डॉ० एम० एस० मानव
डॉ एम.एस.मानव हिन्दी साहित्य में आदिवासी विमर्श के प्रसिद्ध आलोचक व लेखक हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से शोध कार्य संपन्न करने के पश्चात वे दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य कर चुके हैं। कहानी, कविता, लेख व संस्मरण लिखने में उनकी अपार क्षमताओं से प्रसन्न व प्रभावित होकर "विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ ईसपुर भागलपुर, बिहार " ने उन्हें "विद्यावाचस्पति सारस्वत सम्मान" से सम्मानित किया है। यही नहीं उनकी लोकप्रिय काव्य संग्रह - "डेहरी : आदिवासी चेतना की कविता" की अधिकांश कविताओं को लेकर पंजाब विश्वविद्यालय, डॉ॰भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय औरंगाबाद, केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय आदि में एमफिल, पीएचडी शोध कार्य हो रहे हैं। उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कविता डेहरी के कुछ अंश -
"मिट्टी की बनी जीज क्या पत्थर के घर में शोभा देती है? इस्पात का बना डेहरी का बहुरूपिया आ गया था। न मिट्टी बची न मिट्टी-सा हृदय!"
इन पंक्तियों में कवि की संवेदना स्पष्ट रूप से उस मिट्टी की बनी वस्तु के प्रति है जिसका वहिस्कार आज का समाज कर चुका है या कर देना चाहता है। कंक्रीट- सा हृदय आज के मानवीय समाज का कब और कैसे हो गया? इन कारणों के तरफ देखने और विचार करने की बहुत - सी संभावनाओं के तरफ संकेत भी कवि करता है।
This article "डॉ० एम० एस० मानव" is from Wikipedia. The list of its authors can be seen in its historical and/or the page Edithistory:डॉ० एम० एस० मानव.