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कहानी के तत्व

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कहानी में रोचकता, प्रभाव तथा वक्‍ता एवं श्रोता या कहानीकार एवं पाठक के बीच यथोचित सम्बद्धता बनाये रखने के लिये निम्नलिखित तत्व महत्वपूर्ण माने गए हैं- कथावस्तु, पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, कथोपकथन अथवा संवाद, देशकाल अथवा वातावरण, भाषा-शैली, उद्देश्य

कथावस्तु[सम्पादन]

किसी कहानी के ढाँचे को कथानक अथवा कथावस्तु कहा जाता है। प्रत्येक कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथानक के चार अंग माने जाते हैं - आरम्भ, आरोह, चरम स्थिति एवं अवरोह।

  • आरम्भ में कहानीकार कहानी के शीर्षक तथा प्रारमंभिक अनुच्छेदों के द्वारा पाठक को कथासूत्र से अवगत कराता है जिससे कि वह कहानी के प्रति आकर्षित होकर उसमें रमने लगे। सफल आरम्भ वह होता है जिसमें कि कहानी शुरू करते ही पाठका का मन कुतूहल और जिज्ञासा से भर जाये।
  • आरोह कहानी के विकास की अवस्था को कहानी का 'आरोह' कहते हैं। आरोह में कहानीकार घटनाक्रम को सहज रूप में प्रस्तुत करता है और पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का उद्‍घाटन करता है।
  • चरम स्थिति जब कहानी पढ़ते-पढ़ते पाठक कौतूहल की पराकाष्ठा में पहुँच जाये तो उसे कहानी की 'चरम स्थिति' कहते हैं।
  • अवरोह या अंत पाठक को जब कहानी के उद्‍देश्य का प्रतिफल प्राप्त होता है उसे कहानी का 'अवरोह' अथवा 'अंत' कहते हैं। कहानी के अवरोह में संक्षिप्तता तथा मार्मिकता पर अधिक जोर दिया जाता है।

पात्र अथवा चरित्र-चित्रण[सम्पादन]

कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष को उनका 'चरित्र चित्रण' कहा जाता है। जब पात्रों का चरित्र चित्रण कहानीकार के द्वारा किया जाता है तो उसे 'प्रत्यक्ष' चरित्र चित्रण कहते हैं और जब पात्रों का चरित्र चित्रण संवादों के द्वारा होता है तो उसे 'अप्रत्यक्ष' अथवा 'परोक्ष चरित्र' चित्रण कहा जाता है। परोक्ष चरित्र चित्रण को अधिक उपयुक्‍त माना जाता है।

कथोपकथन अथवा संवाद[सम्पादन]

कहानी के पात्रों के द्वारा किये गये उनके विचारों की अभिव्यक्‍ति को संवाद अथवा कथोपकथन कहते हैं। संवाद के द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है।

देशकाल अथवा वातावरण[सम्पादन]

कहानी में वास्तविकता का पुट देने के लिये देशकाल अथवा वातावरण का प्रयोग किया जाता है। यदि किसी कहानी में शाहजहाँ और मुमताज महल को आधुनिक कार में घूमते हुये बताया जाता है तो उसे हास्यास्पद ही माना जायेगा।

भाषा-शैली[सम्पादन]

कहानीकार के द्वारा कहानी के प्रस्तुतीकरण के ढंग को उसकी भाषा शैली कहा जाता है। प्रायः अलग-अलग कहानीकारों की भाषा-शैली भी अलग-अलग होती है।

उद्देश्य[सम्पादन]

कहानी केवल मनोरंजन के लिये ही नहीं होती, उसे एक निश्‍चित उद्‍देश्य लेकर लिखा जाता है। This article "कहानी के तत्व" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical.

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