You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

चित्रांगद मोरी दुर्ग

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

चित्तौड़गढ़ दुर्ग का काला सच यों तो राजस्थान की धरती को वीरों और स्वाभिमानियों की भूमि कहा जाता रहा है, मगर इनके इतिहास में कई दागदार अध्याय है, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यहां राजपूती सत्ता की स्थापना ही एक षड्यंत्र के बल पर हुई। यहां के मूल शासक को जिस प्रकार से विश्वासघात कर सत्ता हड़पी गई, वह गुहिल वंश पर एक बदनुमा दाग है। [१][२][३][४][५]

दरअसल यहां से गुहिलों यानी राणा सांगा, रत्न सिंह के पूर्वज बापा रावल से राजवंश की स्थापना हुई थी। कर्नल टॉड, गोपीनाथ शर्मा और अबुल फजल जैसे अनेक इतिहास्कारः तो इनके क्षत्रिय होने पर ही सवाल खड़ा करते हैं। बहर हाल बापा रावल बड़े होकर कुछ भील युवाओं को जोड़ कर एक दल के सरदार बन गए ये आठवी सदी का प्रारंभिक दौर था, उस समय दक्षिण पूर्व के हिस्से पर मानमोरी का शासन था, जो मौर्य वंश का था। बापा रावल जो भील युवाओं का नेता था, उन्ही के बल पर राजा मॉनमोरी की फौज में शामिल हो गया तथा राजा ने विश्वास कर उसे सरदार के पद पर आरूढ़ कर दिया। इस प्रकार दर दर भटकने वाले एक युवा बापा रावल को राजा मानमोरी की। शरण मिल गयी और उसके दिन फिर गए। कुछ समय बाद बापा रावल ने अपने गुरु और पालक हारित ऋषि के सहयोग और षड्यंत्र से राजा मानमोरी की हत्या कर दी और खुद शासक बन गया। ये घटना 734 ईसवी की है।। कुछ इतिहास्कारः इसे 740 भी बताते हैं। मानमोरी की नृशंश हत्या के बाद बापा के कब्जे में उस समय का सबसे बड़ा किला चित्तौड़ भी आ गया, जिसे मानमोरी के पूर्ववर्ती चित्रांगद मौर्य ने बनवाया था। इस प्रकार राजस्थान में गुहिलवंश का शासन शुरू हुआ लेकिन इतिहास्कारः इस कलंकित घटना का ब्यौरा नही देते उल्टे चित्तौड़ को राजपूताना स्वाभिमान का प्रतीक बताते रहते हैं। इसका कारण बहूत कटु है। मोरी राजवंश उस जमात का था जिसे आज पिछड़ा कहा जाता है, लेकिन अपने पूर्वजों के भेड़ पालक होने पर स्वर्ण होकर भी स्वर्ण नहीं माना जाता था और बौद्ध धर्म का अनुयाई था। यह बात असहनीय थी, इसे उस समय की पुरोहितवादी ताकते इस कैसे सहन करतीं। बहरहाल इतिहास के किसी छात्र के लिए ये घटना भी उस काल के सत्ता संघर्षों की अनेक घटनाओं की तरह सामान्य ही है। लेकिन जो लोग सत्ता संघर्ष की घटनाओं को सांप्रदायिक नज़रिये से देख कर बड़े बड़े और नैतिकता से लबरेज सवाल खड़े करते हैं उनसे एक सवाल है कि मानमोरी के साथ किये गए विश्वासघात पर उनका नज़रिया क्या है। यही नही चित्तौड़ किले को वे राजपूती स्वाभिमान का प्रतीक कैसे मानेंगे।

सच तो ये है कि मध्यकाल में सत्ता के खेल में ये सब वाजिब था। ऐसे खेल होते रहते थे। ये तो भगवा और हरे चश्मे का कमाल है कि इतिहास के खेत मे भी साम्प्रदायिकता की फसल लहलहाने लगी है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. Shobhalal., Shastri, (1928). Chittorgarh. State Printing Press. OCLC 623688723. http://worldcat.org/oclc/623688723. 
  2. Bikram., Israel, Samuel. Sinclair, Toby. Grewal, (2001). Rajasthan. APA. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 981-234-520-5. OCLC 44785635. http://worldcat.org/oclc/44785635. 
  3. DHAWAN, B.N.; MATHUR, G.B.; RAJVANSH, V.S. (1968). "EFFECTS OF SOME CENTRALLY ACTING DRUGS ON BLOOD COAGULATION". Japanese Journal of Pharmacology 18 (4): 445–453. doi:10.1254/jjp.18.445. ISSN 0021-5198. http://dx.doi.org/10.1254/jjp.18.445. 
  4. B., J. A.; Mori, Arturo; Mori, Arturo; Mori, Arturo; Mori, Arturo; Mori, Arturo (1933). "Crónica de las Cortes Constituyentes de la Segunda República Española. Vol VI: El Estatuto de Cataluña". Books Abroad 7 (4): 477. doi:10.2307/40074712. ISSN 0006-7431. http://dx.doi.org/10.2307/40074712. 
  5. "rajputana cotton", The Fairchild Books Dictionary of Textiles, Fairchild Books, 2021, अभिगमन तिथि 2022-07-31


This article "चित्रांगद मोरी दुर्ग" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:चित्रांगद मोरी दुर्ग.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]