कुन्ता देवी
कुन्ता देवी
वीरांगना महारानी कुन्ता देवी राजभर
वीरांगनाओं की प्रेरणा स्रोत सेना नायिका भर महारानी कुन्तादेवी राजभर के साथ हुआ , जिसकी शौर्य गाथा इतिहास में तो अंकित है किन्तु हमने उन पृष्ठों को पढ़ने का कभी प्रयास नहीं किया! एक ओर जहाँ रानी अवंतिबाई ,रानी लक्ष्मीबाई एवं रानी दुर्गावती ने असामान्य परिस्थितियों में अर्थात अओअने पति की मृत्यु के बाद सेना का नेतृत्त्व कर ,रणचंडी बनकर रन भूमि में उतरीं , वहीँ दूसरी ओर भर महारानी कुन्तादेवी राजभर ने सामान्य परिस्थितियों में अर्थात अपने पति के जीवित रहते हुए ही सेना का नेतृत्त्व किया! भारतीय इतिहास में ऐसे उदाहरण मिलना अत्यंत कठिन हैं! महारानी कुन्तादेवी राजभर बाराबंकी के महाराजा बारा की पत्नी थीं ! महारानी कुन्तादेवी महल के अन्दर रहने वाली महारानियों में से नहीं थीं ! वह महाराजा बारा के साथ आखेट खेलने भी जाया करती थीं ! निर्भीक ,निडर ,बे-खौफ महारानी कुन्तादेवी ने महाराजा बारा के साथ अनेक युद्धों में भाग लिया ! महाराजा बारा का साम्राज्य उत्तर में लखीमपुर खीरी से लेकर दक्षिण में इलाहाबाद तक फैला हुआ था ! अरब यात्री अलमसौदी के यात्रा विवरण के अनुसार महाराजा बारा कन्नौज के भी शासक थे ! महाराजा बारा ने सन ८७२ ईस्वी से ९१२ ईस्वी तक शासन किया ! महारानी कुन्तादेवी ने महाराजा बारा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि साम्राज्य की सुरक्षा के लिए नारियों का भी योगदान होना चाहिए ! महाराजा बारा ने महारानी कुन्तादेवी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और महारानी कुन्तादेवी को नारी सेना गठन की स्वीकृति तथा नारी सेना की सेना नायिका का पद सम्हालने की अनुमति दे दी ! महारानी कुन्तादेवी ने नारी सेना का गठन किया ! कुन्ता नारी सेना उत्तम घोड़ों से लैश थी ! नारियों को सर्वप्रथम घुड़सवारी की शिक्षा दी जाती थी ! कुन्ता नारी सेना को महाराजा बारा की सेना का प्रमुख अंग कहा जाता है ! रामनगर , रुदौली , सिद्धौर , समौली और बहूराजमऊ सेना के प्रमुख केंद्र थे ! कुंतौर नगर जिसे महाराजा बारा ने महारानी कुंता के नाम पर बसाया था -में तीन हजार घोड़ों की घुड़साल थी ! सन ९१२ ईस्वी में वल्लभी के राष्ट्र कूट शासक कृष्ण द्वितीय ने कन्नौज पर चढाई की ! महाराजा बारा राजभर युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हुए ! किन्तु ,बाराबंकी और कुंतौर का साम्राज्य महारानी कुन्तादेवी ने तीन वर्ष [सन ९१२ ईस्वी से ९१५ ईस्वी ] तक सम्हाले रखा ! सन ९१५ ईस्वी में प्रतिहार वंश के महेन्द्रपाल ने कुंता के साम्राज्य पर चढाई कर दी ! कुंतौर में भयंकर युद्ध हुआ ! इस युद्ध में महारानी क्य्न्तादेवी की हार हुई और उनका क़त्ल कर दिया गया ! यद्यपि महारानी कुंता देवी के क़त्ल के साथ ही नारी सेना सृजन की परिपाटी समाप्त हो गई किन्तु वे भारतीय वीरांगनाओं की प्रेरणा स्रोत बनी रहीं ! महारानी कुंता देवी से प्रेरणा ग्रहण कर अनेक राजा महा- राजाओं ने अपनी रानियों -महारानियो एवं राजकुमारियों को युद्ध कौशल में दक्ष कराया ! [साक्ष्य के लिए इन ग्रंथो का अवलोकन किया जा सकता है —आन दी ओरिजिनल इनहेवीटेन्स आफ भारत वर्ष आर इंडिया -गुस्तव ओपर्ट , अल मसूदी का यात्रा विवरण , हिस्ट्री आफ इंडिया –इलियट , दी भरस आफ अवध एंड बनारस -पेटिक सर नेगी , गजेटियर आफ दी प्रोविन्सेस आफ अवध , दी हिमालयन डिस्ट्रिक्ट आफ दी एन,डब्ल्यू ,पि।, आफ इंडिया — एड्किन्सन एडविन आदि ]
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