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डॉ० लाल रत्नाकर

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डॉ॰ लाल रत्नाकर- का जन्म जौनपुर जनपद के बिशुनपुर ग्राम के एक कृषक परिवार में हुआ। डॉ॰ रत्नाकर ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से "पूर्वी उत्तर-प्रदेश की लोक कला" विषय पर पी-एच.डी की डिग्री प्रो॰ आनंद कृष्ण के निर्देशन में ली। डॉ॰ रत्नाकर एम. एम. एच. कालेज गाजियाबाद के चित्रकला विभाग में एसो. प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं। आप नियमित रूप से कला सृजन में रत हैं। आपके चित्रों में "ग्रामीण जन जीवन विशेष रूप से महिलाएं उपस्थित रहती है" और इन्ही की प्रदर्शनी देश के कोने-कोने में कला दीर्घाओं में आयोजित करते रहते है।

कला के लिए योगदान[सम्पादन]

डॉ॰रत्नाकर मूलतः गाँव से अभी तक जुडाव बनाये हुए है। लोक कला पर शोध तो अनेक हुए है पर इनके चित्रों में जिस क्षेत्र को लेकर काम हुआ है उसकी समृद्धता जो विविध कलात्मक रचना क्षेत्र में हुयी है उसका लेखा जोखा एकत्रित किया गया है वह इस प्रकार है - इन्होने देश की जानीमानी कला दीर्घाओं में अपने चित्रों की अनेक प्रदर्शनियाँ आयोजित की है जिनमे मुंबई की जहाँगीर, कोलकाता की बिरला, दिल्ली की ललित कला, आईफेक्स हैदराबाद की चित्रमई, तथा अनेक सामूहिक प्रदर्शनिया देश व देश के बाहर आयोजित हुई है। अनेक चित्रकला कार्यशालाओं तथा संगोष्ठियों में डॉ॰रत्नाकर की सहभागिता तथा गाजियाबाद जनपद में अनेक राष्ट्रीय स्तर के कला उत्सवों का आयोजन तथा यही पर "कलाधाम" का प्रशासन से निर्माण कराने का उत्तरदायित्व का निर्वहन सफलता पूर्वक किया है | डॉ॰लाल रत्नाकर के बारे में भारत के प्रमुख साहित्यकार से रा यात्री का कहना है कि -

धूषर प्रांतर के अंचल में
रंगों रेखाओं का विधान |
अक्षितिज सृष्टि के विविध रूप
उनके चित्रों में दृश्यमान ||

उपरोक्त काब्य पंक्तियो के आलोक में डॉ॰लाल रत्नाकर की चित्रात्मक सृजनशीलता पर विचार करें तो उनके रचना संसार का सम्पूर्ण परिदृश्य हमारे नेत्रों के सम्मुख उजागर हो जायेगा | डॉ॰लाल रत्नाकर ने जिस ग्राम्य इतिवृत्त को अपनी कला का उपजीव्य बनाया है उसे कविवर सुमित्रानंदन पन्त की काव्य भाषा में भारतमाता ग्रामवासिनी के रूप में सहज व्याख्यायित किया जा सकता है |

डॉ॰लाल रत्नाकर के छोटे बड़े सभी रंगायित चित्रों में खेत, खलिहान, पशु-पक्षी, पेड़, सर, सरिता और मानवीय आभा के शत शत रूप अंकित होते दीख पड़ते है | भारत के सम्पूर्ण कला जगत में वह एक विरल चितेरे है जिन्होंने अनगढ़, कठोर और श्रम स्वेद सिंचित रूक्ष जीवन चर्या को इतने प्रकार के रमणीक रंग- प्रसंग प्रदान किये हैं कि भारतीय आत्मा कि अवधारणा और उसका मर्म खिल उठा है |

आज रंग संसार में जिस प्रकार कि अबूझ अराजकता दिनों दिन बढ़ती जा रही है उनक सहज चित्रांकन न केवल उसे निरस्त करता है वरन भारतीय परिवेश की सुदृढ़ पीठिका को स्थापित भी करता है| जीवन संगीत को एक मधुर लयात्मक गति देने वाले डॉ॰लाल रत्नाकर के इस अनूठे रचना प्रसार को देखकर विश्वास होता है की जान जीवन में व्यापक पैठ बनाने वाली उनकी विविधवर्णी तुलिका की छटा हमें निरंतर दृष्टि और विचार सम्पन्न बनाने की दिशा में संकल्प्वती बनी रहेगी|

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