कबीर कोठा
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कबीर कोठा उस यादगार स्थान पर बनाया गया है जहां बैठ कर कबीर साहेब जी सदोपदेश किया करते थे। उस स्थान पर एक गोलाकार चबूतरा (कोठा) बना रखा है। कहा जाता है कि आज तक सन् 1448 से सन् 2014 (566 वर्ष) तक उस बालू रेत के टीले (कोठे = चबूतरेनुमा गोल चक्र) को समुद्र की लहरों ने छुवा भी नहीं। समुद्र में ज्वार भाटा आता है। तब भी समुद्र की लहरें उस ओर नहीं जाती। यह कबीर कोठा द्वारिका धीश के मन्दिर के बगल में है।[१]
कबीर साहेब जी कहते है:
मेले ठेले जाइयो, मेले बड़ा मिलाप। पत्थर पानी पूजतें, कोई साधू सन्त मिल जात।।
संदर्भ[सम्पादन]
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