जयसिंह प्रथम
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महाराज कल्याण सिंह परमार
महाराज कल्याण सिंह परमार जयसिंह प्रथम के छोटे भाई थे। काडू सिंह उर्फ कल्याण सिंह परमार महाराजा भोज परमार के उत्तराधिकारी, जयसिंह प्रथम के छोटे भाई थे। कल्याण सिंह परमार ने दिल्ली के तत्कालीन शासक अनंगपाल तोमर द्वितीय की पुत्री राजकुमारी विशारदेह से शादी की।
राजकुमारी विशारदेह से शादी करने के बाद जब राजकुमार कल्याण सिंह परमार जब धारानगरी{धार} वापस लौटे महाराज जयसिंह ने कल्याण सिंह परमार की पत्नी रानी विशारदेह का खाना-पीना,रहना-सहना अलग कर दिया क्योंकि अनंगपाल तोमर के यहां मांस-मछली मदिरा का सेवन किया जाता था। जो पवारओं में नहीं किया जाता था इसीलिए महाराज ने रानी विशारदेह का रहना अलग कर दिया था।
रानी को यह बात अच्छी नहीं लगी। अपने पिता महाराज अनंगपाल तोमरको यह बात बताई तो महाराज अनंगपाल तोमर ने रानी से कहा कि जब तक कल्याण सिंह परमार मांस-मदिरा का सेवन नहीं कर लेते मैं आपको उनके साथ नहीं जाने दूंगा।
महाराज जयसिंह को पता था कि यह सब होने वाला है। तो उन्होंने राजकुमार कल्याण सिंह परमार को रानी विशारदेह को वापस लाने के लिए भेजा और साथ में यह भी वचन लिया कि यदि अनंगपाल तोमर तुम्हें मांस-मदिरा का सेवन करा दे तो वापस धारानगरी {वर्तमान धार जिला , मध्य प्रदेश} मत आना।
जब कल्याण सिंह परमार दिल्ली पहुंचे तो महाराज अनंगपाल तोमर ने कल्याण सिंह पवार को मांस मदिरा का सेवन करा दिया वचन के अनुसार अब वह धार वापस नहीं जा सकते थे। महाराज अनंगपाल तोमर ने राजकुमार कल्याण सिंह परमार को 80 गांव की जागीरी थी।
राजा कल्याण सिंह परमार ने रोहतक हरियाणा के पास अपने नाम से एक गांव बसाया जिसे कलानौर नाम दिया।
खिलजी के आक्रमण के समय महाराज कल्याण सिंह परमार के वंशजों का राजपाट खत्म हो गया और वे राजस्थान के जये नामक स्थान पर जाकर खेती करने लगे। जिस स्थान पर कल्याण सिंह परमार के वंशज खेती करती थी वहां पर फसल से ज्यादा जंगली घास ऊगती थी इसीलिए उस जगह का नाम जये पड़ गया।
विक्रम संवत 1499[1442 ईसा पूर्व] में धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम हुए।
विक्रम संवत 1905 (1848 ईसा पूर्व) में जेवर में मैना-मेवों का राज था। उनका अत्याचार वहुत बढ़ गया था कि यदि किसी लड़की की शादी होकर जेवर में आती थी। तो उसे एक रात मैंना-मैवो के घर में रहना पड़ता था ।
जब मैंना-मैंवो के अत्याचारों के बारे में महाराज कल्याण सिंह परमार के वंशजों को पता चली तो उन्होंने जेवर के लोगों की सहायता करना स्वीकार किया। उन राजपूतों ने जेवर के लोगों को एक उपाय बताया कि आप अपने-अपने घरों के बाहर गेरू रंग के हाथ के पंजों के निशान लगा देना ताकि हमें पता चल जाए कि यह आपका घर है।और सभी ने ऐसा ही किया।
जेवर पर परमारो की चढ़ाई होने से कुछ घंटे पहले एक मैना-मेवानी उठी तो उसने सभी के घरों पर गेरू रंग के हाथ के पंजों के निशान देखे। उसने सोचा शायद ग्रहण पड़ने वाला है तो उसने भी अपने घर के बाहर पंजों के निशान लगा दिए। परमारओ ने जिन घरों पर गेरु रंग के हाथ के पंजों के निशान नहीं लगे थे, उस घर के बच्चे- बच्चे को काट दिया। जब सुबह हुई तो पता चला कि एक परिवार रह गया है। जिसने अपने घर के बाहर पंजों के निशान लगा दिए थे उन परमारो को उस पर दया आ गई और उस परिवार को छोड़ दिया गया। इस बात की सत्यता के लिए वह घर आज भी जेवर शहर में मौजूद है।
उस समय जेवर का 52000 बीघा का था। परमार योद्धाओं ने मौना-मेवो को हराकर जागीर प्राप्त की। वह यही बस गये। धीरे धीरे उन योद्धाओं के वंशजों ने दान-पुण्य,और 1950 मे आये जमींदारी उन्मूलन कानून के कारण अपनी सारी जमीनें गंवा दी।
- महाराज_कल्याण_सिंह_परमार के कुछ वंशजों के नाम
रावल ठाकुर बादम परमार । रावल ठाकुर जानी परमार + रावल ठाकुर मुंशी परमार । । ।
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