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चन्द्रवर्मन (चन्देल शासक)

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चन्द्रवर्मन
नृपति, महिपति, हैहयाधिपति

महोबा के राजा
शासनकाल 831-845 ई0
पूर्वाधिकारी भूभुजामवर्मन चन्देल
उत्तराधिकारी वाक्पतिवर्मन
महारानी अरन्या देवी, (रघुवंशी राजकुमारी)
संताने
वाक्पतिवर्मन
पूरा नाम
श्रीमन्मत चन्द्रवर्मन-देव चन्देल
राजघराना हैहय, चन्द्रवंश
पिता *भूभुजामवर्मन चन्देल (पिता)
माता सूर्यकमला देवी
धर्म वैष्णव धर्म, हिन्दू

चन्द्रवर्मन चन्देल (ENG: Chandravarman Chandel: 831-845 ई.)(उपनाम नन्नुकदेव) चन्देरी, चेदि साम्राज्य के एक चन्देल के राजा थे। उन्होंने महोबा नगर को बसा उसे अपनी राजधानी बना वहां पर जेजाकभूक्ति के चन्देल राजवंश की स्थापना की। महोबा के शीलालेख के अनुसार वे चन्द्रदेव के मानस पुत्र थे। उन्होंने अरबों के खिलाफ प्रतिहार राजाओं का साथ दिया।

प्रारंभिक जीवन[सम्पादन]

खजुराहों के शिलालेख के अनुसार जेजाकभुक्ति के चन्देल राजवंश के संस्थापक चन्द्रवर्मन का जन्म चन्द्रवंशी यादव क्षत्रियों की प्रमुख शाखा वृष्णीकुल (हैहय) में हुआ था। चन्द्रवर्मन के पिता का नाम भूभुजामवर्मन चन्देल एवं माता का नाम सूर्यकमला देवी था, जो की उनके काशी के इक्ष्वाकुवंशी सामंतराजा की पुत्री थी।

कुल का परिचय[सम्पादन]

चन्देल राजपूत या क्षत्रिय मूलत: हैहयवंश के ब्रम्हक्षत्रिय थे (श्रेष्ठता में ब्राम्हण के समान क्षत्रिय), जिस कारण वो कुछ पीढ़ी का अंतराल देकर चन्द्रात्रेय गोत्रिय यानी राजवंश के चन्देल राजपूत ब्राम्हण कन्या से विवाह कर सकते थे जिस कारण उनके कुछ ब्राह्मण राज्य को पराजित करने पे संधि विवाह हुए।[१] [२]

चन्द्रवर्मन अपने मानस पिता चन्द्र देव के लगभग समान ही तेजस्वी, वीर और पराक्रमी थे। सोलह वर्ष की आयु में, वह एक शेर या बाघ को बिना हथियार के मार सकता थे। पुत्र के असाधारण पराक्रम को देखकर उन्हें तपस्या पर जाने की सलाह दी। तब चन्द्रवर्मन ने भगवान चन्द्रदेव की कठोर तपस्या की, जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पत्थर का एक पत्थर भेंट किया और उन्हें खजुराहो एवं महोबा का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोना बनाया जा सकता था।[३][४]

राज्यकाल[सम्पादन]

शिलालेखो के अनुसार अपने पिता राजा भूभुजामवर्मन चन्देल की मृत्यु के वक्त वो 6 वर्ष के थे। 831 ईस्वी में 16 वर्ष के आयु में उनके मानस पिता भगवान चन्द्र देव ने महोबा के राजसिंहासन पे उनका राज्याभिषेक किया जो की महोबा के मंदिर पे भी इंकित है। वह बड़े महान तथा प्रजापाल राजा थे। यहां तक की उनकी प्रजा ने ऐसे राजा को पाकर उनके जन्मदिवस पे महोबा का महोत्सव यानी महोबा का त्योहार एवं मेला शुरू कराया। इसीलिए महोबा को महोत्सव नगर भी कहते थे पहले। चन्द्रवर्मन ने उत्तराधिकार में लगातार कई युद्ध जीते। उसने कालिंजर का विशाल किला बनवाया। अपनी माँ के कहने पर, चन्द्रवर्मन ने खजुराहो में तालाबों और उद्यानों से आच्छादित 85 अद्वितीय स्वर्ण मंदिरों का निर्माण किया और कई हजार यज्ञ किए।[५][६]

चन्द्रवर्मन ने चन्देल राज्य की सीमित प्रभुत्व दूरी बेतवा से नर्मदा से यमुना के बीच (विंध्याचल) में 35 भव्य किले बनवाए एवं कालिंजर का किला बनवा कर उसे अपनी राजधानी बनाई।[७]

चन्द्रवर्मन ने कई बार अरबों के आक्रमण को रोका। उनके तीरंदाजी कौशल की तुलना महान नायक अर्जुन से करता है । यह उनकी विनम्रता और उदारता की प्रशंसा करता है, और उन्हें "अपनी प्रजा का आनंद" कहता है। [८]

सैन्य वृति[सम्पादन]

चन्द्रवर्मन ने प्रतिहारो को हराकर अपने पिता के राज्य को स्वतंत्र कर लिया था तथा नई राजधानी बना नया राज्य बसाया। परंतु चन्द्रवर्मन ने प्रतिहार राजाओं का साथ नही छोड़ा क्योंकि परिस्थिति विदेशी आक्रमण बहुत तेजी से बढ़ रहे थे। उन्होंने अरबों के खिलाफ प्रतिहार राजाओं का साथ दिया एवं अरबों को खदेड़ने में कामयाब रहे। उन्होंने युद्ध में उसने 6 अरब सेनापतियों को मारा था।


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  1. Parmaalraso 1189, पृ॰ Jagnikarao.
  2. chandrodayanatakam 1089, पृ॰प॰ 450.
  3. Dixit, Ram Swaroop (1992) (en में). Marketing Geography in an Urban Environment. Pointer Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7132-051-6. https://books.google.co.in/books?id=mngcAAAAIAAJ&q=chandra+varman+kalinjar+fort&dq=chandra+varman+kalinjar+fort&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwixnb-IsPz8AhVDRmwGHSYVAwcQ6AF6BAgGEAM#chandra%20varman%20kalinjar%20fort. 
  4. Pradesh (India), Madhya; Krishnan, V. S. (1982) (en में). Madhya Pradesh District Gazetteers: Dhar. Government Central Press. https://books.google.co.in/books?id=7CYLAQAAIAAJ&q=chandra+varman+kalinjar+fort&dq=chandra+varman+kalinjar+fort&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwixnb-IsPz8AhVDRmwGHSYVAwcQ6AF6BAgDEAM#chandra%20varman%20kalinjar%20fort. 
  5. Dixit, Ram Swaroop (1992) (en में). Marketing Geography in an Urban Environment. Pointer Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7132-051-6. https://books.google.co.in/books?id=mngcAAAAIAAJ&q=chandra+varman+kalinjar+fort&dq=chandra+varman+kalinjar+fort&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwixnb-IsPz8AhVDRmwGHSYVAwcQ6AF6BAgGEAM#chandra%20varman%20kalinjar%20fort. 
  6. Pradesh (India), Madhya; Krishnan, V. S. (1982) (en में). Madhya Pradesh District Gazetteers: Dhar. Government Central Press. https://books.google.co.in/books?id=7CYLAQAAIAAJ&q=chandra+varman+kalinjar+fort&dq=chandra+varman+kalinjar+fort&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwixnb-IsPz8AhVDRmwGHSYVAwcQ6AF6BAgDEAM#chandra%20varman%20kalinjar%20fort. 
  7. (en में) Calcutta Review. University of Calcutta. 1927. https://books.google.co.in/books?id=ll8eAQAAIAAJ&q=chandra+varman+kalinjar+fort&dq=chandra+varman+kalinjar+fort&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwj00Yn5uPz8AhVySGwGHS-KBiA4ChDoAXoECAIQAw#chandra%20varman%20kalinjar%20fort. 
  8. Dikshit, R. K. (1976) (en में). The Candellas of Jejākabhukti. Abhinav Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7017-046-4. https://books.google.co.in/books?id=a9j9ZJGJOV0C&printsec=frontcover&dq=Dikshit+Chandelas+of+Jejakabhukti&hl=en&newbks=1&newbks_redir=0&source=gb_mobile_search&sa=X&ved=2ahUKEwj017GJhcb8AhXNJLcAHZ2UBmEQ6AF6BAgFEAM#v=onepage&q=Dikshit%20Chandelas%20of%20Jejakabhukti&f=false. 


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