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केशो नाईक

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केशो नाईक भारत मे ब्रिटिश राज के समय महाराष्ट्र का एक सूप्रसिद्ध डकैत था जिसके उपर १९१२ मे इंग्लैंड मे किताब लिखी गई जिसका नाम The Exploits Of The Kesho Naik: The Dacoit है। नाईक को भारत का रोबिन हुड के नाम से जाना जाता था और साथ ही लोग उसे दक्कन का शेर बुलाते थे।[१] नाईक का जन्म महाराष्ट्र के एक कोली परिवार मे हुआ था। नाईक ने ब्रिटिश सरकार की ट्रेन लूटी थी जिसमें सोना ले जाया जा रहा था और लोगों मे बांट दिया। केशो नाईक भ्रष्ट अमीर लोगों को लूटकर ज्यादातर गरीब लोगों मे बांट दिया करता थी जिसके कारण कोई भी उसके खिलाफ सरकार का साथ नही देता था। वह गले मे सोने की जंजीर पहनने का बोहोत शोकीन था। नाईक ने गरीबों के तंग करने‌ वाले साहूकारों की नाक भी काटीं थी और ब्रिटिश सरकार ने उस पर ५००० रुपए का इनाम घोषित किया था जिंदा या मुर्दा।[२]

केशोजी नाईक
जन्म केशो नाईक
राष्ट्रीयता भारतीय
अन्य नाम भारतीय रॉबिन हुड
जातीयता महादेव कोली
व्यवसाय डकैती
पदवी लुटेरों का सरदार
प्रसिद्धि कारण ब्रिटिश खजाने की लूटें एवं अफसरों की हत्याएं
धार्मिक मान्यता हिन्दू कोली
माता-पिता गोपाल राव कोली (पिता)

ब्रिटिश सरकार ने नाईक को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए कैप्टन ट्रेंच को ब्रिटिश सेना के साथ भेजा। नाईक को पता चला तो नाईक ने गरीब मुसलमान व्यक्ति की भेष-भूषा बनाई औश्र कैप्टन के पास मदद मांगने गया और जब ट्रेंच मदद करने के लिए गया तो नाईक ने कैप्टन के सर पर बंदूक तान दी लेकिन नाईक ने उसे मारा नही और साथ मिलने का प्रस्ताव रखा।[२]

सोने की ट्रेन की लूट[सम्पादन]

हर पंद्रह दिन बाद मिजौर की खानों से सोना खोदकर बोम्बे लाया जाता था और फिर वहां से समुद्री जहाज के सहारे इंग्लैंड भेज दिया जाता था। जिसे देखकर नाईक बोला की हमारे देश के सबसे बड़े चोर तो है जिसके बाद नाईक ने ट्रेन लुटने की योजना बनाई। नाईक का एक रेलवे मे काम भी कर चुका था जिससे उसे और आसानी हो गई। ट्रेन मे सोना काफी ज्यादा था इसके लिए नाईक ने १५ और साथी इकट्ठे किए। नाईक को पता चला की ट्रेन रात दो बजे बिलगी स्टेशन पर आएगी। नाईक ने ट्रेन रुकवाने की योजना बनाई। जब ट्रेन रात दो बजे स्टेशन पर पहुंचले वाली थी तो नाईक ने स्टेशन मास्टर को मार डाला और सिग्नल लाल कर दिए जिसके बाद ट्रेन की गती धीमी पड़ती गई। इसके बाद नाईक और साथीयों ने ट्रेन लूट ली।[२]

बागीवाडी गांव की लूट[सम्पादन]

केशो नाईक को एक पत्र मिला जिसमें बागीवाडी गांव के साहूकार देवीदास के अत्याचारों का गुणगान था जिसके बाद नाईक बागीवाडी के लिए रवाना हो गए और एक व्यापारी का भेष बना लिया। नाईक ने एक दिन के लिए बागीवाडी गांव के एक गरीब परिवार के यहां शरन ली जहां उसे पता चला की साहूकार बोहत बदमाश है और व्याज पर व्याज चढ़ाए जाता है और कोई इंकार करे तो अपने कागज सरकार को दिखाकर सरकार की मदद लेता है और लोगों की जमीन भी जब्त कर लेता है जिसके बाद नाईक को बिस्वास हो गया की साहुकार बुरा व्यक्ति है। एक पवित्र आदमी का भेष बनाया और साहुकार के घर में प्रवेश कर गया। उसके बाद उसने वहां देखा की साहुकार ने झुंटे कागज बना रखें है व्यर्थ का व्याज लोगों पर चढ़ा रखा है। नाईक ने अपने साथीयों को बुलाकर साहुकार के सारे कागज दस्तावेजों को जला दिया ताकी वह सरकार के सहारे लोगों से व्यर्थ का व्याज ना ले सके और उसके बाद नाईक ने साथीयों के साथ मिलकर साहुकार के सारे पैसे और जेवरात लेकर गांव के लोगों मे बांट दिए जिसके बाद गांव के लोगों ने जय केशोजी जय केशोजी के नारे लगाकर नाईक का सम्मान किया और साथ ही नाईक ने काली देवी के मंदिर का निर्माण भी करवाया। इसके बाद साहुकार ने पुलिस को बुलाया लेकिन नाईक को नहीं पकड़ पाए।[२]

ब्रिटिश राजदरबार मे सामिल होना[सम्पादन]

केशो नाईक को अखबारों से खबर मिली की ब्रिटिश राजदरबार लगाया जाएगा ज़हां सभी छोटे बड़े राजा महाराजा आएंगे और तभी नाईक के दिमाग मे अपने आप को और मसहूर करने का तरीका सूजा। उसने योजना बनाई की किसी तरह से दरबार मे सामिल हुआ जाए और वहां डाकू केशो नाईक की शिकायत की जाए। कुछ समय बाद पता चला की रोहा का राजा वाजीराव कुछ कुछ उसकी तरह दिखता है तो वह रोहा गया और एक संत बन गया क्योंकि रोहा का वाजीराव काफी ज्यादा धार्मिक व्यक्ति था और हिन्दू धर्म के अनुसार ही चलता था। वाजीराव दरबार मे जाने की तैयारियां मे लगा हुआ था और बोहोत उत्साहित था तभी नाईक संत के भेष मे वाजीराव के पास गया और सलाम भी नही किया जिससे वाजीराव चोंक गया। वाजीराव बोला कया चाहिए महाराज तो नाईक संत ने कहा तुम्हारा समय खराब चल रहा है अगर तुम दरबार गए तो पक्का लुम मारे जाओगे जिसके बाद वाजीराव ने अंग्रेजों के पास संदेश भेजा की हम दरबार में उपस्थित नही हो सकते क्योंकि हमारी तबीयत ख़राब है। उसके बाद नाईक ने वाजीराव के हाथी के सारथी को १०० रुपए दिए और सारथी ने कभी १०० रुपए कभी देखे नही थे तो वह दरबार में चलने को राजी हो गया। नाईक राजा के भेष मे दरबार मे प्रवेश कर रहा था तभी दरबारी ने नाईक से पहचान पुंछते हुए कार्ड मांगा तो नाईक ने दिखाते हुए 'हम रोहा के वाजीराव हैं' बोला और प्रवेश कर गये। जब दरबार चालू हुआ तो नाईक ने हिज हाइनेस से कहा महाराज आपकी कृपा से सब ठीक है परंतु ब्रिटिश राज का एक डांकू है जिसने हमारे राज्य मे आतंक मचा रखा है कृपया करके उसे रोकें और हमारे राज्य को सुरक्षित रखने मे सहयोग दें। हिज हाइनेस ने पूंछा कोन है वह डकैत तो नाईक ने उत्तर दिया महाराज उसका नाम केशो नाईक है जिसके बाद दरबार मे केशो नाईक के चरचे होने लगे और दरबार खारीज हुआ। ब्रिटिश सरकार ने रोहा राज्य मे सेना तैनात कर दी और तोपों को भी भेज दिया जिसे देखकर राजा वाजीराव घवरा गया। वाजीराव ने अंग्रेजी अफसर से पुंछा कया हुआ तो आफसर बोला हिज हाइनेस ने आपकी मदद मे यह सब भेजा है तो वाजीराव बोला मे तो दरबार मे गया ही नही जिसके बाद नाईक के बारे मे सब पता चला।[२]

उल्टा ब्रिटिश अफसर के सर पर इनाम[सम्पादन]

दरबार खारिज होने के बाद ब्रिटिश अधीकारी बुर्रा साहीब को पता चला की कितनी चालाकी से से केशो नाईक ने दरबार मे प्रवेश किया और निकल गया साथ ही सबको चूतिया बनाया था इस सबको देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने बुर्रा साहीब के आग्रह पर केशौ नाईक के सर पर जिंदा या मुर्दा ५००० का इनाम घोषित कर दिया और अखबारों मे छपवा दिया। जब केशो नाईक ने खबर पढ़ी तो केशो नाईक हंसी से पागल हो गया और बुर्रा साहीब के सर पर ५०००० का इनाम घोषित कर दिया और बुर्रा के निचले अफसरों पर २०००० का इनाम रख दिया। नाईक ने यह सब बोम्बे के सभी रिहाईश इलाकों छपवा दिया।[२]

दिक्साल के सरकारी खजाने की लूट[सम्पादन]

केशो नाईक ने दरबार मे प्रवेश करने से पहले राजा बनकर चांदी के सिक्के सड़कों पर लुटाए थे तो गरीब जनता बुरी तरह से टूट पड़ी थी जिस कारण नाईक ने सारे सिक्के लुटा दिए और बार मे ट्रेन की लूट से जो बचा हुआ था बो भी लुटा दिया तब नाईक ने लोगों की ग़रीबी पर बिचार किया और खजाने लुटने पर योजना बनाई। केशो को पता था की सरकार हर जिले में सरकारी खज़ाना रखती है तो नाईक ने दिक्साल के ख़ज़ाने को निशाना बनाया। नाईक का एक साथी रामभाऊ ही एसा था जो पढ़ा लिखा था और उसने पहले सरकारी खजाने के लिए नौकरी भी की थी तो नाईक ने रामभाऊ को दिक्साल के ख़ज़ाने के कार्यालय पर चपरासी की नौकरी पर लगा दिया और खुद सिपाही बन गया। एक दिन खजाना दिक्साल से ट्रिंबक ले जाया जा रहा था तो नाईक भी सिपाही बनकर चल दिया तो अफसर ने पुंछा तुम कोन हो, नाईक बोला साहब मे नया सिपाही हुं' परंतु अफसर को कोई भी रिकोर्ड नही मिला पर नाईक को सिपाही पर रख लिया। जब खजाना दिक्साल और ट्रिंबक के बीच मे था तभी नाईक ने अपने साथीयों को बुलाकर हमला कर दिया जिसके बाद ब्रिटिश सेना बुलाई गई लेकिन नाईक अफसर और सिपाहियों को मारकर खजाना लेकर भाग गया जिसमे १२००० रुपए और जेवरात थे और गरीबों में बांट दिया।[२]

संदर्भ[सम्पादन]

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