सकता। इसलिए, मैं आपका  अधिक समय  नहीं लेते  हुए,  मैं

आपको इस दुनिया  की कुछ वास्तविक तथ्य  से  परिचित कराऊंगा। आपलोग मुझ से

अधिक अनुभवी है, और इस किताब मे लिखी हुई अधिकांश बातें आप पहले से जानते

                    है I  मैंने उन सभी भावनाओं  का विवरण एवं विकल्प एकल किया हैं, और उन्हें शब्दों का

रूप दिया हैं, जो इंसान के मस्तिष्क को हमेशा से भ्रमित करता रहा है। मैं इस किताब के

  माध्यम से आपको उन सभी तथ्यों से अवगत करूँगा। मैंने इस किताब में जो भी लिखा

हैं, वो अन्य लोंगो के भांति मेरी भी अपनी सोच है। ये किसी की भावनाओं को चोट नहीं

करती, बल्कि मुझे उम्मीद है की आप भी इस से सहमत होंगे।

                    इस किताब का मूल उद्देश्य मानवीय विचारों पर जमे हुए मैल को हटाना है।

               

                                         ***विषय सूची***[सम्पादन]

                                                                    विषय                                                  पृष्ठ संख्या

ईश्वर  (God)                                                              01-09

जीवन  (Life)                                                              10-12

इन्सानी धर्म (Humanity)                                      13-17

मृत्यु   (Death)                                                           18-19

कार्य एवं रवैया  (Work & Attitude)                         20-20 

*** ईश्वर ***    [सम्पादन]

टीम–टिमाते असंख्य तारों का समूह, न जाने ये अनोखा (अलौकिक) संगम-मय दृश्य

        कहाँ तक जाता है। जिन के एकल रूप को हम ब्रम्हाण्ड कहते है। इस अनोखे रहस्यमय ब्रम्हाण्ड

        का एक छोटा सा कण हमारा प्यारा तारा सूर्य भी है। हम जिसके तीसरे ग्रह पृथ्वी पर रहते है।

        जो हमारा सब कुछ है, हमारा संसार है। ये धरती हमारी माँ समान है। इस धरती पर सदियों से

        चली आ रही इंसानी प्रजातियों के बिच एक प्रश्न जो यहाँ आने वाले (जन्म लेने वाले) हर

        इंसान के आत्मा को आहत करती है। आखिर इस सबका संचालन कैसे होता है ? इन सबका

        संचालक कौन है ? इस जन्म मृत्यु की क्या प्रक्रिया है ? यह प्रश्न तब उत्पन हुआ जब

        आदिमानवों का अंत हुआ, और मानव का जन्म (विकाश) हुआ। जब मानव ने मानवों के साथ

        मिल कर समाज की स्थापना की, और उस अपनों के लिए बनाये गये समाज में अपनों के दिए

        गए दुःख से स्वयं ही दुःखी रहने लगे। ताकतवर के द्वारा सताये जाने लगे। तब विश्व के अनेक

        हिस्से में अनेक महापुरषों का जन्म हुआ। उन महापुरषों ने जहाँ जन्म लिया वहाँ के लोगों के

        अनुसार उनके जरूरतों के अनुसार उनके विकाश के लिए अलग-अलग रीति–रिवाज बनाये। उनके

        विश्वास को बनाये रखने के लिए, उन्हें अपनी शैली से परम-शक्ति का अनुभव कराया। किन्तु,

        ये अन्य जानवर के समान जीवन वाला मानव जानवर की तरह ही व्यवहार करने लगा है। उन

        अलग-अलग रीति-रिवाजों को अपने आगम का श्रोत बना कर अपने स्वार्थ के लिए झगड़ने लगा

        है। परम-शक्ति के सिवाय उन इंसानो को पूजने लगा है जो अलग-अलग रीति-रिवाज (rules) बना

        कर इन्हें विकाश की दिशा में ले जाना चाहते थे। अतः जब पूजे जाने वाले लोग अलग हुए और

        उन्हें ईश्वर मानते है, तो स्वभाविक ही है की ईश्वर अलग होंगे। किन्तु, सौर्याबान लोगों को आज

        भी वास्तिवक ईश्वर की तलाश है। 

                                                 एक इंसान जो अधिक ताकतवर होता है, अपने परिवार का

        मुखिया होता है। एक इंसान जो अधिक बुद्धिजीवी है, जिसके पास अधिक पैसा अवं अधिक

         संयम है, वो अपने व्यवसाय का प्रधान होता है। एक इंसान जिसके पास अधिक बहुमत

         होता है, वो सम्पूर्ण राष्ट्र का स्वामी होता है। अब आप लोग समझ गए होंगे की, जो

         अधिक विशेष एवं अधिक ताकतवर होता है, वही प्रधान होता है। अर्थात जो इस अखिल

         ब्रम्हाण्ड में सबसे अधिक विशेष एवं ताकतवर है, वही ईश्वर है। जो सब कुछ संचालित

         करता है। जिसने इस ब्रम्हाण्ड को बनाया है।

             पौराणिक इतिहास की माने तो वह निरंकार हैं, पर वही सब कुछ करते हैं। उन्होंने ही

         हम  सबको बनाया हैं, हम जो कुछ करते है उन्हीं की मदद से करते है। हमारे द्वारा किया गया कार्य भी

         हमसे वही  करवाते हैं। अर्थात वह कुछ और नहीं बल्कि स्वयं ऊर्जा शक्ति (Force of Energy)  है।

“समस्त ब्रम्हाण्ड की शक्तियों का एकल समूह, जो स्वयं के साथ - साथ सब कुछ संचालित करता है, वही ईश्वर है”।

       

                            अ) घर्षण बल                                         (Frictional Force)

                            ब) तनाव बल                                        (Tension Force)

                             स) सामान्य बल                                    (Normal Force)

                             द) हवा प्रतिरोध बल                               (Air Resistance Force)

                             फ)  गुरुत्वाकर्षण बल              (Gravitational Force)

                           ग) चुंबकीय बल एवं अन्य  बल            (Magnetic Force & Other Force)

        ये सब इस ब्रम्हाण्ड को संचालन करने के लिए उस सर्व-शक्तिमान के द्वारा बनाये गये नियम है।

        ये सब उनके शरीर के अंग के समान है। समय उनका सबसे महत्पूर्ण सेवक है, जो उन्हीं की

        मदद से निरंतर आगे बढ़ता है, और सब कुछ बदल कर रख देता है ….. सब कुछ ! यहाँ तक की लोहे

        को भी मिट्टी में मिला देता है और बड़े – बड़े पत्थर के चट्टान को भी  रेत में बदल कर रख देता है।

        वो निरंकार हैं, उनका कोई नाम नहीं है। “वो समय एवं अपने सिद्धांत के माध्यम से हर जगह विद्यमान हैं”।

        वह हर  पल  हमारे  साथ  हमारे  पास होते  है,  फिर हम ब्रम्हाण्ड   के  किसी  भी  हिस्से में क्यों

        न हो। वो मुझ में या वहाँ के वस्तुओं में या परिवर्तित समय के माध्यम से वो सदैव हमारे

        साथ होते है। क्योंकी वह ऊर्जा शक्ति  है। उर्जा के कारण ही तारे अपनी जगह स्थिर होता है।  ऊर्जा

        की  मदद  से  ही  ग्रह  चक्कर  काटती  है।  जहाँ  कुछ  नहीं  होता  वहां  भी  कुछ  नहीं होने  की शक्ति 

        उपस्थित होती है।  अर्थात, ईश्वर  हर  जगह  है।  वह हमारे शरीर में निरंतर प्रक्रिया उत्पन्न

        करते है। ऊर्जा हमारे मस्तिष्क को बल देती है, जिस की मदद से हम आगे सोचते है और

        विकाश करते है। आप अपने हाथ को उठाओ कुछ देर ऊपर रख कर उसे अपनी जगह रखो

        और फिर पुनः आराम से करो आप ने गौर किया की आपका हाथ किसी बल की मदद से

        ऊपर उठा और निचे आया है यही शक्ति "ईश्वर-शक्ति" है। इस शक्ति को कोई  देख नहीं

        सकता। किन्तु, हर प्राणी इस शक्ति को महसूस कर सकता है। फिर वो किसी भी धर्म 

        का क्यों न हो, या फिर वो किसी भी ग्रह पर क्यों न रहता हो। उस परम शक्ति का न तो

        कोई धर्म है, न ही कोई मुल्क। उसका अगर कुछ है, तो मात्र उसके द्वारा बनाया गया नियम

        जो अपनी जगह व्यवस्थित रूप से निरंतर कार्य करता है। वह हर जगह विद्यमान है, और सब

        कुछ उसके अधीन है। क्योंकि ये समस्त ब्रह्माण्ड उसी के द्वारा बनाया गया है।

        अब दो अंतर्वस्तु जिसकी अभियोग से लोग भ्रमित है  --

          i)           भाग्य  

            ii)     पुनर्जन्म

           1)    भाग्य   --  क्षमा करना ये जो मै कहने जा रहा हूँ वास्तव में गलत है।

        किन्तु, आप लोगो को समझाने के लिए उदाहरण के उधेश्य से बता रहा हूँ। --

        कोई इंसान १० बजे अपने दफ्तर के लिए प्रतिदिन निकलता है। किन्तु, आज तक

        उसके साथ कुछ नहीं हुआ। पर आज एक ट्रक चालक जो  ५० किo मीo की

        दुरी से ट्रक चलाते हुए आ रहा है। उसने शराब पी रखी है, एवं अपने परिवार की

        मुश्किलों के ख्वाब  में खोया हुआ गाड़ी चला रहा है। जो दिन के ठीक १० बजे उस

       व्यक्ति की गली के बाहर वाले राज्य मार्ग से होकर अपने मंजिल की ओर जायेगा।

        आज प्रतिदिन की तरह वह अपनी मोटर गाड़ी से दफ्तर के लिए निकलता है।

                                          यह प्रक्रिया दिन के ठीक १० बजे होती है, जब

        वह गली से बाहार निकलता है। वह अपनी बांयी ओर खड़े मेमने को बचाने के लिए

        गाड़ी मोड़ता है। तभी वह ट्रक चालक उसकी गाड़ी में टक्कर मारता है, और उसे रौंद

        जाता है। अगर ये बात उसे पहले से पता होता, जैसे किसी परिक्षक को उत्तम छात्र         

        का प्राप्तांक पहले से पता होता है। तो क्या वो किसी भी हालात में उस समय अपने

        घर से निकलता ? नहीं वो कभी नहीं निकलता। हाँ, वो जिद्दी १० मिनट देर से जाता।

                                  अगर आप किसी कार्य को अज्ञानता पूर्वक करते हो, और कुछ

        अनहोनी होती है ! तो आप तक़दीर का दोष देते हो। वास्तव में हमारी इंसानी प्रजातियाँ

        आपस में ऐसे घुली-मिली है, की किसी दूसरे के ज्ञान की कमी या गलत अवधारणाय या

        किसी दूसरे के द्वारा किया गया गलत कार्य, हमें भी क्षति पहुंचाती है। जैसे यहाँ ट्रक

        चालक की गलती के कारण, किसी अन्य की दुनियाँ सिमट गई। उसके परिवार वाले जीवन

        भर भाग्य का दोष देते रहे। एक इंसान का जीवन उसके एवं उसके परिवार के सदस्यों के

        लिए उतना ही कीमती है जितना की आपका, अतएव विकाश किसी विशेष देश में नहीं,

        किसी विशेष स्थान पर नहीं बल्कि हर उन जगहों पर जहाँ इंसान रहते है एक समान

        होना चाहिए। अन्य जगहों की तरह अगर यहाँ की टेक्नोलॉजी अछि होती तो इस घटना के

        होने की संभावना नहीं थी। आज के समय का विज्ञान एवं आने वाले समय के तकनीक के

        माध्यम से इस घटना से दो तरीके से बचाव हो सकती थी, पहला अगर वो दोनों ही गाड़ियाँ

        पूर्णतः सुरक्षित स्वतःचालित मशीन से चलने वाली होती, जो एक दूसरे की गलती को देख

        कर स्वतः ही रुक जाती। या, दूसरा दोनों होश में (वर्त्तमान में) होते। अतः यह घटना किसी

        भी प्रकार से भाग्य का दोष नहीं देती, बल्कि यह पूर्णतः हम मानवों का दोष है।

        मै आपके सन्देह को स्पष्ट करने के लिए एक और उदाहरण देता हूँ।-----

        एक इंसान जिसके पास एक पालतू कुत्ता है जो सदैव उस इंसान के साथ रहता है। एक रात

        की बात है, जब वो इंसान अपने घर में बैठक खाना से निकल कर शयनकक्ष में सोने

        जाता है। उस कक्ष का दरवाजा स्वतःचालित होता है जो खोलने के बाद पुनः अपने-आप बंद

        हो जाता है। वह इंसान जब अपने कमरे में प्रवेश करता है तो वह कुत्ता भी उसके पीछे आता

        है। उस दरवाजे को धकेल कर जब वो कक्ष में प्रवेश करता तो उसकी पूंछ उस कक्ष के

        दरवाजे में फँस जाती है। वह बेचैन हो कर भौंकते हुए पूरी ताकत के साथ अपनी पूंछ को

        खिंचता है। वास्तव में जब हम इंसान को चोट लगती है तो हम भी कुछ देर के लिए बेचैन

        हो जाते है, किन्तु पुनः अपने सामान्य ज्ञान से उसे सुलझाने का प्रयत्न करते है, पर एक कुत्ता

        हम इंसानों की तरह समझदार नहीं होता और वो अपने दर्द का उपाय अपने पूंछ को वहाँ से

        खिंच कर निकलना समझता है। इसीलिए जब तक वो इंसान उस दरवाजे को पुनः पीछे की ओर  

        खोलता, उससे पहले तनाव के कारण उसकी पूंछ कट जाती है। क्या ये घटना भी उस कुत्ते के

        भाग्य का दोष देती है ? नहीं ये उसके भाग्य का दोष नहीं ये उसकी अज्ञानता है। पहला - उस

        कुत्ते ने दरवाजा खोलने से पहले यह नहीं सोचा की उसकी पूंछ उस दरवाजे में फंस जाएगी।

        दूसरा - वह हम इंसानों जितना अकल्मन्द नही था जो वह रुक कर उस दरवाजे को पुनः पीछे

        की ओर खोलने का प्रयत्न करता। तीसरा – जिस प्रकार हम मानव उचित समय की ज्ञान न

        होते हुए या उसे नजर-अंदाज़ करते हुए जल्दबाजी में गलती कर जाते है। ठीक उसी प्रकार वह

        कुत्ता उस इंसान के द्वारा दरवाजा खोले जाने का इंतजार नहीं किया और अपनी पूंछ खो दिया।

                                              अतः उपर्युक्त दोनों घटना अज्ञानता का प्रतिक है,

        न की भाग्य का दोष। जैसा की हम सब जानते है की दूसरा विश्व-युद्ध क्यों हुआ था, कब हुआ

        था और उसका क्या परिणाम हुआ। हम सबको सैकड़ों प्रश्नों का उत्तर पता होता है। हम सबको  

        अपने सगे-सम्बन्धियों का जन्म तिथि एवं अन्य इतिहासिक घटनाओं की तिथि याद है। किन्तु,

        हम सब में से कुछ व्यक्ति जो सौ प्रतिशत वर्त्तमान में नहीं रहते एवं जो रहते है और जहाँ

        रहते है उन्हें वहाँ के हर-पल बदलते वातावरण का ज्ञान नहीं होता। उन्हें यह ज्ञात नहीं होता

        कि उनके आस-पास क्या क्रियाएं की जा रही है और उसका क्या परिणाम होगा। इसके परिणाम  

        स्वरूप आस-पास में हुई बम-बिस्फोट, सलेंडर-बिस्फोट, आगलगी एवं अन्य घटनाओं से

        उन्हें भी क्षति उठानी पड़ती है। आप जब सामने वाले इंसान से कुछ बात करते हो, बिना ये

        जाने की उस के मन में इस समय क्या चल रहा है, उसके पास किस प्रकार का ज्ञान है और

        उसके साथ क्या-क्या घटनाएं हुई है। उस पर इन बातो से सकारात्मक या नकारात्मक किस

        प्रकार का प्रभाव पड़ेगा या फिर वो ऐसी बाते करके आप में ही अपना फायदा ढूंढ रहा है।

        जब अंत में वो इंसान आपको धोखा देता है तो आप इसे भी भाग्य का दोष देते हो।

                                  हम जानते है कि यह दुनिया अत्यधिक बड़ी है और

        यहाँ हर पल किये गए कार्य को समझ पाना दुर्लभ है। किन्तु, हर घटना के बाद भाग्य का

        दोष देना एवं उसे भूल जाना और पुनः उन्हीं गलतियों को करना पागलपन है। वास्तव में 

        उन घटनाओं से सीख लेकर वर्त्तमान में स्वयं में अधिक से अधिक पूरक होना सीखो।

        अगर फिर भी आप भाग्य में विश्वास रखते हो तो इतना जान लो कि एक इंसान स्वयं अपने

        कर्मों के द्वारा या अपने द्वारा किये जा रहे कार्यो में परिवर्तन करके अपने भाग्य को बदल

        सकता है।।         

          2)    पुनर्जन्म  --  आप जब किसी बच्चे को जन्म देते हो, उसे पालते हो। जब वह बच्चा

           बड़ा होता है, तो अच्छे स्कूल में उसका दाखिल करवाते हो।  जब वही बच्चा किसी ऊँची

           कक्षा में जाता है, और एक से अधिक बार असफल होता है। तो आप चन्द रुपयों के लिए    

           उसकी शिक्षा छुड़वाते हो। यह जानते हुए कि यह उसके जीवन को अत्यधिक क्षति पहुँचायेगा।

           तो सोचो आप को बनाने वाला वो विधाता क्या इतना अज्ञानी है, जो एक ही इंसान को

           बार-बार अवसर देगा। जिसने अपने पूरे (कई वर्षों के) जीवन में कुछ नहीं किया। क्या

           भरोसा है की वह मिट्टी पुनः खड़ा होकर उस अधूरे कार्य को पूरा करेगा। अतः पुनर्जन्म की

           आश रखना व्यर्थ है।

                   वास्तव में पुनर्जन्म और भाग्य इंसानो के भ्रम से अलग कुछ और नहीं है।

                                                                                     “ भाग्य कुछ नहीं है, जो भी है केवल कर्म है।”

          “आज जो भी हो रहा है, वो बीते हुए कल के आधार पर हो रहा है। कल जो भी होगा,

                     आज की अवस्था, हालत, घटना, एवं समय के आधार पर होगा।”

                            (Luck is nothing, work is every thing.)

                        “You believe, Luck is another name of Ignorance.

          Today is depended on past day & Future is depended on today’s

                                    work and situation.”

           जब आपके साथ बुरा होता है, तो आप कहते है की भगवान नहीं है। क्योंकि उन्होंने बुरे-से-बुरे   

           हालात (जैसे भूकंप, दुर्घटना, अनहोनी इत्यादि) में भी आपका साथ नहीं दिया। आपने देखा

           की ये बुरे हालात उन्हीं के किसी नियम के तहत हो रहा था, अर्थात वो वहाँ मौजूद थे और जो

          आपके लिए बेहतर था उन्होंने वही किया ( जैसे कोई इंसान किसी पुल के नीचे से जा रहा है

           अचानक वो पुल गिरता है और वो छलांग लगाता है, लेकिन उसके पैर उस पुल के किसी खम्भे

           के नीचे फँस जाता है और उसका पैर टूट जाता है। यह भी अज्ञान्ता है, क्योंकि अगर छलांग

           लगाने में देर करता तो वो खंभा उसके पैर की जगह उसके सर पर गिरता जिससे उसकी जान

           भी जा सकती थी और अगर सही समय पर छलांग लगता तो शायद उसके पैर भी नहीं फंसते।  

           यहाँ समय का कुछ अंतराल उसके भविष्य को बदल कर रख दिया। किस्मत पूर्व निर्धारित नहीं  

           होते, बल्कि नियम पूर्व निर्धारित होते है। जैसे लोहे मे जंग लगना, गुरुत्वाकर्षण के कारण पुल

           का धरती पर गिरना ये सारे कार्य उस परम्-शक्ति के नियम के तहत हुआ है। समय भी अपने

           सामान्य चाल से चल रही थी अर्थात वो वहाँ उपस्थित थे।) अगर फिर भी आप के समझ के  

           अनुसार कुछ बुरा हुआ तो वह आपकी गलती है क्योंकि आपने अन्य मापक यंत्र की तरह इस

           कार्य को मापने के लिए कोई यंत्र नहीं बनायें और न ही समय रहते अपने आप में या उस

           कार्य में बदलाव नहीं ला पाये।                         

                               अपनी गली में भटकते कुत्ते को देख कर आपने कभी सोचा है कि

          उसके भी अलग भगवान होंगे। जैसे कोई बड़ा सा शक्तिशाली कुत्ता। नहीं आपने ये नहीं सोचा,  

          आपके अनुसार आपके भगवान ही उन सबके भगवान है। बस वो हमसे अलग प्रजाति का है।

          जब आपके अनुसार किसी अन्य जानवर के अलग भगवान नहीं है, बस वो आपसे थोड़ी अलग

          प्रजाति का है। तो आपके जैसे दिखने वाले इंसान, आपके जैसे रहने वाले एवं आपकी तरह

           सोचने वाले इंसान के भगवान अलग कैसे हो सकते है। फिर ये धर्म के नाम पर युद्ध क्यों ?

          जिस प्रकार आपने मान लिया की बस उस जानवर के व्यवहार एवं मानसिकता आप से

          अलग है। उसी प्रकार आप अन्य लोगो के प्रति भी यही सोच रखे। क्योंकि सभी धर्म के लोगों

          की सद्भावना उस अनंत-शक्ति के लिए है। प्रेमपूर्वक धर्म को मानने वाले लोग जिस दिन उस

           धार्मिक ग्रंथों की वास्तिविक भावनाओं को समझेंगे, और सब मिलकर उस अनंत शक्ति के

          नियमों को स्वेक्षा से, सावधानी पूर्वक अंगीकार करेंगे उस दिन यह हमारा विश्व इस अखिल

           ब्रम्हाण्ड का सबसे सुनहरा जगह होगा।

                                                जब आप उस परम् -शक्ति से कुछ दुआ

          मांगते हो और दुआ कबूल नहीं होने पर कहते हो वो नहीं है। क्योंकि उसने हमारी नहीं

          सुनी। जरा सोचो वो आप की कैसे सुनेगा ! आप नहीं बल्कि आप का ग्रह ही उसके आगे रेत

          की एक बड़ी सी दुनिया में एक कण के सामान है और उसने तो मात्र इस रेत के टीले को          

          व्यवस्थित रूप से बिचरने के लिए व्यापक सिद्धांत बनाये है। जैसे केरोसिन तेल में आग लगेगा

          ही चाहे वो सुखी लकड़ी पर हो या इंसान पर। रेलवे पटरियों पर लेटने वाला इंसान हो या

          जानवर ऊंच दवाब के कारण दबेगा और नुकीली जगहों की रगड़ से घिसेगा या कटेगा ही।                                     

                                    मैं आप से ये जानना चाहता हूँ की आप किसी अन्य  

           पशु की भाषा जानते हो, जिसका आप भक्षण करते हो। आप तो एक साथ ही रहते हो।

           एक धरती पर रहते हो। जिनके बिना आपका जीवन कठिन है। जब आप उनकी भाषा

           नहीं समझते।  आप उनके भावनाओं को समझकर भी अनजान बनते हो। फिर वो आप

           की कैसे सुन लेगा, आप  जिनके नियमों के परिणाम हो।

                                       चलो कुछ देर के लिए मान लिया, वो आप सब की

           सुन लेता है ...... सब की। तो ये बात भी आप के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन जाएगी।

                         क्यूंकि प्रत्येक प्राणी अपने लाभ के लिए प्रार्थना करता है। फिर न तो कोई जानवर आप को

                        अपना दूध देगा, न ही अपना मीट देगा, और न ही अपना खाल।  क्योंकि   ठण्ड उन्हें भी लगती है।

                        फिर न तो कोई पेड़ आपको अपना फल देगा और न ही अपने पत्ते।  क्योंकि गिर कर मिट्टी में

           मिलने के बाद यह उनके लिए लाभदायक होगा। फिर उन्हें आपके द्वारा लगाए जाने की

           भी आवश्यकता नहीं। क्यूंकि उस परमात्मा के सिद्धांत हर प्राणी के साथ है।

                                 अगर वो आप के जीवन की समस्याओं को सुनने लगे, तो क्या

            आप को लगता है की जिस  प्रकार आप मानव अपने उपभोग के लिए अन्य पशुओं एवं

            अन्य प्राणी को नुकसान पहुंचाते हो। अन्य प्राणी को छोड़ो आप मानव हो कर दूसरे मानव

            को जिस प्रकार सताते हो, उसके हिस्से की रोटी को अपने भविष्य के लिए संयोजित करते

            हो, बिना इस बात की परवाह किये की वर्त्तमान में कोई भूखा है। क्या वो आपको करने

           देगा ? जिस दिन आप सब लोग अपने अंदर प्रकृति एवं अन्य जीवों के प्रति सद्भावना

           जगाओगे। उस दिन किसी से मांगने के लिए आपके पास कोई जरूरत शेष नहीं रहेगी।

       ***                           

***जीवन***      [सम्पादन]

  इंसान के कुछ भी करने के पीछे मात्र दो कारण होता है। जिसमें पहला आराम है, और दूसरा

          ख़ुशी। वास्तव में लोग ये नहीं जानते की जीवन क्या है ? और उनकी मंजिल क्या है ?

              उस अनन्त-शक्ति के बनाये गए नियम के अनुसार माता-पिता

         के प्रेम का प्रतिफल उनका दिया हुआ सबसे हसीन तोहफा हमारा जीवन है। जो माता के गर्भ से प्रारम्भ

        होता है। माता-पिता के पैतृक गुण एवं उनके अपने गुण एवं गर्भ की स्थिति एवं गर्भ   के समय किये गए कार्य

             एवं हालात  पर, हमारे रूप एवं अंग का निर्माण होता है। बच्चा जिस जगह पर जन्म लेता है, उस जगह के  

        वातावरण, उसके आगे किये गए कार्य या उसके साथ किये गए व्यवहार के अनुसार उसके ज्ञान का

        निर्माण होता है। यही ज्ञान की प्रक्रिया जीवन भर चलती है। जब-जब उसे चोट लगती है उसके ज्ञान

        का विकाश होता है। जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था, मानवीय प्रजातियाँ आपस में इतनी सघन्ता

से मिली हुई है, की बच्चे के जन्म के पूर्व से ही वो अपने माता-पिता एवं सम्बन्धियों के किये

        गए पूर्व कार्य एवं वर्त्तमान में किये जा रहे कार्य का भागीदार हो जाता है। उनके परिस्थिति एवं

        हालात को झेलना प्रारम्भ करता है। जिसमें उनका कोई दोष नहीं होता।  उसी समय से समाज में

         फैली हुई विचार एवं कुविचार का शिकार भी होता है। इन सब के साथ-साथ उसे सर्वशक्तिमान के

        बनाये गये इस प्रकृति के नियमों का पालन भी करना होता है। इतने नियमों से घिरा जब किसी

        बच्चे का परिवार या वो स्वयं जब किसी बुराइयों का शिकार होता है। और फिर वह अपने दुःख

         से आसानी से निकलने का उपाय ढूंढता है, और स्वयं भी बुराईयों के मार्ग पर चल देता है। इस

        दुनिया में बुराइयों पर चलना भी आसान नहीं है। किन्तु, वो जब तक निर्धारित ढंग से चलता है

        परिणाम जल्दी देता है।

        "एक अनिवार्य बात आप को बता दूँ की इस दुनियाँ में सुरक्षा चाहे जितनी भी कड़ी क्यों न की

         जाए, जब तक यहाँ रहने वाला प्रत्येक वयक्ति अपने आप में परिवर्तन नहीं लाएगा तब तक हम

              सब के द्वारा किया गया कार्य अधूरा है"। जिस प्रकार वो इंसान बुराइयों के शिकार होने के बाद भी  

        खुद बुरा हो जाता है। न जाने वो अपने जीवन कल में इस विष को और कितना फैलाएगा। आज

        के समय में ये विष घट्ना के माध्यम से, सूचना के माध्यम से एवं वार्त्तालाप के माध्यम से

        प्रत्येक मानव की सोच में बैठ गया है। जिस प्रकार आजकल लोगों की सोच दूसरों की परवाह

        किये बिना स्वयं को सबसे महान बनाना है, ऐसे में आने वाले समय में ये कठिन परिस्थिति

        उत्पन करेगी।

                                                          अतः अब वो समय नहीं रहा जब

        लोगों को स्वर्ग एवं नर्क का डर दिखा कर मानवता के रास्ते पर लाया जाये अब लोग अधिक

        समझदार हो गए है, और समझदार लोग अपने फायदे के लिए उन अन्य धर्मों को अपना हथियार  

        बनाने लगे है। अतएव हम सभी मानवों को आपस में विमर्स कर के समय रहते इन आने वाली

        कठिनाइयों से बचने के लिए निष्कर्ष निकालना ही होगा। इसके लिए कठिन से कठिन नियमों की

        आवश्यकता है। जैसे मैं आपको एक उदाहरण दे रहा हूँ - चंद रुपयों के रिश्वत के लिए जब कोई  

        साक्षात्कार कर्ता अपना ईमान खोता है, और वो काबिल इंसान के बदले किसी अन्य को वो पद

        देता है तो उसे मृत्यु की सजा होनी चाहिए। क्योंकि उसने जिस इंसान को पदयुक्त किया है,

        वास्तव में वो उस पद के लिए प्रयुक्त नहीं है। वो सही कार्य नहीं करेगा। जैसे- ५० किलो वजन

         ढोने वाला व्यक्ति १०० किलो वजन ढोने के काबिल नहीं होता।

        इससे अनेक विकाश अवरोधक परिणाम होते है --

        १) उस काम से जुड़े लोगों को बाधा एवं उनके पुनः न मिलने वाली महत्पूर्ण समय की क्षति ।

        २) उस कामयाब व्यक्ति का व्यर्थ होना एवं उसके द्वारा समाज मे उपद्रव करना।

        ३) समाज के इस उपद्रव से परेशान होकर अन्य लोगों द्वारा भी बुराई करना, अर्थात विनाश का  

            पुनर्स्थापन।

                                  इंसानी जीवन आपस में काफी सघन्ता से मिली हुई है। हम अपने

          जीवन में अपनी उपभोग की सभी वस्तु स्वयं निर्मित नहीं कर सकते। न ही जिस परिवार में

              हमने जन्म लिया है उस परिवार के लोगों की मदद से कर सकते है। अतएव, हमें इसके

           लिए अन्य लोगों की जरुरत होती है और हमें इस कार्य को करने के लिए अन्य लोगो

          के साथ सम्बंध बनाने होते है। वास्तव में कहा जाए तो मात्र सम्बंध ही इस दुनिया का मात्र

          एक ऐसा भाववाचक शब्द है, जो सबसे निर्मल है। यह सैकड़ों त्याग से बनती है, किन्तु

          मात्र एक छोटी सी चोट या संदेह से टूट जाती है। अतः अपने आस-पास के लोगों के साथ

          आपस में विश्वास रखें अनेक रिस्ते बन जायेंगे। एक अन्धविश्वास पिता-पुत्र के सम्बन्ध को

          भी समाप्त कर देता है। आपके दिल में जिस इंसान के प्रति जो भी अच्छा या बुरा है उन्हें

          उनसे साफ-साफ कहे और आपस में मिलकर समाधान निकाले। अगर आपके लिए सहज  

          नहीं है तो आप सीधे माना कर दो और दूसरे व्यक्ति को भी सामने वाले की विवश्ता

          समझनी चाहिए। क्योंकि बेबजह छोटी सी बातों के लिए अपने इस छोटी सी जीवन में अपने

          समान अनमोल मानव को चोट पहुंचाना उचित नहीं।

                                             अतएव, हर व्यक्ति को इंसान होने के नाते अपने

     इंसानियत धर्म का पालन करते हुए, अन्य के स्थान पर स्वयं को रख कर अन्य के साथ व्यवहार करना चाहिए।                                                       

                ***

***इन्सानी धर्म***[सम्पादन]

       इस दुनिया में अनेक महापुरुषों द्वारा बनाये गए अनेक धर्म है।

         हिन्दू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई एवं अन्य। जो जानवरों की एक प्रजाति मानव प्रजाति को

         अन्य प्रजातियों से विशेष बनाया है। किन्तु, वास्तव में कुछ रीति-रिवाज हमारे पूर्वजों द्वारा

         उनके अपने निजी सुविधाओं के लिए बनाया गया था। जिनमें से कुछ रिवाज आधुनिक विकाश

         के युग में पुराने हो गए है। अतः उन्हें भुला देना चाहिए अन्यथा ये हमारे विकाश में गतिरोधक                

         साबित होगा। जैसे पुराने घर को नहीं भुलाना चाहिए जिसमें आपका जन्म हुआ है, किन्तु, पुराने

         घर के  खतरे  से बचने के लिए उसे बदलना या उसका मरम्मत करवाना उचित है। किन्तु, जब तक

         नई खोज पूर्णतः लाभदायक साबित न हो,  या पहले से बेहतर न हो उसे भुलाना भी नाकामयाबी को

         पाना है।  क्योंकि हर इंसान के जीवन में इतना समय नहीं होता की वो प्रत्येक कार्य को स्वयं करे,

         अतः उसे अन्य के अनुभव से ही सीख लेनी परती है। इसीलिए जो सैकड़ो वर्षों से चली आ रही है

         उसे हम गलत नहीं कह सकते पर उनमें समय-समय पर परिवर्तन आवश्यक है। ताकि वो

         आने वाले समय में कायम रहे।

                                   दुनिया की समस्त धार्मिक पुस्तकों को आपस में मिलाया जाए, तो

         हम पायंगे की सभी पुस्तक समान ही है। किन्तु,  धर्म निर्माताओं के अलग-अलग स्थान पर जन्म

        लेने से उनके रीती-रिवाज में अंतर हुआ जो आज के समय में बिबाद उत्पन करता है। अतएव, हमें  

         रिवाज के अनुसार नही,  किसी विशेष धर्म के अनुसार नहीं बल्कि वास्तविक धर्म के अनुसार चलना

         चाहिए। जब हम उन सभी धर्म एवं धार्मिक पुस्तकों को आपस में मिलाते है,  तो हमें वास्तविक धर्म

         का पता चलता है।

              प्रकृति के दिए हुए गुणों के अनुसार इस दुनिया में मानवों के लिए दो प्रकार के धर्म है। -

1)        शर्त रहित प्रेम धर्म     (Unconditional Love)

2)       मानव धर्म / इंसानी धर्म               (  Humanity )

     

         प्रेम धर्म एक ऐसा धर्म है, जिसे आज के समय में इंसान से अधिक पशु अपनाते है।                  

1)       शर्त रहित प्रेम धर्म (Unconditional Love) - प्रेमी और प्रेमिका का प्रेम, प्रेम धर्म नहीं

  होता। बल्कि, ये प्रेम धर्म का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। वास्तव में प्रेम धर्म देवता प्रवृत्ति

        के लोग ही अपनाते है। क्या आप ने उन घरेलू जानवर को देखा है जैसे कुत्ते या बिल्ली जो

        अपने छोटे - छोटे बच्चे को अपने मुँह से दबाकर उसे साफ एवं सुरक्षित जगह पर ले कर जाते  

  है ? आपने देखा होगा कि जब वही अकेला होता है और आप उसे छूना चाहते है तो वह भागता

  है। किन्तु, जब उसके साथ उसका बच्चा होता है तो वो अपनी परवाह किये बिना हम पर  

  आक्रमण करता है। वो हम इंसानों की तरह उन बच्चों से, ये उम्मीद भी नहीं करते की वो    

  उन्हें काम आएंगे। इसे ही शर्त-रहित प्रेम धर्म कहते है।

                                          “त्याग प्रेम धर्म का प्रथम सिद्धांत है”। इस धर्म में

        अपना-पराया नहीं होता। यह स्वयं से अधिक अन्य को एवं सत्य को पूजता है। इसे पालन  

       करने वाला व्यक्ति मात्र सर्वशक्तिमान के बनाये गए नियम की उपासना करता है। मैं आपको  

       इसका एक उदाहरण देता हूँ। --

        आप जंगल में घूमने गए हैं। आप अपनी गाड़ी से निकल कर वहाँ की कुछ अनुपम

  दृश्य देख रहे हैं। अचानक आप के आगे आप से कुछ दुरी पर एक भूखा बाघ आ गया है।

  तब आपके पास तीन उपाय होता है।

         प्रथम - आप उस बाघ की लिए स्वयं को समर्पित कर दो क्योंकि वो भूखा है और भोजन की  

         तलाश में मेहनत करते हुए वो आप तक पहुंचा है। यह प्रेम धर्म है।

        दूसरा - आपकी जान आपके लिए अधिक महत्पूर्ण है और भागने पर आपकी जान बच सकती

       है तो आप अपनी जान बचा सकते हो। यह इंसानियत धर्म है।

       तीसरा - भागने पर आपकी जान बच सकती थी। किन्तु, भागने के बजाये आपने अपने पास

       रखे हथियार से उस का बध कर दिया। यह हैवानियत है जो किसी धर्म में नहीं आता।

          मानव धर्म / इंसानी धर्म  ( Humanity ) - इसका सर्वप्रथम उद्देश्य है अपने प्राण की रक्षा  

        करना। क्योंकि जिस दिन आपने अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर लिया उस दिन

       आप इस दुनिया के लिए और ये दुनिया आप के लिए मर जाएगी। इसका दूसरा

       उद्देश्य मात्र उतना प्राप्त करना है जितने पर आपका हक़ है या जितने की आपको  

        जरुरत है। इसका तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ इंसानियत

        का पालन करना है। इंसानियत धर्म उल्लेखित नहीं किये जा सकते, बल्कि ये प्रत्येक  

        इंसान द्वारा स्वयं निर्मित किये जाते है। जैसे कुछ भी करने से पहले दो मिनट  

        का मौन रखना और ये सोचना की " क्या ये सही है ? इस कार्य के बाद मेरी जमीर  

        कैसी होनी चाहिए ? हर इंसान को मरना है और मुझे भी, मृत्यु के पश्चात् जब सब

ख़त्म हो जायेंगे तब मेरे कर्म कैसे होने चाहिए ?" यह सब सोचने के बाद आप उस

      कार्य के विषय में सोचो फिर जो आखरी निष्कर्स निकले सिर्फ उसे करो चाहे फिर वो

    कितना भी कठिन क्यों न हो......उसे करो।  

         क्योंकि यहाँ आने वाले प्रत्येक इंसान की मंजिल मृत्यु है और हमें मरने से

          पहले कुछ करना है।

                           माता-पिता अपने बच्चे को जन्म देते है चाहे उन्हें फिर

         कितनी ही तकलीफ क्यों न झेलनी परे, वो उन बच्चों को अपने शरीर का अंग

         समझ कर उसका पूरा-पूरा ख्याल रखते है। जब वही बच्चा बड़ा होता है, तो

         उसकी ये छोटी सी जिंदगी न जाने कितनी बड़ी हो जाती है और उसके छोटे-छोटे 

         कार्य बहुत बड़े हो जाते है की वो अपने उस प्रथम भगवान माता-पिता का सहारा

         बनने के बजाय वो उन्ही उलझनों में खो जाता है।

                                  मैं उन लोगों से जानना चाहता हूँ कि वो ऐसा

          क्यों करते है ? मेरा मानना है कि उन्हीं बातों से एवं उन्ही लोगों से विवाद

          उत्पन्न होता है जिन बातों के लिए आपस में बैठ कर विमर्श न किया जाय।

          आप अपने पारिवारिक लोगों के रिश्ते को लेकर ये सोचने के बजाय कि वो

          आपके जीवन का अनमोल समय बर्बाद कर रहा है, आप ये सोचो की हजारो

          बर्षों पश्चात् आपको अपने माता-पिता के द्वारा यह अनोखा संसार मिला है

          यहाँ अपने जैसे लोगो एवं अपने सम्बन्धियों के साथ मिलकर ये अनोखा

          जीवन कैसे व्यतीत किया जाय।

                                     क्या आप जानते हो कि आप पिछले हजारों

          वर्षों में कहाँ थे ? आज के बीस या बीस से अधिक पच्चास या साठ वर्ष मात्र

          उसके बाद आप कहाँ रहोगे ? जब आपको कुछ भी ज्ञात नहीं फिर मात्र इन

          कुछ वर्षों को व्यतीत कर पाना आप मानवों के लिए इतना मुश्किल है। अगर

          आप दिखाने के लिए कुछ करते हो और कहते हो कि आपने अपने जीवन में

             ये किया....वो किया पर आपके मरने के कुछ महीनों बाद ही क्यों लोग

          आपके नाम तक को भूल जाते है। अन्य लोगों की छोड़ो आपके आने वाले

           पीढ़ी के बच्चे ही आपका नाम नहीं जानते फिर तो इससे बेहतर है की आप

          जानवरों की तरह सामान्य जीवन जियो। आप मानवों के लिए अपने जैसे

          सामान्य लोगो के दुखः के समय हमदर्द बन पाना मुशकिल है। लेकिन अपनी

          चंद ख़ुशी के लिए उन्हें क्षति पहुँचाना ये कैसी अवधारणा है ?            

***

***मृत्यु***[सम्पादन]

           मृत्यु इस दुनिया का सबसे अनचाहा सत्य है। जो भी सज़ीव यहाँ जन्म लेते है, उसकी

             मृत्यु निश्चित है। अगर आने वाले समय में विज्ञान अमर होने की दवाई या यंत्र बना

             भी लेता है तो उससे मात्र कुछ विशेष लोंगो को ही बचाये जायेंगे सब नहीं। क्योंकि जिस

             प्रकार हर यंत्र उपयोग के बाद नष्ट होता है और हम उसका सॉफ्टवेर या अन्य कार्यरत

             अंग निकाल लेते है, उसी प्रकार शरीर ख़राब हो जाएगी। फिर आप इसे कपड़े की तरह

             बदलो या मृत हो जाओ। और कपड़े की तरह बदलने के लिए भी हमें अन्य शरीर की

             जरुरत होगी जिसका भौतिक रूप में निर्माण नहीं हो सकता। अतएव सजीवों की मृत्यु

             निरंतर किसी न किसी रूप में रहेगी चाहे वो नये शरीर वाले इंसान की हो या पुराने शरीर

             वाले की।

                                                          मृत्यु कुछ इस प्रकार है ! जब आप गहरी नींद में सोते

              हो तो आप शून्य होते हो। ठीक उसी प्रकार जब आपकी मृत्यु होती है तो आप अन्य की

              भांति शून्य हो जाते हो और आपका ये शारीरिक अवशेष मिट्टी में मिल जाता है।

              अन्तोगत्वा कुछ नहीं बचता।

                                                इस छोटे से जीवन में जहाँ का कुछ भी आपका

              नहीं है, और जहाँ आपकी तरह ही अन्य विवश प्राणी है। आप कुछ लालच के कारण, कुछ

              ख़ुशी के कारण अपने बुरे कर्मों से दूसरों का सब कुछ छीन लेते हो। आप इंसान इस

              समाज में फैली कुविचारों का समर्थक बन जाते हो, और अपने किये गए दुष्कर्म से अपने

              साथ - साथ अन्य इंसान के साथ - साथ अन्य जीवों के जीवन में भी विष फैलाते हो।

              आप इन सबके पीछे ये भूल जाते हो कि ये आपका जीवन आपका आखरी अवसर है।

              इसके बाद न आप - न मैं,  न अपना - न पराया एवं न दोस्त - न दुश्मन। आपके

              द्वारा किया गया जुल्म सिर्फ आपके जमीर के खिलाफ ही नहीं बल्कि, उस अनंत-शक्ति

              के खिलाफ भी कृतघ्नता है।

***

***कार्य एवं रवैया***[सम्पादन]

    मरना हर किसी को हर हाल में है मृत्यु महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि, आपने अपने जीवन

              में अच्छी भावना या अच्छे विचार के साथ कितना जिया (अच्छे  विचार  अच्छे लोगों  एवं

              अच्छे कार्यों को करने एवं देखने से निर्मित होता है।) ये महत्वपूर्ण है। भावना स्वयं भावना है,

              वो व्यक्तिगत आप का है। ये किसी और के द्वारा किसी भी प्रकार प्रभावित नहीं किया

              जा सकता। यह उस सर्व-शक्ति के द्वारा आपको दिया गया सदैव आपके साथ रहने वाला

              आपके जीवन का विशेष लेखा पुस्तक है। जब आप कोई जुल्म करते हो और फिर उसका

              पश्चाताप करते हो तो यह आपको पैसे के व्यय में लगी  गलती ढूंढने से अधिक खुशी देती

              है। जब आप किसी जुल्म को कर के उसे भूलना चाहते हो तो यह शेष की तरह खड़ा

              होकर आपको उसे भूलने नहीं देती। किन्तु जब आप उसे जबरदस्ती भूलते हो तो यह

              उसका कुल योग लगा कर आपके नये कार्य के साथ नया पन्ना प्रारम्भ करती है। आपके

              जीवन में वो शेष हमेशा खड़ा रहता है, जिसे देखने की आप में साहस नहीं होती। ये

              आगे भी आपका अवरोधक बनता है। अतः आपके जीवन का मूल उद्देश्य सदैव अपने

              जमीर को जिलाये रखना एवं अपने ऊपर शेष रूपी ऋण न रखना, क्योंकि न तो पुनर्जन्म

              होता है और शायद जीवन भी आपको पुनः उसे चुकाने का अवसर न दे। आप का आकार

              छोटा भले हो, पर आपकी जमीर तले पूरा आसमान होना चाहिए। क्योंकि जमीर ही हमें बड़े

              से बड़े कार्य करने की साहस देता है। इसी की मदद से इंसान ऊँ ची से ऊँ ची ऊंचाइयों को

              छू लेता है। इसके पश्चात जब उसकी मृत्यु होती है तो वह इस दुनिया का सबसे  

              बहुमूल्य-रत्न बन जाता है।

           “अर्थात जीवन में अच्छे विवेक के साथ किसी कार्य को करना ही जीवन का मूल उद्देश्य है”।

***

                                   

DN Brother's Edition

Dheeraj Kumar

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