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खानदेश मौर्य राजवंश

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मध्ययुगीन काल में मौर्यो के शासन के शिलालेखों और कई अन्य साक्ष्यों से पता चलता है कि मौर्यों की कई रियासतें थीं जिन्हें कम से कम तीन शाखाओं में जोड़ा जा सकता है अर्थात् मालवा-राजस्थान शाखा, मथुरा शाखा, कोंकण-खानदेश शाखा।[१]मौर्यों ने कोंकण-खांदेश क्षेत्र में कम से कम छठी शताब्दी के उत्तरार्ध से शासन किया[२], जैसा कि उनके प्रतिद्वंद्वियों, चालुक्यों के शिलालेखों से पता चलता है। चालुक्य शिलालेखों के अनुसार, चालुक्य राजाओं, कीर्तिवर्मन-प्रथम (567-92 CE) और पुलकेशिन-द्वितीय (610-42 CE) ने कोंकण के मौर्यो को अपने अधीन कर लिया।

Stone Inscription of Govindraja, Vaghli

खानदेश मौर्य राजवंश[सम्पादन]

1069 ई. का वाघली (खानदेश में) का एक और शिलालेख[३] इस क्षेत्र में मौर्यो की उत्पत्ति के बारे में जानकारी देता है। इसमें गोविंदराजा नाम के एक सामंती मौर्य प्रमुख का उल्लेख है और कहा गया है ।[४]

उत्पत्ति[सम्पादन]

मौर्यवंशी राजाओं का अभिलेखिय साक्ष्य हैं जिससे सिद्ध है कि मौर्यवंशी सूर्यवंशी है तथा मनु को अपने वंश का ही आदर्श राजा मानते थे।[५] ये अभिलेख लगभग 1000 ईस्वी का है अर्थात् आज से 1020 साल पुराना, इस अभिलेख को महाराष्ट्र के वाघली नामक स्थान पर बने शिव मंदिर से प्राप्त किया गया था तथा इसका पाठ " Epigraphy of Indica Volume 2 " में भी प्रकाशित हुआ है। इस अभिलेख की द्वितीय पंक्ति में मौर्यवंश की सूर्यवंश से उत्पत्ति का उल्लेख किया गया है तथा मनु और मान्धाता नामक सूर्यवंशी राजाओं का महिमामंडन किया गया है। अभिलेख में सूर्यवंश की उत्पत्ति तथा मनु मान्धाता का मौर्य गौरव के रुप में वर्णन करते हुए लिखा है[६] -

सुतः कश्यपोभू -- तदनु मनुरभूत्तत्द्युतात्सूर्यवंश:। विख्यात: सर्वलोकेष्वमल नृपगुणैरन्वित:कीर्तिधर्मौर्म्मान्धातुर्भूमिपालात्स कलगुणनिधेन्मौर्य वंशो

Waghali Inscription Line 2 By King Govindaraja Maurya


इस पंक्ति से मनु, मान्धाता, मोर्यवंश तथा सूर्यवंश का ऐक्य अथवा समानाधिकरण सिद्ध होता है। इसी अभिलेख में वाघली के अन्य मौर्यवंशी राजाओं के नाम भी हैं जैसे - कीकट मौर्य, तक्षक मौर्य, भीम मौर्य, गौविंदराज मौर्य आदि॥[७][८] अभिलेख में मौर्य प्रसाद में ब्राह्मणों को संरक्षण तथा जगह जगह भगवान शिव की स्तुति है जिसे तीसरी पंक्ति में भी देखा जा सकता है। अत: इस अभिलेख से सिद्ध होता है कि मौर्यवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय है ।[९]

सन्दर्भ[सम्पादन]

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  1. Singh, Sanjeev. "Maurya Empire: Samrat Ashok’s Kshatriya lineage explained". The Times of India. ISSN 0971-8257. https://timesofindia.indiatimes.com/blogs/sanjeev-singh-blog/maurya-empire-samrat-ashoks-kshatriya-lineage-explained/?source=app&frmapp=yes. 
  2. "History | District Dhule , Government of Maharashtra | India" (en-US में). https://dhule.gov.in/history/. 
  3. "South Indian Inscriptions". https://whatisindia.com/inscriptions/epigraphica_indica/vol32_1957-1958/sircar125.html. 
  4. "Ancient Temple & Jungle - Review of Patna Devi, Jalgaon, India" (en में). http://www.tripadvisor.com/ShowUserReviews-g776955-d7688821-r604031497-Patna_Devi-Jalgaon_Jalgaon_District_Maharashtra.html. 
  5. Indian Historical Quarterly, Vol-13, Issue no.-1-4. http://archive.org/details/dli.calcutta.06445. 
  6. Burgess, Jas (1894). Epigraphia Indica Vol.2. http://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.326023. 
  7. Shastri, Ajay Mitra; Handa, Devendra; Gupta, C. S. (1995) (en में). Viśvambharā, Probings in Orientology: Prof. V.S. Pathak Festschrift. Harman Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85151-76-2. https://books.google.com/books?id=fQ0wAQAAIAAJ&newbks=0&printsec=frontcover&dq=%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96+%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B2%E0%A5%80&q=%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96+%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%98%E0%A4%B2%E0%A5%80&hl=en. 
  8. (mr में) Mahārāshṭra Rājya gêjheṭiara: Jaḷagāva Jilhā. Darśanikā Vibhāga, Mahārāshṭra Śāsana. 1989. https://books.google.com/books?id=_gtuAAAAMAAJ&newbks=0&printsec=frontcover&dq=%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF,+%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%95+%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&q=%E0%A4%95%E0%A5%80%E0%A4%95%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF,+%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%95+%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&hl=en. 
  9. Maṇḍāvā, Devīsiṅgha (1998) (hi में). Kshatriya śākhāoṃ kā itihāsa. Kavi Prakāśana. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-86436-11-0. https://books.google.com/books?id=--4rAAAAMAAJ&newbks=0&printsec=frontcover&dq=%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF+%E0%A4%B9%E0%A5%88+%E0%A5%A4&q=%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%80+%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF+%E0%A4%B9%E0%A5%88+%E0%A5%A4&hl=en. 


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