ज्ञान गंगा
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ज्ञान गंगा कबीर पंथी संत रामपाल दास जी महाराज द्वारा लिखित सर्वधर्म ग्रंथों से प्रमाणित ज्ञान के आधार पर लिखी गई पुस्तक है। इसमें धर्म ग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को सुलझाया गया है।[१]
ज्ञान गंगा पुस्तक के मुख्य बिंदु
भक्ति मर्यादा[सम्पादन]
इस शीर्षक में उन उन सभी नियमों का उल्लेख है जिनको निभाना एक आदर्श मानव जीवन में आवश्यक है। पुस्तक के लेखक संत रामपाल जी सर्व पवित्र धर्मग्रंथों से प्रमाणित करते हुए कहते हैं कि शास्त्र अनुसार भक्ति करके ज़रा-मरण रुपी बंधन से छूटना ही मानव जीवन का मूल मकसद है।
सृष्टि रचना[सम्पादन]
सृष्टि की उत्पत्ति किस तरह हुई, सृष्टि की संचालन व्यवस्था मनुष्य और अन्य जीवों के जन्म तथा मृत्यु आदि के कारणों का उल्लेख सर्वधर्म ग्रंथों से प्रमाणित करते हुए किया गया है। संत रामपाल कहते हैं कि हमें जन्म देने और मारने में काल भगवान का स्वार्थ छिपा है वही हमें परमात्मा से दूर रखता है।
कौन तथा कैसा है कुल का मालिक[सम्पादन]
- कौन-कौन संत सही भक्ति विधि को अपनाते हुए परमात्मा से मिले। जो महापुरुष परमात्मा से मिले उन्होंने कौनसी भक्ति विधि अपनाई तथा उन्होंने जो परमात्मा की जानकारी दी वह इस अध्याय में वर्णित है।
पूर्ण संत की पहचान-[सम्पादन]
हमारे धर्म ग्रंथों में पूर्ण संत अर्थात सच्चे संत की क्या पहचान बताई गई है तथा यह पहचान किन संतों में मिली यह सब वर्णन किया गया है।
भटकों को मार्ग विषय[सम्पादन]
अंत में उन साधकों के अनुभव भी दिये हैं जो ज्ञान गंगा पुस्तक पढ़ कर शास्त्रानुसार सही विधि से भक्ति कर रहे हैं।
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