खंगार1खंगार शासनकाल
खंगार राजवंश के बीर योधा महाराज खेत सिंह खंगार जूनागड नरेश रा कवाट त्रतिये के जेस्ट पुत्र थे।दिल्ही नरेश महाराज प्रथ्बीराज चौहान महोबा नरेश पारमाल देव चंदेल पर कई बार आक्रमण कर चुके थे पर पारमाल देव के दो बनाफर बीर सेबक आला उदल की बजह से हर बार पराजय का सामना करना पडता था उसी बक्त दिल्ही नरेश अपने रिस्तेदार के यहा जूनागड प्रबास पर गये बहा पर कुवर खेता एव कुवर जय एव प्रथ्वीराज सिकार खेलने गये ।प्रथ्वीराज के ऊपर एक बब्बर शेर ने आक्रमण कर दिया कुवर खेता ने प्रथ्बीराज के प्राण बचाते हुये बब्बर शेर को मार डाला बही से प्रथ्बीराज ने कुवर खेता को सिंह नाम से सम्बोधित किया अब कुवर खेता को कुवर खेत सिंह के नाम से पुकारा जाने लगा प्रथ्बीराज चौहान ने जूनागड महिल पहुच कर रा कवाट (रूड देब)से खेता कुवर को दिल्ही सहायता एव महोबा बिजय करने एव बिदेशी आक्रमणकारियो से अपने रास्ट्र को बचाने के लिए साथ ले जाने कि बात की । जिस पर जूनागड महाराज ने अनुमति प्रदान कर दी खेता कुवर दिल्ही नरेश प्रथ्बीराज चौहान के साथ दिल्ही रहने लगे जो प्रथ्बीराज के प्रमुख सेनापती थे 1182 में महोबा पर आक्रमण किया गया जिसमे कुंवर खेत सिंह खंगार के आगे बीर आला उदल नही टिक सके और महाराज प्रथ्बीराज की बिजय हुई। महाराज प्रथ्बीराज ने महोबा बिजय का पूर्ण श्रय सेनापती खेत सिंह खंगार को देते हुये महोबा का राज्य खेत सिंह खंगार को देते हुये राजा घोसित किया खेत सिंह ने समाज हित मे अनेक कार्य किये अपने राज्य में 338 छोटी छोटी गाड़ियो का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया एव कुडार गडी के सिया जू पमार को पराजित कर कुडार मे एक भब्य किले का निर्माण प्रारम्भ कराया जो 1190 में पूर्ण हुवा और 1190 में ही खेत सिंह खंगार ने अपनी राजधानी महोबा से कुडार हस्तांतरित करली सन 1191 मे मुहम्मद सहबुद्दीन गौरी से दिल्ही नरेश प्रथ्बीराज चौहान के साथ युध्य किया महाराज प्रथ्बी राज की बिजय हुई। 1192 मे सहबुद्दीन गौरी एव दिल्ही नरेश का तरायन के युध्य में पुन: युध्य हुवा उस भीषण युध्य में खेत सिंह खंगार बीर गती को प्राप्त हुये महाराजा प्रथ्बीराज को गौरी द्वारा केद कर लिया गया खेत सिंह खंगार के निधन के बाद उनके जेष्ट पुत्र खूब सिंह खंगार ने कुडार की गद्दी सभाली एव अपने राज्य को हिन्दू राज्य घोसित किया समाज को एक सूत्र मे बाधने एव राष्ट्रप्रेम पर हर बीर योधा को बलिदान होने के लिए कई परम्पराए चलाई। अपने पिता के द्वारा समरसता लाने के प्रयास को धार दी कई सूद्र कन्याओ को अपने परिवार जनो से बिबाह करवाये रक्कस प्रथा,झिजिया नारेसुवाटा दुर्गा पूजन कन्या पूजन बिबाह मे सभी जातोयो से एक बस्तू लेना अनिवार्य किया जिसमे बस्तू देनी बाली जाति को सा सम्मान उसके मन माफिक नेग दिया जाता है। महिलाओ को खगोरिया आभूषण आदी आदी प्रथाये चालाई गई जिसका निर्बाहन आज भी किया जा रहा है। महाराजा खूब सिंह देबी उपासक थे जिन्होने सिन्दूर सागर किनारे सिंह बाहिनी देबी का भब्य मन्दिर बनवाया जो आज भी स्थित है। सिंह पर सवार देवी की अति सुन्दर प्रतिमा आज भी स्थापित है। बर्तमान में बुंदेलाओ ने सिंह बाहिनी देबी को मन्दिर के बाहर एक गिध्य का निर्माण करा कर मा गिध्यबाहिने के नाम से प्रचलित करने का प्रयास किया जा रहा है। कुडार के अन्तिम शासक मान सिंह खंगार थे उनकी एक सुन्दर कन्या थी जिसका नाम केशरदे था कुछ दासी पुत्र कुडार राज्य प्राप्त करने के लिए मुस्लिम शाशक बिन तुगलक से मिल गये तुगलक को बताया गया की कुडार के खंगार मानसिंघ की पुत्री अति सुन्दर है। बो आपके हरम के लायक है। बिन तुगलक ने 1347 में कुडार को चारो तरफ से घेर लिया और राजा मान सिंह खंगार को एक पत्र भेजा की हम युध्य नही करना चाहते अन्य क्षत्रियो की तरह आप भी अपने बेटी का डोला हमे दे दे ऐसा ना करने पर मरने को त्यार रहे राजा मानसिंघ ने पत्र को फाड दिया और एक पत्र लिख कर पत्र बाहक को दिया उसमे लिखा तेरे जैसे अधार्मि को अपनी संतान देकर अपने विशाल जूनागड राजघराने अपने क्षत्रीय खंगार राज वंश को कलिन्कित नही कर सकता तुझसे हम युध्य करेगे। सभी खंगार बीर केशरिया साफा बानधकर युध्य मेदान मे कूद पडे कैई महिनो युध्य चलता रहा पर तुगलक बिजय प्राप्त ना कर सका जब बादी पुत्र अडसी ने कुछ और बादी की संतानो को एकत्र कर हजारो गायो को काट कर सिंह बाहिनी एव कुंडन पहाड पर स्थित गजानन माता पर गाय का रक्त छिडक कर अपबित्र किया जिसके बाद सभी खंगार वीर बीर गति को प्राप्त हुये ।राजकुमारी केशरदे ने परिवार की सभी महिलाओ को एकत्र कर मा सिंह बाहिनी की पूजा करके एक जोहर कुंड में आग प्रोज्लीत कर जोहर कर लिया युध्य खत्म हुवा तुगलक ने किले में प्रबेश किया तो महिल में एक भी महिला बच्चे नही मिले सिर्फ जोहर कुंड से धुवा मिला उसने सभी सेनको के सामने कहा की क्षत्रीय तो बहुत देखे जो अपने स्वार्थ के लिए अपनी बहू बेटियो के डोले आशानी से दे देते है ।पर खंगार क्षत्रीय वंश के वीरो एव बीरन्गनाओ को नमन कर्ता हूँ। यह अपने मान सम्मान क्षत्रीय धर्म को अपने स्वार्थ के लिए नही बेचते में सभी खंगार क्षत्रियो का सम्मान करता हूँ। दासी पुत्रो को बहा का राज्य देकर बहा से चला गया साथ दासी पुत्रो से यह कहता गया की जो आस पास की गाड़ियो में खंगार बीर राज्य कर रहे है। उनको मेरे जीते जी कतई परेशान ना किया जाय जिसके फल स्वरूप बुंदेलखंड में 1700ई तक कई जगह खंगार सत्ता कायम रही। जिसमे दिगारा टहरौली गडबरयाल (गड्बई ) ककरबई गुरुसराय एरच अमरा समथर लोहगड़ जिगनी कोट्रा कालपी महोनी गोपालपुरा दरबाई रामगड चिकासी मग्रौठ लगभग 300 छोटी छोटी गाड़ियो पर राज्य करते रहे।
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