You can edit almost every page by Creating an account. Otherwise, see the FAQ.

जसोल धाम

EverybodyWiki Bios & Wiki से
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

जसोल धाम- माता  राणी भटियाणी दरबार में चैत्र, वैशाख व भादवे के शुक्ल पक्ष त्रयोदशी-चतुर्दशी को श्रद्धालुओं की विशेष हाजिरी।

माता राणी भटियाणी के मंदिर जसोल धाम में चैत्र पक्ष तेरस को श्रदालुओं का विशेष आगमन होता है। स्थानीय व दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का आगमन प्रातः से ही आरम्भ होकर  देर शाम तक रहता है। प्रत्येक चैत्र , भादवा व आश्विन माह की नवरात्रि एवम वैशाख, भाद्रपद व माघ त्रयोदशी-चौदस पर अधिक मात्रा में श्रद्धालु जसोल धाम पहुँचते है। बड़े महीने की तेरस को आम दिनों से श्रद्धालुओं की आवक तुलनात्मक अधिक होती है।

राजस्थान ही नही अपितु गुजरात, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली व सम्पूर्ण देश से हजारों की सँख्या में श्रदालु जसोल धाम पहुंचते हैं। इस दो-दिवसीय मेले में नाना प्रकार की तकलीफों से ग्रस्त लोग यहाँ पहुंचकर दर्शन कर मनोकामना मांगते है। "जसोल धाम" में माता भटियाणी के साक्षात पर्चे से विश्वासी दर्शनार्थियों को लाभ प्राप्त होता हैं। आने वाले दर्शनार्थियों में महिलाओं व बच्चों की अधिसंख्या के कारण मंदिर परिसर की रौनक चौगुनी हो जाती है। अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने के उपलक्ष्य में भक्त पूजा-अर्चना के साथ ही माताजी को बेस, चूड़ियाँ व  सिंदूर श्रद्धाभाव  से अर्पित करते हैं।

इस दिन माताजी की मूर्ति का विशेष श्रृंगार के साथ मंदिर में आने वाले भक्तों की सुविधा हेतु मंदिर प्रशासन हेतु समस्त सुविधाओं की पूर्ण व्यवस्था की जाती है। "जसोल धाम"  जसोल मॉजीसा के मंदिर से 8 किलोमीटर दूरी पर राणी रुपादे का बहुत बड़ा मंदिर पालीयाधाम है और जसोल से 6 किलोमीटर दूर ही नाकोड़ाजी का मंदिर भी स्तिथ है। दर्शनार्थियों की सुविधा हेतु जसोल धाम के साथ ही इन स्थानों पर समस्त प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अनेक स्थानों से श्रद्धालु पैदल संघ बनाकर भी "जसोल धाम" की धार्मिक यात्रा करते है। पैदल यात्रियों, श्रदालुओं, दर्शनार्थियों के चेहरों पर यात्रा व दर्शन पश्चात दिखाई देने वाला अलौकिक संतोष एक संतुष्टि का अहसास दिलाता हैं।

"जय भटियाणी माता "

जय जसोल धाम।


श्री भटियाणी माजीसा मंदिर।[सम्पादन]

श्री रानी भटियाणी मंदिर संस्थान, जसोल

जसोल धाम।[सम्पादन]

राजस्थान लोक देवी-देवताओं की पुण्य भूमि है। वीरधरा राजस्थान के कण-कण में वीर-वीरों व सती-सावित्रीयों की अमर कथायें व्याप्त है। इन की स्मृति को संजोए हुए त्याग व शौर्य की भूमि में अनेक लोक देवी-देवताओं के मंदिरों का निर्माण किया गया था। इन पुण्य स्थलों पर आकर देश-विदेश के जातरू मूल्य व संस्कारों के साथ ही इनसे प्रेरणा व आशीर्वाद प्राप्त करते है। ऐसा ही एक शक्ति-स्थल के रूप में विख्यात हैं "श्री भटियाणी माजीसा मंदिर"। जिसे श्रद्धालु "जसोल धाम" के नाम से पुकारते हैं।  

माजीसा राणी भटियाणी जी[सम्पादन]

माजीसा राणी भटियाणी को हिन्दू देवी के रूप में  भारत व पाकिस्तान में पूजा जाता है। पश्चिमी राजस्थान में माजीसा को " भुआ सा" कहकर भी सम्बोधित किया जाता है। माजीसा के मंदिर जैसलमेर, बाड़मेर व सिंध क्षेत्र में स्तिथ है। इनमें से बाड़मेर के जसोल ग्राम स्तिथ मंदिर को माजीसा के मुख्य मंदिर के रूप में मान्यता है।

"जसोल धाम" में वर्षभर श्रद्धालुओं का दर्शनार्थ  आगमन रहता है। प्रत्येक चैत्र व आश्विन माह की नवरात्रि एवम वैशाख, भाद्रपद व माघ त्रयोदशी-चौदस पर अधिक मात्रा में श्रद्धालु जसोल धाम पहुँचते है। कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष त्रयोदशी पर बहुत भारी सँख्या में दर्शनार्थियों का आगमन होता है।

जसोल माताजी का जीवन परिचय।[सम्पादन]

जसोल माताजी का अवतरण जैसलमेर जिले के एक छोटे से ग्राम में वि.सं. 1725 में ठाकुर श्री जोगसिंह भाटी के यहां हुआ था। जसोल माताजी का नाम स्वरूप कँवर रखा गया था।

स्वरूप कँवर सा में बचपन से ही विलक्षण गुणों का दर्शन होने लगा था। समयानुसार स्वरूप कँवर का विवाह बाड़मेर जिले के जसोल ग्राम के ठाकुर कल्याणमल से हुआ। ठाकुर कल्याणमल का विवाह स्वरूप कँवर से पहले विवाह देवड़ा वंश में हुआ था।

विवाह के पश्चात स्वरूप कँवर को राणी भटियाणी के नाम से पहचाना जाने लगा। विवाह के दो वर्ष पश्चात राणी भटियाणी को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम लालसिंह रखा गया था। राणी भटियाणी को पुत्ररत्न प्राप्त होने पर बड़ी राणी देवड़ी,  जिनके सन्तान नही थी, को विचलित कर दिया था एवम उन्हें राणी भटियाणी से तीव्र ईर्ष्या रहने लगी। समय बीतने पर राणी देवड़ी को भी पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई लेकिन लालसिंह ठाकुर जोगसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था एवम ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण ठिकाने का उत्तराधिकारी था।

राणी देवड़ी अपने पुत्र को उत्तराधिकारी देखना चाहती थी लेकिन उत्तराधिकार के स्थापित नियमों के तहत यह अधिकार लालसिंह का था। पुत्र मोह एवम सौतिया डाह के कारण राणी देवड़ी के मन में राणी भटियाणी के प्रति शत्रुता भाव विकसित होने लगे।

राणी देवड़ी को राणी भटियाणी व उनका पुत्र लालसिंह सुहाता नही था अतः वे लालसिंह को अपने रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र रचने लगी। श्रावणी तीज के दिन जब राणी भटियाणी महल से बाहर थी तो  अवसर पाकर राणी देवड़ी ने लालसिंह को दूध में जहर दे दिया, एक अन्य मान्यता के अनुसार बालक लालसिंह को सीढ़ियों से धक्का दे दिया, जहर के प्रभाव से लालसिंह देवगति को प्राप्त हो गए। पुत्र-वियोग के कारण राणी भटियाणी ने भी अंततः वि.सं. 1775 माघ सुदी द्वितीया को अपनी नश्वर देह का त्याग कर दिया था।

राणी भटियाणी ने धर्म, परिवार, समाज व मूल्यों के प्रति समर्पित जीवनयापन किया था।  राणी भटियाणी जी का सभी के साथ बेहद मधुर व सात्विक सम्बंध था। उनके द्वार से निर्बल, शोषित व बेसहारा वर्ग के लोग सदैव सहायता प्राप्त करते थे। उनके देहावसान के पश्चात स्थानीय समुदाय शोकमग्न हो गया था। राणी भटियाणी के निधन के पश्चात राणी देवड़ी बहुत प्रसन्न थी क्योंकि लालसिंह के असामयिक निधन के पश्चात अब उसका पुत्र ही ठिकाने का उत्तराधिकारी बन गया था।

एक दिन रावल कल्याणमल के ठिकाने पर मुसीबतजदा दो ग्रामीण शंकर व ताजिया सहायता माँगने हेतु आये। राणी देवड़ी ने उनकी सहायता नही की एवम उपहास में कहा कि कुछ माँगना है तो "राणी भटियाणी" की याद में निर्मित चबूतरे से माँग लो। दोनों मुसबीतजादा ग्रामीणों ने राणी भटियाणी के चबूतरे के समक्ष सच्चे ह्रदय से अपनी आपबीती सुनाई व सहायता हेतु प्रार्थना की।

माता भटियाणी ने उन दोनों ग्रामीणों की सच्ची प्रार्थना से अभिभूत होकर उन्हें साक्षात दर्शन प्रदान करके उनकी सहायता की। इसके साथ ही राणीसा के इस परचे के प्रमाणस्वरूप उन्हें एक पत्र सौपा जिसमें की ठीक बारह दिन पश्चात रावल कल्याणमल के स्वर्गवास का विवरण था। परचे के पत्र के अनुसार ही ठीक बारह दिन पश्चात रावल कल्याणमल का स्वर्गवास हो गया था।

इसके पश्चात राणी भटियाणी ने आम जनता के दुःखो के निवारणार्थ जनहित में अनेक परचे दिए। राणी भटियाणी के बढ़ते प्रभाव के कारण  जसोल के ठाकुरों ने रानी भटियाणी हेतु इस चबूतरे पर एक मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर में अर्चना-पूजन करने व मनोकामना माँगने हेतु देश-विदेश से हजारों-लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं द्वारा माता भटियाणी जी के दर्शन पश्चात उन्हें श्रद्धास्वरूप वस्त्र (काँचली, लूगड़ी, बिंदिया व चूड़ियां) चढ़ाते हैं। माता भटियाणी राणी के नाम से प्रतिवर्ष एक विशाल पशु मेले का आयोजन भी किया जाता है।

"जसोल धाम" पहुँचने का मार्ग।[सम्पादन]

"जसोल धाम" बाड़मेर के प्रसिद्ध औद्योगिक नगर "बालोतरा" से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। आप रेलवे अथवा सड़क मार्ग से राजस्थान के प्रमुख जिले जोधपुर (रेलमार्ग 114 किमी), व बाड़मेर (रेलमार्ग 103 किमी) से पहुँच सकते है।

आप जोधपुर व बाड़मेर से सड़क मार्ग से बहुत आसानी बालोतरा एवम बालोतरा से जसोल धाम पहुँच सकते है।

This article "जसोल धाम" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:जसोल धाम.



Read or create/edit this page in another language[सम्पादन]