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जगदेई कोलिन

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जगदेई कोलिण जिसने अपनी जान देकर नेपाल साम्राज्य की गोरखा आर्मी से हज़ारों गढ़वालीयों की जान बचाई। यह घटना उस समय की है जब नेपाल का राजा ,राणा बहादुर साह, भारत के गढ़वाल और कुमाऊं पर कब्जा करना चाहता था।[१]

प्रारंभिक जीवन[सम्पादन]

जगदेई कोलिण का जन्म उत्तराखंड के सांदना गांव में हुआ और शादी सल्ट शहर के एक गांव में हुई। 2 साल बाद जगदेई ने एक बेटी को जन्म दिया और उसी वर्ष जगदेई के पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद जगदेई के सास और ससुर उससे अपने देवर के साथ रहने के लिए कहने लगे लेकिन कोलिण न मना कर दिया। वह कुछ दिन के लिए अपने पीहर चली गई तो उसकी मां ने उससे पूछा कि तेरे ससुराल वाले कुछ बोल रहे हैं क्या तो उसने अपनी मां को बताया की मेरे सास ससुर मुझे देवर जी के साथ रहने को बोल रहे हैं और मेने उनको मना कर दिया है। तो जगदेई कोलिण की मां ने भी देवर के साथ रहने को बोला लेकिन जगदेई ना मानी तो जगदेई की मां ने जगदेई को धमकाते हुए कहा तु पागल हो गई है छौरी , तेरी सास बिल्कुल सही बोल रही है अब तू अपने देवर के साथ ही घर बसा ले तेरी बेटी को बाप मिल जाएगा और तुझे सहारा बर्ना तु जानती है दुनिया कैसी है। तो जगदेई कोलिण राज़ी हो जाती है। अगले दिन जगदेई कोलिण अपने ससुराल जाती है जब जगदेई अपने घर पहुंचती है तो उसे वहां कोई भी दिखाई नहीं देता। बस एक दो लोग मिलते हैं उनसे पता चलता है कि सभी लोग नेपाल की गोरखा सेना के डर से यहां से पहाड़ी पर चले गए हैं।[१][कृपया उद्धरण जोड़ें]

इतिहास[सम्पादन]

जगदेई कोलिण घर वालों को ढूंढने को मुडती है तो उसे धुएं का गुब्बार दिखाई देता है जो नेपाल साम्राज्य की गोरखा आर्मी की तबाही से उठ रहा था। जगदेई कोलिण एक ऊंची जगह पर जाकर पूरी ताकत लगाकर चिल्लाने लगी की , गोरखा सैनिक आ गए हैं, गोरखा सैनिक आ गये है, जिससे आस पास के गांव के लोग भी भाग जाएं। जगदेई कोलिण की आवाज गूंज रही थी और वो चिल्लाती रही फिर एक बुजुर्ग आकर जगदेई को धमकाते हुए बोला तु पागल है तेरी आवाज़ सुनकर गोरखा हत्तयारे यहां जल्दी आ जाएंगे तो जगदेई कोलिण बोली की चाचा अगर मैं ना चिल्लाई तो भी गोरखा यहां आएंगे और गांव वालों को पता भी ना चलेगा लोग मारे जाएंगे। तो बुजुर्ग आदमी बोला बेटा तुझे गोरखा मार डालेंगे तो कोलिण बोली चाचा कोई बात नहीं तुम्हारी हजारों बेटीयों की जान तो बचेगी। इतने में गांव वाले भी बोरी विस्तर समेट लेतें है और वो बुजुर्ग आदमी झाडीयों में छुप जाता है। और गोरखा आर्मी भी जगदेई के पास पहुंच जाती है। गोरखा आर्मी का एक सैनिक जगदेई को पुरी ताकत से लात मारता है और जगदेई पत्थर पर गिरती है लेकिन जगदेई कोलिण चिल्लाना बन्द नहीं करती है और सैनिकों से लड पड़ती है । तो दो सैनिक जगदेई को लात घुसों से मारते है लेकिन फिर भी जगदेई कोलिण पुरी ताकत से चिल्लाती रहती है की गोरखा आ गये हैं। यह सब देखकर दो सैनिक जगदेई के दोनों कान और स्तनों को काट देते हैं लेकिन जगदेई फिर भी वही चिल्लाती रहती है। इसके बाद गुस्से म पागल दो गोरखा सैनिक जगदेई कोलिण को खचेड कर एक झोंपड़ी में ले जाते हैं और झोपड़ी में आग लगा देते हैं। लेकिन जब तक जगदेई जिंदा रहती है तब तक चिल्लाती रहती है की भाग जाऔ गोरखा आ गये हैं जगदेई कोलिण झोपड़ी के साथ ही जिंदा जल जाती है। लेकिन तब तक गांव के सभी लोग भाग जाते हैं और कुछ वही छुप जाते हैं और गोरखा सैनिकों को कुछ नहीं मिलता। गोरखा सैनिकों के जाने के बाद वह बुजुर्ग जो झाडीयों में छुप गया था बाहर आता है और जगदेई कोलिण की हड्डीयों को ढूंढने लगता है और छुपे हुए लोगों भी बाहर आते हैं और वो बुजुर्ग सभी को इस घटना के बारे में बताता है।[१][कृपया उद्धरण जोड़ें]

सन्दर्भ[सम्पादन]

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