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टीपू सुल्तान की तलवार

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टीपू सुल्तान की वफ़ादार तलवार की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। टीपू सुल्तान की बहादुरी की तरह उनकी तलवार के चर्चे भी दुनियाभर में मशहूर है । इस तलवार में ऐसा क्या था ? जिसे टीपू के नाम के साथ आज भी जोड़ा जाता है। टीपू का कहना था कि "हजारों साल सियार की तरह जीने से अच्छा है कि एक दिन बाघ की तरह जिया जाए" इसी बहादूर सोच के चलते उसने शेर को अपने राज्य का निशान बनाया । अपने सिंहासन और तलवार पर शेर की आकृति बनवाई। लोगों ने शेर-ऐ-मैसूर की उपाधि से टीपू सुल्तान को नवाज़ा। टीपू की तलवार की खासियत उसका वजन और लम्बाई है । करीब 7 किलो से ज्यादा वजनी इस तलवार को चलाना हर किसी के बस की बात नही थी। अपनी खास लम्बाई से तलवार के एक वार से दुश्मनों की गर्दनों के ढेर लग जाते । टीपू सुल्तान ने इस तलवार के दम पर अपनी सल्तनत की हदें कायम की और इसी तलवार के कारण टीपू सुल्तान की सल्तनत ढह गई। टीपू सुल्तान की मौत की वजह भी यही तलवार बनी। 4 मई 1799 को 48 वर्ष की आयु में कर्नाटक के श्रीरंगपट्टनम में टीपू सुल्तान जब अपनी आखिरी जंग लड़ रहे थे, तो उनकी शहादत के पीछे अनूठा वाकया हुआ।

सुल्तान की शहादत उस वक्त हुई, जब उन्हें मैदान-ए-जंग में लूटने की कोशिश की गई। दरअसल एक यूरोपीय सैनिक ने टीपू की वह पेटी दबोच ली, जिसमें उनकी तलवार बंधी हुई थी। टीपू ने तलवार निकाल कर उसका मुकाबला किया लेकिन बौखलाए सैनिक ने उनके सिर में गोली मार दी। मौके पर ही टीपू खत्म हो गए और उनकी सल्तनत भी ढह गई। 
हत्या के बाद उनकी तलवार को टीपू के हाथ से छुडाने के लिये बडी मेहनत लगी। ऐसा लग रहा था कि वफ़ादार तलवार अपने आशिक़ के हाथ से अलग होना नहीं चाहती । टीपू सुल्तान मरते दम तक तलवार को अपने हाथों में थामे रहा। वफ़ादार तलवार मरते दम तक टीपू के साथ रही इसलिए 'टीपू सुल्तान की तलवार' के किस्से मशहुर है ।

खजाना लूटने के चक्कर में टीपू की अंग्रेजों द्वारा हत्या करने के बाद लूट का माल सैनिकों और अधिकारियों ने आपस मे बांट लिया। उनकी तलवार अंगरेज़ अपने साथ ब्रिटेन ले गए। धीरे-धीरे इतिहास टीपू को भूलने लगा। 'टीपू सुल्तान की तलवार' शीर्षक से 90 के दशक में फ़िल्म एक्टर संजय खान ने दूरदर्शन के लिए कामयाब टीवी सीरियल बनाकर टीपू की यादें ताजा की । करीब 220 साल बाद टीपू सुल्तान की तलवार फिर चर्चा में आई जब एक नीलामी में इसे रखा गया। सन 2004 में तलवार की बोली लगी । आखिरकार विजय माल्या ने टीपू सुल्तान की यह तलवार नीलामी के दौरान करीब पांच लाख पाउंड (लगभग पांच करोड़ रुपये) में खरीदी थी। इस तरह ये तलवार वापस भारत पहुँची । विजय माल्या के तलवार खरीदने पर हिन्दू संगठनों ने विरोध भी किया। तलवार की मूठ पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ है । अपने भारी वजन और आकार के चलते यह तलवार पूरी दुनिया में मशहूर है। इससे पहले भी कई बार इस तलवार को भारत लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। बताया जा रहा है कि जब से माल्या ने यह तलवार खरीदी थी तब से उनका परिवार मुश्किलों का सामना कर रहा था। इसलिए उनके परिवार ने इस तलवार को मनहूस करार दे दिया था जिसके चलते माल्या ने यह तलवार साल 2016 में ही किसी को दे दी थी। पहले उन्होंने अपनी तलवार एक प्रतिष्ठित म्यूजियम को देने के लिए कहा लेकिन म्यूजियम ने ही मना कर दिया। पूर्व सहयोगी ने कहा कि म्यूजियम ने तलवार लेने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि तलवार को संरक्षित कैसे करना है।

उन्होंने कहा कि अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसके बाद तलवार का क्या हुआ । विजय माल्या के भागने के कारण तलवार कहाँ है अब भी रहस्य बना हुआ है । 

टीपू सुल्तान के वंशज साहबजादा मंसूर अली टीपू ने कहा कि वह इस तलवार का पता लगाकर खरीदने की कोशिश करेंगे । कैसी लगी मेरी जानकारी जरूर बताए_जावेद शाह खजराना


सन्दर्भ[सम्पादन]

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