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जिया माँ

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जिया माँ (इंद्रा देवी जी)
जन्म 26 जनवरी 1901
BarhanAgra,Uttar Pradesh, India
मृत्यु 28 जनवरी 1985
Mathura, Uttar Pradesh, India
गुरु/शिक्षक Mahatma Ramchandra Ji
दर्शन Karma, Upasana, Bhakti, Gyaan with emphasis on Upasana
खिताब/सम्मान परम संत (जिया माँ)
कथन '
धर्म हिन्दू
दर्शन Karma, Upasana, Bhakti, Gyaan with emphasis on Upasana
राष्ट्रीयता Indian
* * .

परम संत परम पूज्य जिया माँ (Jia Maa - Indira Devi );( 1901 -1985) भारत के एक महान सन्त पुरुष एवं समर्थ गुरु थे जिन्होने अपने गुरु परम संत महात्मा रामचंद्र जी महाराज परम पूज्य जिया माँ, समर्थ गुरु डॉ॰ चतुर्भुज सहाय जी के निर्वाण के बाद,परम संत डॉ बृजेन्द्र कुमार जी और परम भागवत पंडित मिहीलाल जी ने परम पूज्य जिया माँ के संरक्षण में रामाश्रम सत्संग , मथुरा का प्रचार -प्रसार का कार्य किया। [१] [२]

जन्म व् गृहस्थ जीवन[सम्पादन]

आपका विवाह समर्थ गुरु डॉ॰ चतुर्भुज सहाय जी से हुआ। समर्थ गुरु डॉ॰ चतुर्भुज सहाय जी के निर्वाण के बाद रामाश्रम सत्संग, मथुरा की अपने पूरे जीवन काल तक संचालन किया और अपने मौन उपदेशो से आध्यात्मिक जिज्ञासुओं का मार्ग दर्शन किया। आपकी दो पुत्रियां और तीन पुत्र थे। आपके बड़े पुत्र परम संत डॉ बृजेन्द्र कुमार जी थे। आप मेडिकल सुप्रीडेंटेंट के पद से अवकाश ग्रहण किया। आप के दूसरे पुत्र परम संत श्री हेमेंद्र कुमार जी थे तथा तृतीय पुत्र परम संत डॉक्टर नरेंद्र कुमार जी थे। आप के तीनो ही पुत्रों ने आपको अपना गुरु मान कर ही अपना जीवन निर्वाह किया तथा ये सभी अध्यात्म विद्या के पूर्ण धनी थे और अपना सारा जीवन गुरु के मिशन की निष्काम भाव से सेवा करते रहे। आपकी दोनों पुत्रिया परम संत श्रीमती श्रद्धा और परम संत श्रीमती सुधा कुलीन व् आध्यात्मिक परिवार में विवाह के पश्चात भी आपके मिशन की सेवा में जीवन पर्यन्त लगी रहीं।

शक्ति और करुणा - व्यक्तित्व[सम्पादन]

हे माँ आपका स्वरुप अचिंतनीय है , आप सभी घट में विराजमान हो , आप ही मन , बुद्धि और प्राण हो। आप सबकी आत्मा हो। आपकी गति आपका स्वरुप ब्रह्मा , विष्णु और महेश भी न जान सके तो फिर हम मूढ मनुष्यों की तो बात ही क्या। आप अपने ही स्वरुप से प्रकट होती हो और अपने ही स्वरुप में लय हो जाती हो। हम आपकी शरण है माँ !! हम सब पर अपनी दया का हाथ रख दो !! माँ !!! उनके पंडाल में प्रवेश करते ही एक अद्धभुत प्रकाश छा जाता था और प्रत्येक के हृदय में प्रवेश कर प्रेम की भूमिका में सबको तत्काल ले पहुँचती थी। वह स्थान पवित्र हो जाता था, जहाँ वह ठहर जाती थी, वे मनुष्य परम पवित्र जाते थे जिन्हें वे देख लेती थीं। वह सिंघासन जगमगाने लगता था जिस पर वह विराज थीं। उनका व्यवहार सर्वोच्च प्रकार का अध्यात्म था। उनका जीवन अध्यात्म की व्यावहारिक भूमिका पर खड़ा था। गीता के साम्ययोग या संत कबीर के पंचम पद का प्रत्यक्ष स्वरुप हमारी माताजी में देखा गया। तीनो गुण उनके चरणों के नीचे प्रवाहित होते थे। न सत का लिबास , न तम का प्रभाव , रज से उदासीन। उच्च शिखर पर विराजित साक्षात् भगवती माता के दीप्तिमान स्वरुप। आज से हम परम पूज्य जिया माँ के अध्भुत और परम पावन स्वरुप का कुछ स्मृतियों के माध्यम से दर्शन करने का प्रयास करेंगे। यदपि माँ के बारे में अधिक न लिखा जा सका न ही हम साधारण मनुष्य माँ के बारे में ज्यादा कुछ लिख सकते हैं फिर भी महापुरुषों ने उन्हे जैसा देखा वही लिखने का प्रयास किया गया है। माँ आप सब पर दयालुं हों यही प्रार्थना है। न जानामि भक्तिं ब्रतम वापि मातः , गतिस्तवं गतिस्तवं स्वमेका भवानि। " माँ न मैं पुण्य जनता हूँ न तीर्थ , न मुक्ति का पता है न लय का। हे मातः भक्ति और व्रत का मुझे भी ज्ञान नहीं है। हे संसार का पालन करने वाली तुम्हीं मेरी गति हो, सहारा हो। " अध्यात्म के उच्चतम शिखर पर पहुंचे हुए महापुरुषों के लक्षण जैसे सरलता, सेवा भाव ,उदारता ,विनम्रता , आंतरिक प्रसन्नता , दीन -दुखियों के विषय में पूरी सहानुभूति मनुष्य मात्र के लिए निश्चल प्रेम , समता इत्यादी उनमे प्रचुर मात्रा में मौजूद थे। सत्संगी भाइयों की निष्काम सेवा जिया ने बहुत काल की और बहुत लगन से की। इसी सेवा ने ही उनको पूज्य महात्मा जी महाराज और सत्संग के अन्य बुजुर्गों का कृपा पात्र बना दिया। श्री गुरु महाराज जी की सत्संग वाटिका उनके बाद अपने प्रेम और वात्सल्य रूपी जल से सींचती रहीं। उनके सानिध्य में इतने भाई - बहन अपना सुख -दुःख भूल कर ऐसे मस्त हो जाते थे जैसे बालक अपनी माँ की गोद में।

सत्संग सेवा[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. [[परम संत पंडित मिहीलाल जी]], जीवन दर्शन, साधन प्रकाशन, मथुरा
  2. संग्रहकर्ता - संत श्री हरिश्चन्द्र प्रसाद जी, पुण्य -स्मरण परम पूज्य जिया माँ , साधन प्रकाशन, मथुरा


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