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कविता की परिभाषा

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"कविता" की परिभाषा को कविता के माध्यम से समझें। युवा शायर और कवि बाग़ी विकास (इलाहाबाद) कहते हैं कि,

" 'कविता' राजा-रानी के सिंहासन का गुणगान नहीं

'कविता' चंदरबरदाई की पीढ़ी का अभियान नहीं

'कविता' नारी के शरीर की सुन्दरता का शोध नहीं

'कविता' केवल कुछ शब्दों की तुकबंदी का बोध नहीं...

जो अनाथ बच्चों की पीड़ा कह पाए वो 'कविता' है

जो माँ के अश्कों के संग-संग बह पाए वो 'कविता' है

जो सुनने-पढ़ने वालों को याद रहे वो 'कविता' है

जो कवि के मर जाने के भी बाद रहे वो 'कविता' है..."

- बाग़ी विकास

कविता क्या है ? क्या शब्द है, क्या अर्थ है?

कविता शब्द नहीं है,कविता अर्थ नहीं है,कविता वह अनुभूति भी नहीं,कविता वह रीति नीति भी नहीं जिस बंधन और तुकांत में कविता दिखती है। कविता काष्ठ की अग्नि है,कविता ऋषि के ध्यान में उतरी ध्वनि है,कविता किसी संवेदना का उन्मुक्त प्रवाह हो,हो सकता है वो कोई आग हो,कविता गंधर्व की राग हो,हो सकता है बेआवाज हो।

किंतु वेद जैसे अपौरुषेय कहे गए हैं कविकुलगुरु जिसे अनायास, अनपेक्षित-अनिश्चित,अलक्ष्य कह गए हैं, शायद उसे कोई इलहाम कह गया है ,कोई ईश्वरीय आदेश और ज्ञान कह गया है।कविता उतरती है,उतारी जाती है,पूरी तैयारी और छंद ध्वनि राग साधना के साथ।शेर कहे जाते हैं,नाट्य होते जाते हैं,गीत सुरों में,स्वरों में उतारे जाते हैं पूरी नजाकत- नफासत स्वागत के साथ।बस यही कविता की गति है।कविता तुलसी का लोकगीत है,सूर की अंधी वात्सल्य-भक्ति दृष्टि है,मीरा की प्रेम दीवानगी,कबीरा की फकीरी है। दादू नानक की समाज दृष्टि,रैदास की दैन्य भक्ति है।

कवि के मानस की अतल गहराइयों से कोई ईश्वरीय दृष्टि,कोई अनुभूति,कोई प्रवाह,कोई गंगधार,,,,कुछ भी ,कभी भी उतर सकता है।बस अनुकूल मानस हो, समय हो,स्थिति हो,अध्ययन या सतसंग की पृष्ठमूमि हो।।।

"कविता" केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो। दीन-दुखियों, अनाथों, वंचितों और माँ की पीड़ा को प्रदर्शित करने में सक्षम हो। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली कविता ही वास्तविक कविता होती है। यही उसका सौंदर्य है। ये आठ पंक्तियाँ बड़ी ही सुंदरता से बताती हैं कि "कविता क्या नहीं है" और "कविता क्या है"....

कविता या काव्य क्या है? - इस विषय में भारतीय साहित्य में आलोचकों की बड़ी समृद्ध परंपरा है-

साहित्य दर्पण में आचार्य विश्वनाथ का कहना है, 'वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्' यानि रस की अनुभूति करा देने वाली वाणी काव्य है।

पंडितराज जगन्नाथ कहते हैं, 'रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है।

पंडित अंबिकादत्त व्यास का मत है, 'लोकोत्तरानन्ददाता प्रबंधः काव्यानाम् यातु' यानि लोकोत्तर आनंद देने वाली रचना ही काव्य है।

आचार्य श्रीपति के शब्दों में कहा जा सकता है कि -

शब्द अर्थ बिन दोष गुण, अंहकार रसवान

ताको काव्य बखानिए श्रीपति परम सुजान

संस्कृत के विद्वान आचार्य भामह के अनुसार "कविता शब्द और अर्थ का उचित मेल" है। "शब्दार्थो सहितों काव्यम्"

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने "कविता क्या है" शीर्षक निबंध में कविता को "जीवन की अनुभूति" कहा है।

जयशंकर प्रसाद ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है। संसार के सुख-दुख से परे कविता का मधुर और अनूठा संसार मनुष्य को सुख सन्तोष प्रदान करता हैं वे इसी काव्य जगत में डूबे रहने की कामना करते हुए कहते हैं -

ले चल मुझे भुलावा दे कर मेरे नाविक धीरे-धीरे

जिस निर्जन में सागर लहरी, अम्बर के कानों में गहरी

निश्चल प्रेम कथा कहती हो तज कोलाहल की अवनि रे

महादेवी वर्मा ने कविता का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा कि - "कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।"

प्रसाद ने कामायनी में जिस महाप्रलय का चित्रण किया है वह काल्पनिक होकर भी वास्तविक रूप धारण कर लेता है। वास्तव में कवि की प्रतिभा यत्र-तत्र बिखरे सौन्दर्यको संकलित करके एक नई आनन्दमयी सृष्टि की रचना करती है। हर युग में कवि अपनी कविता के माध्यम से युग सत्य के ही दर्शन कराता है। कविता में सत्य, शिव और सौन्दय्र की ऐसी अलौकिक रस धार प्रवाहित होती है, जो सबको एक समान आनन्दित करती चलती है। कविता समाज को नई चेतना प्रदान करती है, आनन्द का सही मार्ग दिखाती है और मानवीय गुणों की प्रतिष्ठा करती है। तुलसीदास, सूरदास, प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त जैसे महान कवियों की रचनाऍं इस कथन की सत्यता प्रमाणित करती है।

भाव पक्ष और कला पक्ष[सम्पादन]

कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से होता है। कविता में कही गई बात का असर तेज और स्थायी होता है। कविता के दो पक्ष होते हैं। आन्तरिक यानि भाव पक्ष और बाह्य यानि कला पक्ष। सर्वप्रथम कला पक्ष पर विचार करें। कविता को मर्मस्पर्शी बनाने में सार्थक ध्वनि समूह का बड़ा महत्व है। विषय को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाने में शब्दार्थ योजना का बड़ा महत्व है। शब्दों का चयन कविता के बाहरी रूप को पूर्ण और आकर्षक बनाता है। कवि की कल्पना शब्दों के सार्थक और उचित प्रयोग द्वारा ही साकार होती है। अपनी हृदयगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कवि भाषा की अनेक प्रकार से योजना करता है ओर इस प्रकार प्रभावशाली कविता रचता है। शब्द शक्ति, शब्द गुण, अलंकार लय तुक छंद, रस, चित्रात्मक भाषा इन सबके सहारे कविता का सौंदर्य संसार आकार ग्रहण करता है। लय और तुक कविता को सहज गति और प्रवाह प्रदान करते हैं। लयात्मकता कविता को संगीतमय और गेय बनाती है जिससे कविता आत्मा के तारों को झंकृत कर अलौंकिक आनन्द प्रदान करती है। कविता में तुक का भी अपना एक अलग स्थान हैं जब किसी छन्द के दो चरणों के अन्त में अत्न्यानुप्रास आता है तो उसे तुक कहा जाता है जिसके कारण कविता में माधुर्य और प्रभाव बढ़ जाता है।

छन्द रस और अलंकार[सम्पादन]

छन्द कविता के पदों में सक्रियता और प्रभावशीलता लाता है। वह हमारी अनुभूतियों को लय तान और राग से स्पंदित करता है। छन्द के प्रमुख तीन तत्त्व होते हैं। प्रथम - मात्राओं और वर्णों की किसी विशेषक्रम से योजना। दूसरा गति और यति के विशेष नियमों का पालन तीसरा चरणान्त की समता। कवि की आत्मा का नाद ही लय रूप में छन्दों में प्रतिष्ठित होता है। छन्द भावों की तीव्रता प्रदान करता है। कविता को रमणीय ओर सजीव बना कर रस निष्पत्ति में सहायक होता हैं रामचरित मानस के दोहे सोरठे चौपाई, रसखान के सवेये, सूर के पद, गिरधर की कुण्डलियाँ, छन्दों में बंधी रसमय भावधारा के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। कविता का एक और गुण है बिम्ब उपस्थित करना। चित्रात्मक भाषा का चमत्कार कविता को हृदय में उतार देता है। अलंकारों के सार्थक प्रयोग और शब्द चयन में विशेष ध्यान देने से कवता भाव सम्प्रेषण में सहायक होती है। किसी बात को विशेष ढंग से कहना और उसमे विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करने के लिए अलंकारों से सज्जा करना कवि की प्रतिभा का परिचायक है। अलंकार कविता को चमत्कारी तो अवश्य बनाते हैं किन्तु वे काव्य की आत्मा नहीं हैं। वे कविता का साधन हैं साध्य नहीं। कोरे चमत्कार को कविता नहीं कहा जा सकता।

गुण और शब्द शक्तियाँ[सम्पादन]

गुण साहित्य शास्त्र में काव्य शोभा के जनक हैं। ओज माधुर्य और प्रसाद काव्य के प्रमुख गुण हैं। ओज चित्त को उत्तेजित करने वाला गुण है, जो वीर रस की निष्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चित्त को प्रसन्न करने वाला माधुर्य गुण होता है। श्रृंगार रस का वर्ण इससे प्रभावशाली होता है। इसी प्रकार प्रसाद गुण हृदय पर वैसा ही प्रभाव डालता है, जैसे सूखे ईधन में अग्नि और स्वच्छजल पर प्रतिबिम्ब। शब्दों का अर्थ ग्रहण कराने वाली काव्यशक्तियाँ भी महत्वपूर्ण हैं। अभिधा शब्द शक्ति सीधा अर्थ बोध कराती है। लक्षणा से किसी विशिष्ट अर्थ की प्रतीकों के माध्यम से प्रतीति होती है। व्यंजना शब्द शक्ति से व्यंग्यार्थ का बोध होता है।

भाव और रस[सम्पादन]

कविता में शब्द चयन तभी सार्थक होते हैं जब सहृदय पाठक के हृदय में रस की प्रतीति हो। रस काव्य का प्राण तत्व है इसीलिए काव्यानन्द को ब्रम्हानंद सहोदर कहा गया है। रस का स्थायी भाव मनुष्य के हृदय में सैदव रहने वाला भाव है। नौ भाव ही नव रस हैं जो विभाव अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से यथा समय प्रकट होते हैं। आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होता है। जिसके प्रति भाव उत्पन्न होता हे उसे आलम्बन कहते हैं। आश्रय की चेष्टाऍं अनुभाव कहलाती है। भावों को प्रखर करने वाले उपादान उद्धीपन कहलाते हैं। हृदय में संचरण करने वाले क्षणिक भावों को संचारी भाव कहा जाता है जो संख्या में ३३ होते हैं। श्रृंगार, वीर, हास्य, करूण, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शान्त नौ प्रमुख रस हैं। इनमें श्रृंगार को रसराज कहा गया है।

कविता को शिल्प की दृष्टि से देखने के पश्चात इसके आन्तरिक स्वरूप पर भी विचार करना आवश्यक है। इसे भाव पक्ष भी कहते हैं। कवि के हृदय की कोमल अनुभूतियों का साकार रूप ही कविता है। उसकी भावना का मनोरम साम्राज्य, जिसमें कवि का उद्देश्य झलकता है, वही उसका भाव पक्ष है। कवि की दृष्टि लोकमंगल पर रहती है। कवि कविता द्वारा युगीन सत्य को आकार देता है, समाज को दिशा निर्देश देता है और श्रेष्ठ गुणों और आदर्शो की प्रतिष्ठा करता है। कविता का उद्देश्य है नैतिकता, धर्म का सच्चा स्वरूप और राजनीति का शुद्ध रूप प्रतिष्ठित करना। कवि की दृष्टि से समाज को नवीन दृष्टिकोण से विचार करना आता है और जगत के रहस्यों का नया अर्थ बोध होता है। कवित कवि के हृदय का शुद्ध रूप है जिसमें लौकिक जीवन के सुख-दुख, प्रेम, करूणा, क्रोध, घृणा के भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। इसे यूँ समझा जा सकता है कि कविता हृदय की तीव्रतम अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति है। बुद्धि और कल्पना के योग से कवि बड़ी सरलता से बड़ी-बड़ी बातें कह देता है। कविता में निहित नीति व उपदेश सुनने वाले के पूरे जीवन को बदलने की सामर्थ्य रखते हैं। दर्शन आध्यात्म्य, प्रकृति और सूक्ष्म संवेदनाऍं कविता के माध्यम से बड़ी सरलता से समझाई जा सकती हैं। रामचरितमानस में तुलसी ने जिन मानवीय मूल्यों की स्थापना की है, वे शाश्वत हैं, उनकी प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी। कविता मर्मस्पर्शी हो तो सदा के लिए अमर हो जाती है और उद्धहरण बन जाती है। कवि का मन बहुत अधिक संवेदनशील होता है। वह सहृदय होता है इसलिए उसकी अनुभूति सर्वसाधारण से भिन्न होती है। उसके हृदय की निर्मलता, कोमलता और पवित्रता ही कविता को मर्म स्पर्शी बनाती है। वह सूक्ष्म पदार्थो को सूक्ष्म दृष्टि से देखता है और प्रकृति के कण-कण को विलक्षण बना देता हैं उसकी भावुकता से कविता इतनी मधुन बन जाती है कि पढ़ने-सुनने वाला उसमें डूब जाता है। जीवन में आनन्द का सृजन करने वाली कविता ऐसी भागीरथी है -

जिसकी अमृत धारा में अवगाहन कर संसार का समस्त ताप मिट जाता है।
मानव रस के अलौकिक आनन्द में लीन हो कर अपने को धन्य मानता है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]


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