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के एस कृष्‍णामूर्ति

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श्री केएस कृष्णमूर्ति जी का जन्म रविवार दिनांक 1.11.1908 को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर थिरवैयारु (अक्षांश 10-48 उत्तर, देशांतर 79-15 पूर्व) में हुआ था। यह स्थान थंजावुर से थोड़ी दूर उत्तर पूर्व की ओर तमिलनाडु में है।.तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कालेज में अपनी शिक्षा पूरी कर तमिलनाडु सरकार में पब्लिक हैल्थ विभाग में किंग इंस्टीट्यूट, गिंडी , मद्रास (चेन्नई ) में 14/07/1927 को इनकी नियुक्ति हो गयी। तभी से श्री कृष्णमूर्ति जी की ज्योतिष में रूचि हो गयी। वहां इन्होंने भारतीय एवं पाश्चात्य ज्योतिष का आद्योपांत गहन अध्ययन किया तथा अपनी पद्धति में समावेश भी किया, किन्तु उनका तीक्ष्ण एवं खोजी मन पूर्णरूपेण संतुष्ट नहीं हुआ। उन्होंने भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों पद्धतियों में कुछ वैज्ञानिक त्रुटियां महसूस कीं. जैसे भारतीय पद्धति में लग्न एवं दशम भाव को मध्य भाव मानकर भाव स्पष्ट करना, कला से कला की द्रष्टि न लेकर भाव से भाव पर ग्रहों की द्रष्टियां, अनेक प्रचलित दशाएं जैसे विंशोत्तरी दशा, अष्टोत्तरी दशा, काल चक्र दशा, योगिनी दशा इत्यादि।

उन्होंने महसूस किया भारतीय ज्योतिष की भारत में एक लम्बे समय तक परतंत्रता के काल में ज्योतिष की कड़ियाँ बिखर गयी या लुप्त हो गई। सूक्ष्म अध्ययन एवं शोध के पश्चात् श्री कृष्णामूर्ति महर्षि पाराशर जी की विंशोत्तरी दशा (जिसे उर्दू दशा अर्थात नक्षत्र दशा) से बहुत प्रभावित हुए। महर्षि पाराशर के अनुसार कुंडली में चंद्र जिस राशि में स्थित होता है, उस राशि का या उसके स्वामी का प्रभाव बहुत कम होता है, किन्तु चंद्र जिस नक्षत्र में होता है, उसके स्वामी की महादशा होती है एवं जो नक्षत्र नवांश होता है, उसकी अंतर की दशा होती है, जिसका प्रभाव मुख्यरूप से उस जातक पर होता है। विंशोत्तरी दशा के नियमों पर आधारित नियमों के आधार पर ही नक्षत्रों का विभाजन उप नक्षत्रों तथा उप उप नक्षत्रों में करके फलादेश की विद्या ने एक नई पद्धति को जन्म दिया। यही नहीं, कृष्णामूर्ति जी ने चन्द्रमा के ही नहीं, वरन शेष सभी ग्रहों की स्थिति नक्षत्र, उप नक्षत्र, उप उप नक्षत्रों में बांट दी। इतना ही नहीं, बारह भावों में आरम्भ की कला विकलाओं को भी नक्षत्र, उप नक्षत्र एवं उप उप नक्षत्रों में विभाजन कर दिया और यह सिद्ध कर दिया कि उप नक्षत्र ही उस भाव के फलों का सही विश्लेषण करता है। इसी नक्षत्रीय विद्या को कृष्णामूर्ति पद्धति कहते हैं। 27 नक्षत्रों के 249 उप नक्षत्र बनते हैं। इन्हीं 249 उप नक्षत्रों के किसी नंबर के आधार पर प्रश्न कुंडली से सटीक फलादेश की विद्या भी इस पद्धति की प्रमुख कड़ी है। श्री कृष्णामूर्ति जी ने शासक ग्रहों की विधा (जिससे चंद मिनटों से वर्षों में होने वाली घटनाओं का समय आसानी से ज्ञात किया जा सकता है। ) भी इसी पद्धति में शामिल है।

उनके सेवा काल में समय का बहुत अभाव था। अतः जून 1961 में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के लिए प्रार्थना पत्र सरकार को प्रस्तुत कर दिया और सरकारी सेवा से 19/09/1961 को सेवानिवृत होकर अपना तन, मन और धन ज्योतिष की सेवा में लगा दिया। उन्होंने नक्षत्रीय ज्योतिष विज्ञान के नए आयाम समझाने व स्थापित करने के लिए भारत के विभिन्न शहरों में नक्षत्रीय ज्योतिष अन्वेषण एवं अनुसन्धान केंद्र स्थापित किये, भ्रमण किया और सूत्र समझाए। प्रचार एवं प्रसार हेतु मार्च 1963 से एस्ट्रोलोजी एवं अथरिष्ट नाम की मासिक पत्रिका निकाली। वह भारतीय विद्या भवन के विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। प्रोफ़ेसर कृष्णामूर्ति जी ने 6 पुस्तकें भी लिखीं। पुस्तकों के नाम हैं :- रीडर 1 (जन्म पत्रिका निर्माण), रीडर 2 (ज्योतिष के सिद्धांत), रीडर 3 (फलित ज्योतिष), रीडर 4 (विवाह, वैवाहिक जीवन एवं संतान), रीडर 5 (गोचर), रीडर 6 (प्रश्न ज्योतिष)। महाराष्ट्र के गवर्नर डॉ॰ पी.वी.चारियान ने 1964 में उन्हें ज्योतिष मार्तण्ड की उपाधि से विभूषित किया एवं मलाया की ज्योतिष सोसायटी ने 26/06/1970 को इनके विशेष शोध कार्य के लिए साथिडा मनन की उपाधि प्रदान की।

उपरोक्त सभी पुस्तकें व मासिक पत्रिकाएं अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं तथा इनका अनुवाद अभी तक किसी भाषा में उपलब्ध नहीं है। भारत के ज्योतिष मर्मज्ञों का अधिकतर ज्ञान क्षेत्रीय भाषाओं एवं संस्कृत से जुड़ा है। कृष्णामूर्ति जी का साहित्य अंग्रेजी में होने के कारण यह पद्धति उनसे अछूती रही है। अंत में 29/03/1972 को रात्रि को लगभग – बजे शनि की दशा, राहू का अंतर एवं राहू के ही प्रत्यंतर में श्री कृष्णामूर्ति जी को मृत्यु के क्रूर हाथों ने हमसे छीन लिया। वह अपने तीन होनहार पुत्रों श्री के. सुब्रामानियम, श्री के. हरिहरन, श्री के. गनपत एवं परिवार को भी विलखता हुआ छोड़ गये। उनकी स्मृति में समस्त ज्योतिष मर्मज्ञों की ओर से श्रद्धांजलि सुमन अर्पित कर रहा हूँ।

बाहरी कड़ियाँ[सम्पादन]

केएस कृष्‍णामूर्ति के जीवन और उनकी ज्‍योतिष पद्धति

कृष्‍णामूर्ति की द्वितीय पुस्‍तक फंडामेंटल प्रिंसीपल ऑफ एस्‍ट्रोलॉजी

कृष्‍णामूर्ति की अन्‍य पुस्‍तकें (अंग्रेजी में)

केपी ज्‍योतिष आधारित मैग्‍जीन

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