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चपराणा राजवंश

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चपराणा राजवंश
चित्र:Chap vansh.png
A warrior of chap vansh while fighting
690 ई॰–942 ई॰
राजधानी पंचसर
पाटन (अन्हिलवाड़)
भाषाएँ पुरानी भाषा, प्राकृत
धर्म हिन्दू, जैन
शासन राजवंश
राष्ट्रपति वनराज चपराणा
इतिहास
 -  स्थापित 690 ई॰
 -  अंत 942 ई॰
आज इन देशों का हिस्सा है: गुजरात, भारत

चप, चाप, चपराणा,चपोत्कट, छावडी, छावडा, चावडी, चावडा - क्षत्रिय गुर्जरों का एक प्राचीन राजवंश था।[१] इसका कालखण्ड ६९० से ९४२ ईस्वी के मध्य था। चापों को संस्कृत के शब्द चापोतकट के नाम से भी जाना जाता है। चाप शब्द संस्कृत का है जिसका अर्थ धनुष होता है। हूणों का वो हिस्सा जो धनुष के साथ जंग किया करता था उसे भारतीय राजाओं द्वारा चापोतकट कहा गया।[२] उन धनुषधारी सैनिकों ने बाद में एक भारत का महान राजवंश खड़ा किया जिसे चाप/चावडा/चपोत्कट राजवंश कहा गया।[३] [४]

परिचय[सम्पादन]

गुर्जरों में 'चपराणा" गोत्र है जो चाप राजवंश के ही वंशज है चपराणा का अर्थ चाप(धनुष) + राणा(राजा) = धनुषधारी राजा निकलता है। इनके चलाए बाण अचूक कहे जाते थे और अपनी तीरअंदाजी के लिए पूरे विश्व में मशूहर थे। इनके तीर दूर तक अचूक थे। ये घोड़े पर खडे होकर, पीछे मुडकर, एक हाथ से या कहें कि हर प्रकार से तीर चलाने में सक्षम थे। गुर्जरों का चपराणा गोत्र, गुर्जरों के ही सैनिकों मेें बडा हिस्सा तीरंदाजों का था जो चाप से सम्बन्ध को गहरा करता है। गुर्जरों को दुनिया का सबसे अच्छा घुड़सवार और धनुर्धर माना जाता था।[५]

इतिहास[सम्पादन]

सातवीं शताब्दी में भीनमाल से गुर्जरदेश (आधुनिक राजस्थान) पर शासन करने वाले राजा व्याघ्रमुख गुर्जर चाप वंश के थे।[६]। उसका सिक्का हूणों के सिक्कों की नकल है, इसलिए इसे वी॰ए॰ स्मिथ द्वारा 'राजा व्याघ्रमुख चपराणा' के हूण सिक्के के रूप में कहा गया।[७] मध्यप्रदेश के चंबल संभाग में चपराणा और हूण गुर्जर पाग-पटल भाई के रूप में जाने जाते हैं। वनराज चावड़ा, जिन्होंने अनिलवाड़ा शहर की स्थापना की थी, पंवार और पंवार हूण मूल के गुजराती थे। इस प्रकार चाप, चपराना, चावड़ा, चपोटक, छावडा, छावडी भी हूण मूल के हैं।[८] होर्नले ने इन्हें हूण मूल का गुर्जर बताया है।[९]

आठवीं शताब्दी के आरम्भ में गुर्जर-प्रतिहार उज्जैन के शासक थे। नाग भट प्रथम ने उज्जैन में गुर्जरों के इस नवीन राजवंश की नींव रखी थी। संभवतः इस समय गुर्जर प्रतिहार भीनमाल के चप/चावडा वंशीय गुर्जर के सामंत थे।[१०]

नक्षत्र विज्ञानी ब्रह्मगुप्त की पुस्तक ब्रह्मस्फुत सिधांत के अनुसार भीनमाल चाप वंश के व्याघ्रमुख का शासन था। 51 व्याघ्रमुख का एक सिक्का प्राप्त हुआ है, इस पर भी ‘सासानी’ ईरानी ढंग की अग्निवेदिका उत्कीर्ण है। वी॰ए॰ स्मिथ ने इस सिक्के की पहचान श्वेत हूणों के सिक्के के रूप में की थी तथा इस विषय पर एक शोध पत्र लिखा जिसका शीर्षक है “व्हाइट हूण कोइन ऑफ़ व्याघ्रमुख ऑफ़ दी चप (गुर्जर) डायनेस्टी ऑफ़ भीनमाल” [८] होर्नले ने इन्हें हूण मूल का गुर्जर बताया हैं।[९]

भीनमाल के रहने वाले ज्योत्षी ब्रह्मगुप्त ने शक संवत 550 (628 ई॰) में अर्थात हेन सांग के वह आने के 13 वर्ष पूर्व ‘ब्रह्मस्फुट’ नामक ग्रन्थ लिखा जिसमें उसने वहाँ के राजा का नाम व्याघ्रमुख और उसके वंश का नाम चप (चपराणा, चापोत्कट, चावडा) बताया है। [११]

संदर्भ[सम्पादन]

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  1. Rahul Khari. Chawda Gurjar page 92:. https://books.google.co.in/books?redir_esc=y&id=1lGgAAAAMAAJ&focus=searchwithinvolume&q=chawda+gurjar. 
  2. Puri 1957.
  3. A.M.T. Jackson, Binhamal (article), Bombay Gazetteer section 1 part 1, Bombay, 1896.
  4. Vincent A. Smith, The Oxford History of India, Fourth Edition, Delh.
  5. Smith, Vincent A. (October 1907). "`White Hun' Coin of Vyagrahamukha of the Chapa (Gurjara) Dynasty of Bhinmal". Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland. doi:10.1017/S0035869X00036868. JSTOR 25210490. https://zenodo.org/record/2131068/files/article.pdf. 
  6. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991.
  7. वी॰ऐ॰स्मिथ, व्हाइट हूण कोइन ऑफ़ व्याघ्रमुख ऑफ़ दी चप (गुर्जर) डायनेस्टी ऑफ़ भीनमाल.
  8. ८.० ८.१ विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली.
  9. ९.० ९.१ ऐ.आर.रडोल्फ होर्नले, “The Gurjara clans, some problems of ancient Indian History” No. III. JRAS, 1905, pp 1-32.
  10. बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986.
  11. ब्रह्मस्फुट ग्रंथ.


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