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टाइगर कप

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टाइगर कप (Tiger Cup) क्रिकेट टूर्नामेंट है। यह वनडे और टी20 क्रिकेट टूर्नामेंट है, जो अलग-अलग समय में लेदर, कॉर्क और टेनिस बॉल से खेला गया। अभी यह टूर्नामेंट टेनिस बॉल से खेला जाता है। इसका आयोजन ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन (Aniajhar Cricket Association) द्वारा किया जाता है। यह मध्य प्रदेश के शहडोल जिले का लोकप्रिय क्रिकेट टूर्नामेंट है। ऐंताझर, शहडोल से 12 किमी की दूरी पर स्थित गांव है।

1996 में हुई शुरुआत[सम्पादन]

टाइगर कप पहली बार 1996 में आयोजित किया गया. यह लगातार 8 साल खेला गया. शुरुआती तीन साल यह टूर्नामेंट लेदर बॉल से मैट पर खेला गया. साल 1999 और 2000 में टूर्नामेंट का विस्तार हुआ और इसे दो स्तर पर आयोजित किया गया. शहरी टीमों के लिए लेदर बॉल टूर्नामेंट कराया गया. ग्रामीण टीमों के लिए टूर्नामेंट कॉर्क बॉल से हुआ. 2002 से 2004 तक यह टूर्नामेंट फिर से लेदर बॉल और मैट फॉर्मेट में आ गया. टूर्नामेंट नॉकआउट फॉर्मेट में खेला जाता था. इसमें शहडोल, बुढ़ार, अमलाई, धनपुरी, सोहागपुर और आसपास के करीब 50 गांव की टीमें हिस्सा लेती थीं.  पहले चरण में यह वनडे टूर्नामेंट था, जिसमें 25-25 या 30-30 ओवर के मैच खेले जाते थे. साल 2015 में टाइगर कप की दोबारा शुरुआत हुई. इस बार यह टूर्नामेंट टी20 फॉर्मेट में टेनिस बॉल से कराया गया. एक साल के अंतराल के बाद 2017-18 में इसका आयोजन फिर हुआ. इसका अगला संस्करण दिसंबर 2019-जनवरी 2020 में प्रस्तावित है.

ऐंताझर[सम्पादन]

ऐंताझर (Aniajhar) जंगल से जुड़ा हुआ गांव है. इसकी आबादी करीब 1400 है. यहां के जंगल में साल के ऊंचे-ऊंचे पेड़ हैं, जिसे स्थानीय भाषा में सरई कहा जाता है. जंगल में हिरण, लकड़बग्घा, सियार जैसे जानवर पाए जाते हैं. 1980 के दशक में तस्करों ने जंगल के पेड़ काटकर बेचे. बाद में वन विभाग और ग्रामीणों ने मिलकर जंगल को संरक्षित किया. साल 1995 तक यह जंगल फिर से हरा-भरा और घना हो गया.

ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन[सम्पादन]

ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन (Aniajhar Cricket Association) की स्थापना 1973 में चार दोस्तों अजय श्रीवास्ताव, सुरेंद्र श्रीवास्तव, मनोज श्रीवास्तव और ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव ने की. शुरुआत में उन्हें अपने ही गांववालों को का विरोध झेलना पड़ा. खेलप्रेमी इस गांव के लोग शुरू में क्रिकेट का विरोध करते थे. वे चाहते थे कि गांव के लड़के पहले की तरह फुटबॉल, हॉकी और वॉलीबॉल पर ध्यान दें. ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन यानी एसीए (ACA) के संस्थापक सदस्य अजय और सुरेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि पहली बार जब गांव में क्रिकेट खेली गई तो महुए के पेड़ की लकड़ी से गेंद बनाई गई. हर्रा (हरड़) की लकड़ी का बैट बनाया गया. 1974 में पहली बार गेंद खरीदी गई. 1975 में पहली बार 45 रुपए का बैट खरीदा गया. रामकृपाल श्रीवास्तव, विनय सिंह, अरुण श्रीवास्तव एसोसिएशन संरक्षक बने.

टाइगर कप ही क्यों?[सम्पादन]

ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन 1980 के दशक से ही अपने नाम पर एक टूर्नामेंट कराता था. ऐंताझर क्रिकेट एसोसिएशन कप (एसीए  कप) नामक टूर्नामेंट 1985 से 1994 के बीच कराया गया. तब टूर्नामेंट में 25-25 ओवर के मैच कॉर्क बॉल से होते थे. साल 1995 में यह टूर्नामेंट नहीं हुआ. जब एक साल के अंतराल के बाद यह टूर्नामेंट दोबारा शुरू हुआ तो इसे दक्षिण वन मंडल शहडोल, ने प्रायोजित किया. इस कारण टूर्नामेंट के आयोजक और ऐंताझर क्रिकेट टीम के प्रमुख खिलाड़ियों सुशील शर्मा, विजय प्रभात शुक्ला और गिरीश श्रीवास्तव ने टूर्नामेंट का नाम बदलकर टाइगर कप करने का प्रस्ताव रखा. एसीए (ACA) के संस्थापक सदस्यों और इसके तत्कालीन पदाधिकारियों ने इसे स्वीकृति दे दी. इस तरह 1996 में पहली बार टाइगर कप का आयोजन किया गया.

टूर्नामेंट का नाम टाइगर कप, रखे जाने का एक कारण यह भी था कि गांव के ज्यादातर युवा उस वन ग्राम समिति के सदस्य भी थे. इस तरह गांव के युवा, जो क्रिकेट टीम के सदस्य भी थे, वे सीधे तौर पर जंगल बचाने में अपना सहयोग दे रहे थे. दक्षिण वन मंडल इसी कारण समिति और युवाओं के सहयोग के लिए आगे आया. इस तरह टाइगर कप के साथ दो उद्देश्य फलीभूत हो रहे हैं- पहला, खेल और दूसरा पर्यावरण.


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