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क्षत्रिय रावल राजपूत

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रावल जाती या पदवी[सम्पादन]

प्रारम्भ में रावल जाती न होकर पदवी हुआ करती थी,जो क्षत्रिय,ब्राह्मणों में सम्मानित व्यक्तियों को प्रदान की जाती थी परंतु आगे चल कर रावल पदवी के सम्मानित लोगो के वंशजों ने इसे अपने उपनाम के रूप में जोड़ लिया।

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रावल राजपूत[सम्पादन]

ब्राह्मणों में श्रेष्ठ विद्याधारक व्यक्ति को जिस प्रकार रावल की उपाधि प्रदान की जाती थी कहा जाता है कि उसी प्रकार राजपूत(क्षत्रियों) में भी कुछ व्यक्तियों को अलग-अलग कारणों से रावल अथवा रावल जी की पदवी दी जाती थी।

क्षत्रियो में कुछ व्यक्ति जो शक्ति के परम उपासक व जिन्हें देवी की पूजा का कार्य सौपा गया उन्हें भी रावल जी की पदवी प्रदान की जाती थी।

क्षत्रियो में रावल पदवीधारी लोगों के वंशजों ने धीरे धीरे "रावल" जो कि एक उपाधि है उसे ही अपने उपनाम के रूप में लगाना प्रारंभ कर दिया व अपना एक पृथक समुदाय बना लिया आगे चल कर वे सभी ही रावल राजपूत कहलाये।

राजस्थान में रावल राजपूतो को बड़ी व छोटी कई सारी जागीरीयां भी प्राप्त है जो इन्हें अपने युद्ध पराक्रम के साथ-साथ शक्ति(देवी) की सेवा पूजा का कार्य करने पर भी प्राप्त हुई है।

रावल राजपूतो में अलग-अलग राजवंशो की खापें सम्मिलित है जैसे:-राठौड़,कछवाह,गुहिल,पडियार,सोलंकी आदि। रावल राजपूतो में पर्दा प्रथा आज भी मौजूद है व विधवा पुर्नविवाह पूर्णतया निषेध है।

रावल राजपूत शक्ति के उपासक माने जाते है अतः किवदंतिया यह भी मिलती है कि रावल जी की पदवी इन्हें शक्ति के उपासक होने के कारण प्राप्त हुई है।

नोट:- रावल राजपूतो का रावणा राजपूतो से कोई संबंध नही है ये उनसे बिल्कुल ही अलग है।

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राजस्थान के अन्य रावल[सम्पादन]

राजस्थान में रावल उपनाम से कई सारे समुदाय है जैसे:-रावल जोगी, रावल भील, नाथ रावल, रावल देव समाज आदि। इनमें से एक (रावल समुदाय) अथवा जाती के लोग काफी सरल स्वभाव के होते है। ये समुदाय राजस्थान में सम्मानित समुदायों में से एक माना जाता था,इनमें से कुछ लोग पूर्व में देवी की उपासना के तौर पर रम्मत नामक जागरण देवी के सम्मुख करते थे। रम्मत में केवल देवी की उपासना हेतु उनका आवाह्न किया जाता था इसमें किसी भी प्रकार का कोई खेल या स्वांग नही निकाला जाता था।

धीरे-धीरे दूसरे अन्य कलाकार जातियों के लोगो ने रम्मत आजीविका के रूप में करनी प्रारंभ कर दी और इनमें स्वांगों और खेलो को प्रस्तुत कर अपना जीवन यापन करने लगें।

रावल समुदाय द्वारा जो रम्मत की जाती थी उसमें केवल और केवल देवी उपासना को सम्मिलित किया जाता था,किसी भी प्रकार का कोई स्वांग नही लाया जाता था।

संदर्भ[सम्पादन]

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